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तान्त्रिक सिद्धान्त एवं धर्मशास्त्र
वरुण, अग्नि एवं मरुतों से उनकी पत्नियों के रूप में सम्बन्धित हैं। 'मैं इन्द्राणी, वरुणानी एवं अग्नायी को अपने कल्याण एवं सोम पीने के लिए बुलाता हूँ' (ऋ० १।२२।१२); 'देवों की पत्नियाँ आहुति को ग्रहण करें, यथाइन्द्राणी, अग्नायी, अश्विनों की ज्योति (पत्नी), रोदसी; वरुणानी (हमारी स्तुति) सुनें; देवियाँ स्त्रियों के उचित काल पर आहति ग्रहण करें' १५ । किन्तु इतना अवश्य कहा जा सकता है कि ये देवियाँ ऋग्वेद में बहुत गौण महत्त्व रखती हैं, अर्थात् उनका कार्य अप्रधान ही है। पश्चात्कालीन देवी या शक्ति से इन वैदिक देवियों का कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं है। इन्द्राणी का आह्वान रक्षा के लिए किया गया है (ऋ० १०२२।१२, २॥३२॥८, ५१४६१८, १०८६।११-१२) । ऋ० (५१४६१८) में इन्द्राणी एवं अन्य तीन को 'देवपत्नी' एवं 'ग्ना' कहा गया है। ऋ० (१।६१८) में ऐसा आया है कि जब इन्द्र ने राक्षस अहि को मारा तो देवपत्नियों, ग्नाओं ने पूजा का गान बुना (बनाया)। 'ग्ना' शब्द ऋ० में २० बार आया है, वह संज्ञा, कर्म, करण एवं अधिकरण कारकों में आया है, और पत्नी के लिए भारोपीय शब्द है । देखिए निरुक्त (३।२१) जहाँ 'मेना' एवं 'ग्ना' शब्द आये हैं।
__केनोपनिषद् में उमा हैमवती (हिमवान् की पुत्री) अग्नि, वायु एवं इन्द्र से ब्रह्म के विषय में कहती है (३।१२) । श्वेताश्वतरोपनिषद् में ऐसा आया है कि उन्होंने (ब्राह्मणों ने) ध्यान एवं योग से संपृक्त होकर शक्ति को देखा, जो परमात्मा से पृथक् नहीं थी तथा अपने गुणों (सत्त्व, रज एवं तम) से निगढ़ (अव्यक्त, छिपी) थी। इसी उपनिषद् (६८) में में ब्रह्म को परमोच्च शक्ति वाला कहा गया है १६ और शंकराचार्य ने वेदान्तसूत्र (२।१।२४) में इस वचन को उद्धृत किया है । वे० सू० (२।१।३०) के भाष्य एवं सूत्र में ब्रह्म सर्वशक्तिसम्पन्न कहा गया है । और देखिए श्वेताश्व० (४१) । नारायणोपनिषद् (२१) में दुर्गा-देवी का आह्वान है--'मैं जलती हुई, अग्नि के समान वर्णवाली, तप से चमकती हुई एवं धर्म-कर्म फल देने वाली देवी दुर्गा की शरण में हूँ; हे अत्यन्त शक्तिवाली देवी, मैं तुम्हारी शक्ति को प्रणाम करता हूँ। राघवभट्ट ने दृढतापूर्वक कहा है कि तन्त्र सम्प्रदाय श्रुति पर आधृत है, जैसा कि रामपूर्वोत्तरतापनी
१५. इन्द्राणीमुप हवये वरुणानों स्वस्तये। अग्नायों सोमपीतये। ऋ० ११२२।१२; उत ग्ना व्यन्तु देवपत्नीरिन्द्राण्यग्नाग्यश्विनी राट् । आ रोदसी वरुणानी शृणोतु व्यन्तु देवीर्य ऋतुर्जनीनाम् ॥ ऋ० (१४६।८)। सूर्या, अश्विनों की पत्नी कही गयो है (ऋ० १०८५८-६); यास्क ने ऋ० (१४६८) को व्याख्या निरुक्त (१२।४६) में की है और रोदसी को रुद्र की पत्नी कहा है। ऋ० (५॥५६॥८) में आया है कि मरुतों के रथ पर रोदसी है; ऋ० (२६१।४) में ऐसा उल्लेख है कि मरुतों को एक सुन्दर स्त्री है। ऋ० (६॥५०॥५) में रोदसी को देवी कहा गया है और वह मरुतों से मिश्रित मानी गयी है । ऋ० (१११६७।४ एवं ६६६६) रोदसी मरुतों से सम्बन्धित है।
१६. ते ध्यानयोगानुगता अपश्यन्देवात्मशक्ति स्वगुणनिगूढाम् । श्वेताश्व० ११३; परास्य शक्तिविविधव श्रयते स्वाभाविको ज्ञानबलक्रिया च ॥ श्वेताश्व० ६८; सर्वोपेता च तद्दर्शनात् । वेदान्तसूत्र २।१।३०, जिस पर शंकर को टीका है-'एकस्यापि ब्रह्मणो विचित्रशक्तियोगादुपपद्यते विचित्रो विकारप्रपञ्च इति।' किन्तु पश्चात्कालीन शाक्त सिद्धान्त से यह सर्वथा भिन्न है । यहाँ पर ब्रह्म विभिन्न शक्तियों वाला कहा गया है, किन्तु शाक्तों में शक्ति स्त्री तत्त्व है और वह परमतत्त्व है। यह सम्भव है कि शक्ति के इस वेदान्तसिद्धान्त ने पश्चात्कालीन एक तत्त्व वाली तथा सर्वत्र छायी रहने वाली शक्ति की उद्भावना को हो ।
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