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________________ १४ धर्मशास्त्र का इतिहाँस भिन्न हैं । तन्त्र ग्रन्थ तिब्बत, मंगोलिया, चीन, जापान, एवं दक्षिण-पूर्व एशिया में प्रचारित हुए। बहुत से संस्कृत तान्त्रिक ग्रन्थों के मूल रूप आज उपलब्ध नहीं हैं, किन्तु उनके कुछ तिब्बती अनुवाद उपलब्ध हो सके हैं२० । ऐसा कहा जाता है कि यदि उचित खोज की जाय तो तन्त्र पर ३०० ग्रन्थ प्राप्त हो सकते हैं (देखिए डा० बी० भट्टाचार्य, श्री रामवर्मा इंस्टीच्यूट आव रिसर्च, कोचीन, जिल्द १०, पृ० ८१ ) । तन्त्रों की सामान्य परिभाषा देना कठिन है । 'तन्त्र' शब्द बहुधा 'तन् ( फैलाना, तानना) एवं '' ( बचाना ) धातुओं से निष्पन्न माना जाता है। यह बहुत से विषयों को, जिनमें तत्त्व एवं मन्त्र भी सम्मिलित हैं, विस्तारित करता है और रक्षण देता है; अतः इसे 'तन्त्र' कहा जाता है २१ । सभी तन्त्रों में एक विषय समान रूप से पाया जाता है, यथा पाँच मकार । बहुधा उनमें धर्म, दर्शन, अन्धविश्वासमय सिद्धान्त, क्रियाओं, रीतियों, ज्योतिष फलित ज्योतिष, औषधि एवं शकुनों (निमित्तों) का समावेश पाया जाता है । बहुत सी बातों में वे पुराणों से मिलते-जुलते हैं । बौद्धों ने बौद्धधर्म के बहुत-से व्यक्तियों का देवकरण किया और कालान्तर में गणेश एवं सरस्वती जैसे कुछ हिन्दू देव-देवियों को भी ले लिया । अपेक्षाकृत पश्चात्कालीन ग्रन्थों में तन्त्रों को तीन दलों में बाँटा गया है- विष्णुक्रान्त, रथक्रान्त एवं अश्वत्रान्त और प्रत्येक में ६४ तन्त्र सम्मिलित हैं (देखिए तान्त्रिक टेक्ट्स, जिल्द १, आर्थर एवालोन द्वारा सम्पादित, भूमिका, पृ० २-४ ) । किन्तु ये संख्याएँ कल्पनात्मक सी लगती हैं । कुछ ग्रन्थों में एक तन्त्र दो वर्गों में रखा हुआ है । कुलार्णव-तन्त्र ( ३।६ - ७) ने ५ आम्नायों (पूर्व, पश्चिम, दक्षिण, उत्तर एवं ऊर्ध्व ) की चर्चा की है जो मोक्ष के मार्ग हैं । यही बात परशुरामकल्पसूत्र ( १-२ ) में भी पायी जाती है २२ । इसके अतिरिक्त तान्त्रिक पूजक भी तीन वर्गों में विभाजित हैं, यथा शैव, शाक्त एवं वैष्णव । बागची ( स्टडीज इन तन्त्रज, पृ० ३ ) का कथन है कि तान्त्रिक साहित्य स्तोत्रो ( जो तीन हैं), पीठ एवं आम्नाय में विभक्त हैं । सौन्दर्यलहरी ने, जो कुछ लोगों के मत से शंकराचार्यकृत है, ६४ तन्त्रों की चर्चा की है ( ३१ वें श्लोक में आया है - 'चतुष्षष्टया तन्त्र: ' ), जो २०. शाक्त सिद्धान्तों एवं प्रयोगों के विषय में कुछ जानकारी देने के लिए निम्नोक्त ग्रन्थ अवलोकनीय हैं : आर० जी० भण्डारकर कृत 'वैष्णविज्म, शैविज्म आदि' (संग्रहीत ग्रन्थ, जिल्द ४, पृ० २०३ - २१० ) ; सर जॉन वुड्रॉफ कृत 'शक्ति एवं शाक्त' (१६२० ); आर्थर एवालोन ( सर जॉन वुड्रोफ) कृत 'सर्पेण्ट पावर'; ई० ए० पेयने कृत 'दि शाक्तज' (आक्सफोर्ड यूनि० प्रेस, १८३३ ) ; डा० सुधेन्दु कुमार दास कृत 'शक्ति और डिवाइन पावर' ( कलकत्ता यूनि० १६४५); डा० पी० सी० चक्रवर्ती कृत 'डाक्ट्रिन आव शक्ति इन इण्डियन लिटरेचर (१६४० ) । देखिये प्रो० बागची का 'स्टडीज इन तन्त्रज' पृ० १-३ ( कम्बुज या कम्बोडिया में लगभग ८०० ई० के चार तान्त्रिक बातों का प्रवेश, यथा -- शिरश्छेद, विनाशिख, सम्मोह एवं नयोत्तर) तथा डा० आर० सी० मजूमदार कृत 'इंस्क्रिप्शंस फ्राम कम्बुज' (कलकत्ता, १८५३), पृ० ३६२ - ३७३ - ३७४ एवं जे० आर० ए० एस० ( १६५०), पृ० १६३-६५, जहाँ मुस्लिम मलाया में शक्तिवाद के अवशेषों का उल्लेख है । २१. तनोति विपुलानर्थान् तत्त्वमन्त्रसमन्वितान् । त्राण च कुरुते यस्मात् तन्त्रभित्यभिधीयते ॥ २२. भगवान् परमशिवभट्टारक. भगवत्या भैरव्या स्वात्माभिन्नया पृष्टः पचभिर्मुखः पञ्चाम्नायान परमार्थसारभूतान् प्रणिनाय । परशुरामकल्पसूत्र ( ११२ ) । कुछ ऐसे भी ग्रन्थ हैं जो पाँचों आम्नायों के मन्त्रों एवं ध्यानों की चर्चा करते हैं, यथा-डकन कालेज पाण्डुलिपि, सं० ३६४ (१८८२-८३) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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