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________________ तान्त्रिक सिद्धान्त एवं धर्मशास्त्र कुल धर्मों से अनभिज्ञ है, वह चाण्डाल से भी अधम है, किन्तु वह चाण्डाल, जो कुलधर्मों को जानता है, ब्राह्मण से उच्च है। यदि सभी धर्मों, यथा यज्ञों, तीर्थयात्राओं, एवं व्रतों को एक ओर रखा जाय तथा कुलधर्म को दूसरी ओर , तो कौल (धर्म) अर्थात् कुलधर्म भारी (उत्तम) पड़ेगा' (कुलार्णवतन्त्र २०११ एवं ६७, और देखिए महानिर्वाणतन्त्र ४१५२, जहाँ सर्वथा ऐसे ही शब्द आये हैं)। अत: यह आवश्यक है कि हम कुल अथवा कौलधर्म के अर्थ को जान लें। गुह्य समाज तन्त्र (१८ वा पटल, पृ० १५२) में उल्लिखित है कि 'गुह्य' का अर्थ है तीन -काया, वाक् (वाणी) एवं चित्त (मन) तथा 'समाज' का अर्थ है 'मीलन' अर्थात् 'मिलन्' (एक साथ आना) ; कुल के त्रिकुल, पंचकुल या १०१ भेद हैं और गुह्य का अर्थ है विकल। देवशंकर ने पाँच तत्व घोषित किये हैं-मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा (हाथ एवं अंगुलियों की मुद्रा या योगी की नारी सहायिका) एवं मैथुन, ये ऐसे कर्म हैं जो वीर के आसन की प्राप्ति के साधन हैं और शक्ति का मन्त्र तब तक पूर्णता नहीं प्रदान करता, जब तक कुल के प्रयोगों का अनुसरण नहीं किया जाता। अत: व्यक्ति को चाहिए कि वह कुलाचारों में रत हो, जिसके द्वारा वह शक्तिसाधना प्राप्त करता है । मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा एवं मैथुन-ये शक्ति-पूजा विधि के पांच तत्व कहे गये हैं२६ । एक अन्य स्थान पर महानिर्वाणतन्त्र में आया है कि जीव, प्रकृति, दिक् , काल, आकाश, क्षिति (पृथिवी), जल, तेज (अग्नि) एवं वायु-ये कुल कहे जाते हैं, और जब त इन सभी के प्रति ब्रह्मबुद्धि से आचरण करता है तो वह कुलाचार कहलाता है, इससे चार पुरुषार्थों, धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष की प्राप्ति होती है २७। शक्तिसंगमतन्त्र में आया है कि कुल का तात्पर्य काली के उपासकों (पूजा करने वालों) से है। कलार्णव में उल्लिखित है-'कल का अर्थ है गोत्र और वह शक्ति एवं शिव से उदित होता है; वह व्यक्ति कौलिक है, जो यह जानता है कि मोक्ष की प्राप्ति उससे (अर्थात् शक्ति एवं शिव से) होगी। शिव अकुल कहलाता है, और शक्ति को कुल कहते हैं। जो लोग कल एवं अकल का ध्यान २६. वीरसाधनकर्माणि पञ्चतत्त्वोदितानि च। मद्यं मांसं तथा मत्स्यं मुद्रा मथुनमेव च । एतानि पञ्च तत्त्वानि स्वया प्रोक्तानि शंकर । महानिर्वाण (१३५७) । साधक के तीन प्रकार हैं । पशु, वीर एवं दिव्य । देखिये शक्तिसंगमतन्त्र, कालीखण्ड (६२१), महानिर्वाण (११५१ एवं ५५, ४१८-१६), कौलावलीनिर्णय (७१८६)। कुलाचारं विना देवि शक्तिमन्त्रो न सिद्धिदः । तस्मात्कुलाचारतः साध्नयच्छक्तिसाधनम् ॥ मद्यं मांसं तथा मत्स्यं मद्रा मथुनमेव । शक्तिपूजाविधावाद्ये पञ्चतत्त्वं प्रकीर्तितम ॥ महानिर्वाण (५।२१-२२) । 'आये 'आद्या का सम्बोधन है जो शिव की पत्नी शक्ति के लिए प्रयुक्त है । कोलावलीनिर्णय में आया है 'चण्डिकां पूजयेद्यस्तु बिना पञ्चमकारकः । चत्वारि तस्य नश्यन्ति आयुविद्यायशो धनम् ॥ मधं मांसं...मैथुनमेव च ।...मकारपंचकं देवि देवताप्रीतिदायकम् ॥ ...बिनापंचोपचारं हि देवीपूजां करोति यः । योगिनीनां भवेद्भस्यः पापं चैव पदे पदे ।।(४१२४-२८); इसके अतिरिक्त कौलावलीनिर्णय के २ ॥१०१-१०५ पद अत्यन्त प्रभावशाली हैं : 'संस्थाप्य वामभागे तु शक्तिं स्वामिपरायणाम् । ...बिना शक्त्या तु या पूजा विफला नात्र संशयः । तस्माच्छक्तियुक्तो वीरो भवेच्च यत्नपूर्वकम् । या शक्तिः सा महादेवी हररूपस्तु साधकः । अन्योन्यचिन्तनाच्चैव देवत्वमपजायते। .. शक्ति विनापि पूजायां नाधिकारी भवेत्तदा । २७. जीवः प्रकृतितत्त्वं च दिक्कालाकाशमेव च क्षित्यूप्रेजोवायवश्च कुलमित्यभिधीयते । ब्रह्मबुद्धया निविकल्पमेतेष्वाचरणं च यत् । कुलाचारः स एवाद्ये धर्मकामार्थमोक्षदः ॥ महानिर्वाण (७५६७-६८) ७।१०६-११० में इस तन्त्र ने मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा एवं मैथुन नामक पाँच तत्वों को तेज (अग्नि), पवन, जल, पृथिवी एवं वियत् (आकाश) के समान कहा है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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