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________________ हिन्दू संस्कृति एवं सभ्यता की मौलिक एवं मुख्य विशेषताएँ ४०१ लोग चाण्डाल के समान ही थे (बृ. उप० ४।३।२२) । याज्ञवल्क्य एवं पराशर (दूसरी से छठी शती तक) के कालों में ब्राह्मण जिन शूद्रों के घर में भोजन कर सकता था वे ये हैं-अपना दास, गोरखिया (गाय चराने वाला या चरवाहा), नाई तथा अधियरा (ऐसा आसामी जो अपनी भूमि जोतता-बोता हो और आधा भाग देता हो)। वर्ण केवल चार थे पांच नहीं (मन १०१४, अनुशासनपर्व, ४८१३०)। आज तक अस्पृश्य लोगों को बहुधा लोग पञ्चम कहते हैं, जो स्मृति-प्रयोग के विरुद्ध है । वैदिक साहित्य में 'जाति' शब्द अपने आज के अर्थ में कदाचित् ही प्रयुक्त हुआ हो, किन्तु निरुक्त (१२।१३) एवं पाणिनि (५।४।६ यथा 'ब्राह्मणजातीय' जिसका अर्थ है जो जाति से ब्राह्मण हो) में यह शब्द आया है। कभी-कभी 'जाति' एवं 'वर्ण' शब्दों में स्मृतियों (याज्ञ० २।६६, २६० ) द्वारा भेद किया गया है, किन्तु प्राचीन काल से ही 'जाति' शब्द भ्रामक रूप में 'वर्ण' के अर्थ में प्रयुक्त होता रहा है। मनु (१०।३१) में 'वर्ण' शब्द का प्रयोग वर्णसंकरों के अर्थ में किया है और इसी प्रकार, उलटे रूप में 'जाति' शब्द 'वर्ण' के अर्थ में मनुस्मति (८३१७७, ६८५-८६, १०१४१) में प्रयुक्त हुआ है। न्य देशों में, य -फारस, रोम एवं जापान में भी एक प्रकार की जाति-प्रथा का प्रचलन था, जो समाप्त हो गया, किन्तु वह भारतीय जाति-प्रथा की जटिलता को नहीं प्राप्त हो सका था। ___ आज भारत में सहस्रों जातियाँ एवं उपजातियाँ हैं। वे किस प्रकार उत्पन्न हो गयीं, यह एक अभेद्य समस्या है। शेरिंग ने अपने ग्रन्थ 'हिन्दू ट्राइब्स एण्ड कास्ट्स' (१८८१, जिल्द ३, पृ० २३१) में यह प्रतिपादित किया है कि यह (ब्राह्मणों द्वारा किया गया) आविष्कार है। किस प्रकार एक इतनी विशाल प्रथा थोड़े से ब्राह्मणों द्वारा लाखों व्यक्तियों के ऊपर लादी गयी, यह समझ में नहीं आता, जब कि ब्राह्मणों के हाथ में कोई शारीरिक एवं राजनीतिक शक्ति नहीं थी ! उस पादरी महोदय के मन में यह बात नहीं आयी, बड़ा आश्चर्य है। विशेषत: ईसाई धर्म प्रचारक ऐसी हो त्रुटिपूर्ण एवं भ्रामक धारणाओं को लेकर मोटे-मोटे ग्रन्थ लिख डालते थे। शेरिंग महोदय का ग्रन्थ १६ शती के तीसरे चरण में प्रणीत हुआ था। यह भली भाँति विदित है कि कम-से-कम ई० पू० छठी शती से आगे मारत पर पारसीकों (पारसियों), काम्बोजों४ , यूनानियों, सिथियनों ( सामान्यतः शक लोगों ) के आक्रमण होते रहे तथा पारदों, पलवों, चीनों, किरातों, दरदों एवं खशों का भारत में आना जारी रहा। मनु (१०।४३-४) ने इनके तथा पौण्डकों, ओड़ों (उड़ीसावासियों), द्रविड़ों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि ये मूलतः क्षत्रिय थे, किन्तु उपनयन ऐसे संस्कारों से विहीन होने के कारण उनका ब्राह्मणों से संसर्ग टूट गया था। मनु (१०१४५) के समय में कुछ मिश्रित जातियाँ थीं जो म्लेच्छ बोलियाँ एवं आर्य भाषाएँ बोलती थीं, किन्तु दस्युओं (शूद्रों) में परिगणित थीं। गौतमधर्मसूत्र (१११४१७), मनु (१०१५-४०), याज्ञ० (११६०-६५) आदि ने कहा है कि विभिन्न वर्गों के पुरुषों एवं नारियों के विवाहों १४. अत्रि-स्मृति (३२, गद्य) ने इन बाह्य जातियों एवं लोगों में कुछ का उल्लेख किया है। देखिए अनुशासनपर्व (३३।२१-२३)-'शका यवन-काम्बोजा: क्षत्रियजातयः । वृषलत्वं परिगता ब्राह्मणानां आदर्शनात्..।' एवं वही (३५।१७-१८)। महाभाष्य (पाणिनि (२।४।१०) ने शक एवं यवन को शूद्रों में परिगणित किया है अशोक ने अपने प्रस्तराभिलेख सं०५ एवं १३ में योनों योनराज एवं काम्बोजों का उल्लेख किया है जो उसके साम्राज्य की सीमाओं पर रहते थे। ए० एम० टी० जैक्सन ने इण्डियन ऐण्टीक्वेरी (१६१०, पृ० ७७) में लिखा है-'हिन्दू सभ्यता की आकर्षक शक्ति ने , जिसने मुसलमानों एवं यूरोपवासियों को छोड़ कर सभी बाह्य आक्रामकों को अपने में खपा लिया, मध्य एशिया के खानाबदोशों (यायावर जातियों) को सभ्य बना दिया, यहाँ तक कि जंगली तुर्को के बल अत्यन्त शक्तिशाली राजपूत राजघराने के सदस्यों में परिणत हो गये। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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