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विश्वविद्या
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'महत्-आत्मान्', सभी उत्पन्न वस्तुएँ तीन गुणों के सम्मिलन से बनीं, पाँच ज्ञानेन्द्रियां बनीं जो इन्द्रिय-विषयों का प्रत्यक्षीकरण करती हैं । उन्होंने ६ (अहंकार एवं पाँच तन्मात्राओं) के सूक्ष्म भागों को मिलाकर और अपने अंशों के सम्मिश्रण से सभी जीवों को बनाया, पाँच तत्त्व सभी जीवों के ढाँचे के निर्माता में प्रवेश कर गये । इस सिद्धान्त में ऋ० (१०।१२६ के विशेषत: १-३ मन्त्र), शत० प्रा० (११।१।६।१) एवं छान्दोग्योप० (३।१६।१-२, हिरण्यगर्भ के विषय वाली) एवं सांख्य सिद्धान्त की (तत्त्व एवं गुण, यद्यपि महत, एवं पंच तत्त्वों के क्रम में समानता नहीं है) बातों का समावेश है। मनुस्मृति के १२१ में हिरण्यगर्भ ने सष्टि के आरम्भ में वेद के शब्दों द्वारा समी रचित जीवों को नाम दिये तथा उनकी विशिष्ट क्रियाएँ एवं अवस्थाएँ (परिस्थितियाँ) निर्धारित की। इस विषय में मनुस्मृति ने एक श्रुति वचन का अनुसरण किया है, यथा ऋ०६।६२।१, जिसे शंकराचार्य ने (वे० सू० १।३।२८) उद्धृत किया है।
सृष्टि-सम्बन्धी दूसरा सिद्धान्त मनुस्मृति (१।३२-४१) में यों आया है ब्रह्मा ने अपने शरीर को दो भागों में विभाजित किया, एक अर्धांश पुरुष के रूप में और दूसरा नारी के रूप में। नारी के रूप से उन्होंने विराट की सृष्टि की, जिसने तप किया और एक पुरुष उत्पन्न किया जो स्वयं मनु (जिसने मनुस्मृति का उद्घोष किया है) था। मनु ने सृष्टि की कामना से जीवों की सृष्टि की, सर्वप्रथम उन्होंने, दस ऋषियों को प्रजापतियों के रूप में बनाया जिन्होंने सात ऋषियों, देवों, देवों की कोटियों, महान् ऋषियों, यक्षों, राक्षसों, गन्धर्वो, अप्सराओं, सो, पक्षियों, पितरों की श्रेणियों (वर्गों), बिजली, मेघों, बड़े-छोटे नक्षत्रों, बन्दरों, मछलियों, हरिणों, गायों, मनुध्यों, सिंहों, कीटों, मक्षिकाओं, अचल पदार्थों आदि की रचना की। यह वर्णन ऋ० के पुरुषसूक्त (ऋ० १०६०) से, विशेषत: ५ एवं ८-१० ऋचाओं से प्रभावित है।
सृष्टि-सम्बन्धी तीसरा सिद्धान्त मनुस्मृति (११७४-७८) में संक्षिप्त रूप से आया है । निद्रा से जागने पर ब्रह्मा ने अपने मन को रफा (अर्थात् नियुक्त किया), जिसने ब्रह्मा से प्रेरित होकर आकाश बनाया, जिसका विलक्षण गुण है स्वर। उस आकाश ने अपने को परिमार्जित करके वायु की रचना की जिसका गुण है स्पर्श । वायु मे देदीप्यमान (भास्वत्) प्रकाश का उदय हुआ, जिससे जल की उत्पत्ति हुई। जल से पृथिवी की उत्पत्ति हुई जिसना विशिष्ट गुण है गन्ध । यह सिद्धान्त सांख्य सिद्धान्त का परिमार्जन है, जिसके अनुसार (सांख्यकारिका २५) पांच तत्त्व अहंकार से उद्भूत होते हैं। यहां ब्रह्मा (जिनका सांख्य सिद्धान्त में कोई स्थान नहीं है) को बैठा दिया गया है। एक ही विषय पर मनुस्मृति ने कई विरोधी मत प्रतिपादित किये हैं। उदाहरणार्ध मिलाइए मांस-प्रयोग पर मनु (५।२७-४६) एवं मन, (५४८-५६); मन (३।१३) एवं मनु (३।१४-१६) जहाँ ब्राह्मण द्वारा शूद्र नारी से विवाह की बात की ओर इंगित है, मनु ( ६५६-६२ ) एवं मनु ( ६।६४-६८ ) जहाँ पर नियोग-प्रथा की चर्चा है।
महाभारत में (विशेषतः शान्तिपर्व में) सृष्टि-सम्बन्धी बातों का बहुधा उल्लेख हुआ है। यहां पर सभी बातें नहीं दी जा सकतीं। कुछ का उल्लेख हो रहा है । शान्तिपर्व (१७५।११-२१ = १८२।११-२१, चित्रशाला संस्करण) में आया है कि अव्यक्त से सभी जीवों का जन्म हुआ। उन्होंने सर्वप्रथम 'महान्' (जिसे आकाश भी कहा जाता है) की रचना की, आकाश से जल उत्पन्न हुआ, जल से अग्नि एवं वायु की उत्पत्ति हुई, इन दोनों के मिश्रण से, पृथिवी बनी। तब स्वयम्भू ने एक कमल बनाया, जिससे ब्रह्मा उदित हुए, जिन्हें अहंकार कहा जाता है और उन्होंने सम्पूर्ण विश्व को रचा। अध्याय १७६ (चित्रशाला का १८३) में आया है कि ब्रह्मा ने सर्वप्रथम जल बनाया, जल से वायु उठी, जल एवं वायु के मिश्रण से अग्नि की उत्पत्ति हुई और अग्नि, वायु एवं आकाश के सम्मिलन से पृथिवी बनी। अध्याय १७७ (१८४, चित्रशाला संस्करण) में व्याख्या है कि महाभूत (महान् तत्त्व)
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