________________
तान्त्रिक सिद्धान्त एवं धर्मशास्त्र
१५
संसार को विमोहित करने के लिए शंकर द्वारा घोषित किये गये हैं 3 । बहुत-से हिन्दू एवं बौद्ध तन्त्रों का प्रकाशन हो चुका है अतः अव हमें यह ज्ञात हो गया है कि तन्त्रों का क्या स्वरूप है। कुछ हिन्दू तन्त्र ये हैं
कलार्णव, तन्त्रसार, नित्योत्सव, परशराम कल्पसूत्र, पारानन्दसत्र, प्रपञ्चसार, मन्त्रमहोदधि (महीधर कृत), महानिर्वाण तन्त्र, रुद्रयामल, वामकेश्वरतन्त्र, शारदातिलक (लगभग ११ वीं शती) । इसके अतिरिक्त कश्मीरी तन्त्रवाद के अभिनवगुप्त के तन्त्रालोक एवं मालिनी विजयवार्तिक ऐसे तन्त्र ग्रन्थ भी हैं, जो उपयुक्त ग्रन्थों से कुछ भिन्न हैं। कुछ प्रकाशित बौद्ध ग्रन्थ ये हैं-अद्वयवज्रसंग्रह, आर्यमञ्जुश्रीमूलकल्प, गुह्यसमाजतन्त्र (सम्भवतः ६ ठीं शती), इन्द्रभूति (७१७ ई०) की ज्ञानसिद्धि, अभयाकर गुप्त की निष्पन्नयोगावलि (११वीं शती के अन्तिम चरण एवं १२वीं शती के प्रथम चरण में प्रणीत) अनंगवज्र, (७०५ ई.) की प्रज्ञोपाय विनिश्चयसिद्धि, षट्चक्रनिरूपण (१५७७ ई०), साधनमाला (जिसमें तीसरी शती से १२वीं शती तक के छोटे-छोटे ३१२ ग्रन्थों का संग्रह है) । डा० बी० भट्टाचार्य (गुह्यसमाजतन्त्र की भूमिका पृ० ३८ ) के मत से बौद्ध तन्त्रों में आर्यमंजुश्रीमूलकल्प एवं गुह्यसमाजतन्त्र सबसे प्राचीन है (२४) । ऊपर के बहत - से ग्रन्थ आर्थर एवालोन (सर जॉन वुझौफ) द्वारा एवं गायकवाड़ ओरियण्टल सीरीज़ द्वारा प्रकाशित हैं । कुछ
२३. सौन्दर्यलहरी को शंकराचार्यकृत कहने के लिए जो साक्ष्य उपस्थित किया जाता है, वह ठीक नहीं जंचता और न उसमें कोई बल ही है । हरप्रसाद शास्त्री के ताडपत्र-पाण्डुलिपि (नेपाल दरबार लाइब्रेरी, पृ० ६२) के कैटलॉग में तारारहस्यवृत्तिका नामक एक तन्त्र-संग्रह है जो गौड़देश के शंकराचार्य द्वारा तैयार किया गया है। इससे यह बात जाननी चाहिए कि उस अद्वैतगुरु शंकराचार्य के नाम पर किसी पुस्तक को थोपने के पूर्व हमें सावधानी बरतनी चाहिए । देखिए डी० एन० बोस कृत 'तन्त्रज, देयर फिलॉसॉफी एण्ड ऐकल्ट सीक्रेट्स' (पृ० २६-३०), जहां वाराहीतन्त्र में उल्लिखित ६४ तन्त्रों के नाम दिये गये हैं। देखिये सौन्दर्यलहरी जिसमें ६४ तन्त्रों के नाम आये हैं। और देखिये बागची (स्टडीज इन दि तन्त्रज, पृष्ठ ५) जिन्होंने ८वीं शती में तथा उसके पूर्व के प्रामाणिक तन्त्रों के नाम दिये हैं। अभिनवगप्त के तन्त्रालोक में आया है कि १०,१८ एवं ६४ के दलों में शैवतन्त्र है 'दशाष्टादशवस्वष्टभिन्नं यच्छासनं विभोः। तत्सारं त्रिकशास्त्रं हि तत्सारं मालिनीमतम् ॥ १११८ (काश्मीर संस्कृत सीरीज, जिल्द २२, पृ० ३५)। नित्याषोडशिकार्णव (वामकेश्वरतन्त्र का एक भाग) ने प्रथम विश्राम के १३'से २२ तक श्लोकों में ६४ तन्त्रों के नाम दिये हैं, किन्तु इसने तन्त्रों में ८ यामलों को भी परिगणित कर लिया है, किन्तु डा० भट्टाचार्य (बुद्धिस्ट इसोटेरिज्म, भूमिका पृ० ५२) ने आगमों एवं यामलों में अन्तर बताने का प्रयत्न किया है और यही कार्य उन्होंने साधनमाला (जिल्द २, पृ० २१-२२) की भूमिका में भी किया है। ज्ञानानन्दगिरि (तान्त्रिक टेक्ट्स, जिल्द १४) के कौलावलीनिर्णय ने बहुत से तन्त्रों के नाम दिये हैं जिनमें यामलों का भी उल्लेख है । (१२-१४) और आठ गुरुओं के नाम भी दिये हैं (१९६२-६३)।
२४. डा० बी० भट्टाचार्य, (गुह्यसमाजतन्त्र, भूमिका, ३४) ने यह मत प्रकाशित किया है कि सम्भवतः गयसमाजतन्त्र का लेखक असंग है, अतः वह तीसरी या चौथी शती में लिखा गया होगा। किन्तु यह बात ठीक नहीं जंचती। सिलवैन लेवी द्वारा सम्पादित असंगकृत महायानसूत्रालंकार की परिमार्जित संस्कृत से गुह्यसमाज की अशुद्ध संस्कृत से तुलना करने पर पता चलता है कि गह्यसमाज असंग की कृति नहीं है । गुह्यसमाज तीसरी या चौथी सती का ग्रन्थ है, ऐसा कोई प्रमाण नहीं है, हाँ, वह दो या अधिक शतियों के उपरान्त का हो सकता है । बागची (स्टडीज इन तन्त्रज, पृ० ४१) ने साधना सं० १५६ के लेखक असंग को योगाचार के महान् गुरु के रूप में नहीं माना है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org