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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास रिसर्च इंस्टीच्यूट, इलाहाबाद, जिल्द ३,५०६७-१०८) नाद, बिन्दु एवं कला पर लिखा है और बड़ी तत्परता के साथ इनका तात्पर्य समझाया है और आशा की है कि उनका विश्लेषण इन शब्दों के अर्थ को स्पष्ट कर देगा (प०१०३)। फिर भी सम्भवतः उनका विश्लेषण इतना स्पष्ट नहीं हो पाया है कि शब्दों की व्याख्या स्पष्ट हो सके। बहुत-से तन्त्र पंच मकारों को देवी की पूजा का साधन मानते हैं, जिनके द्वारा मनुष्य अलौकिक शक्तियाँ पाता है और अन्त में मुक्ति का अधिकारी होता है। कुलार्णव में आया है--'महात्मा भैरव ने व्यवस्था दी है कि कौलदर्शन में सिद्धि (पूर्णता) इन्हीं द्रव्यों से प्राप्त होती है, जिनके करने से सामान्यजन पाप के भागी होते हैं। इसका तात्पर्य यह हुआ कि कौल दर्शन विष को विष से मारता है, जैसा आधुनिक होमियोपैथी में पाया जाता तन्त्रों को यह बात ज्ञात थी कि मुक्ति के लिए पंच मकारों की व्यवस्था करते हुए वे अग्नि से खिलवाड़ कर रहे हैं। स्वयं कुलार्णव में आया है (२१११७-११६ एवं १२२)--'यदि मद्य पीने मात्र से सिद्धि प्राप्त हो जाती है तो सभी दुष्ट मद्यपों को सिद्धि प्राप्त हो जानी चाहिए। यदि मांस खा लेने से ही पवित्र लक्ष्य की प्राप्ति हो जाय तो सभी मांसाहारी व्यक्ति इस विश्व में पवित्र हो जायें। यदि केवल नारी (शक्ति) के साथ संभोग करने से ही मोक्ष प्राप्त होता हो तो संसार में सभी लोग मुक्ति पा जाये। कुलमार्ग का अनुसरण करना बड़ा कठिन है, यह तलवार की धार पर चलने से, व्याघ्र की गर्दन पर बैठने से तथा हाथ से साँप को पकड़ लेने से अधिक भयंकर है'। उपर्युक्त बातों के प्राक्कथन के रूप में कुलार्णव में आया है--'बहुत-से लोग, जो परम्परागत ज्ञान से शून्य हैं और त्रुटिपूर्ण विचारों से शास्त्र का अतिक्रमण करते हैं (उसे अपवित्र करते हैं), वे अपने खोखले ज्ञान का सहारा लेकर ऐसी कल्पना करते हैं कि कौलिक सिद्धान्त ऐसा है, वैसा है' (२।११६) । देवीभागवत (१११११२५) में आया है कि तन्त्र का वह भाग जो वेद के विरोध में नहीं पड़ता, प्रामाणिक है, (वेदाविरोधिचेत् तन्त्रं तत् प्रमाणं न संशय:) इसमें कोई संशय नहीं है। किन्तु जो अंश वेदविरोधी है, वह अप्रामाणिक है। हिन्दु तन्त्रों एवं बौद्ध तन्त्रों में साधकों को लेकर महान् विरोध रहा है। शक्तिसंगमतन्त्र में, जो अत्यन्त प्रचलित एवं विशाल तन्त्रों में एक है, ऐसा आया है कि बौद्धों व अन्य पाषण्डियों के नाश, विभिन्न सम्प्रदायों के विरोधी मिश्रण को दूर करने, सच्चे सिद्धान्त की स्थापना, ब्राह्मणों की रक्षा तथा मन्त्रशास्त्र की सिद्धि के लिए देवी आविर्भूत होती हैं। इसी प्रकार बौद्ध तन्त्रों ने भी प्रत्युत्तर दिया है। ४२. यैरेव पतनं द्रव्यः सिद्धिस्तैरेव चोदिता। श्रीकौलदर्शने चापि भैरवेण महात्मना ।कुलार्णव० (५४४८); देखिये ज्ञानसिद्धि (बौद्ध तन्त्र, १।१५): 'कर्मणा येन वै सत्त्वाः कल्पकोटि-शतान्यपि । पच्यन्ते नरके घोरे तेन योगी विमुच्यते ॥' और मिलाइये प्रज्ञोपाय० (बौद्ध, ५, पृ० २३, श्लोक २४-२५): 'जनयित्री स्वसारं च स्वपुत्री भागिनेयिकाम् । कामयन् तत्त्वयोगेन लघु सिध्येत साधकः॥' (दोनों ग्रन्थ, 'टू वजयान टेक्ट्स, गायकवाड़ ओरिएण्टल सीरीज)। बागची (स्टडीज इन तन्त्रज, पृ० ३६-३७) ने प्रदर्शित किया है कि कुछ तान्त्रिक ग्रन्थों के मतानुसार 'जनयित्री', 'स्वसृ' एवं 'भागिनेयो' शब्द गूढार्थात्मक हैं, उनका कोई सामान्य अर्थ नहीं है। किन्तु दो वजयान ग्रन्थों में ये जिस संदर्भ में प्रयुक्त हुए हैं, उससे यह मानना कठिन है कि वे किसी गढ़ या अलौकिक या प्रतीक रूप में प्रयुक्त हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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