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________________ योग एवं धर्मशास्त्र २५३ की नहीं) में वर्णित है तथा चरकसंहिता की टीका ( लगभग १०६० ई० ) चक्रपाणि में उल्लिखित है कि पतञ्जलि (जो शेष के अवतार कहे जाते हैं) व्याकरण, योग एवं औषधि पर ग्रन्थ लिखे । १० हम यहाँ पर दोनों पतञ्जलियों की समानुरूपता एवं दोनों की तिथियों के प्रश्नों पर प्रकाश नहीं डाल सकते, क्योंकि वह विषयान्तर हो जायगा । वास्तव में दोनों को पृथक्-पृथक् सिद्ध करने के लिए अभी तक सुपुष्ट प्रमाण उपस्थित नहीं किये जा सके हैं। चरक के ग्रन्थ का सुधार पतञ्जलि द्वारा हुआ कि नहीं, यह अभी संदेहात्मक है । शान्तिपर्व में चिकित्सा के प्रवर्तक कृष्णात्रेय कहे गये हैं न कि चरक या पतञ्जलि । चरकसंहिता ने अध्यायों के आरम्भ में 'इति ह स्माह भगवानात्रेयः' लिखा है । चरक (१।१।२३ ) में लिखित है कि मुनि भरद्वाज ने इन्द्र से आयुर्वेद का अध्ययन किया। उनके शिष्य थे पुनर्वसु आत्रेय, जिनके छह शिष्य थे, यथा-अग्निवेश, भेड, जातुकर्ण, पराशर, हारीत एवं केशरपाणि । सर्वप्रथम अग्निवेश ने आयुर्वेद पर एक ग्रन्थ लिखा और उसे आत्रेय को सुनाया, ऐसा ही भेड आदि ने भी किया। चरकसंहिता (१।११।७५ ) के 'त्रिषणीय' नामक अध्याय में कृष्णात्रेय के तम विशेषतः वर्णित हैं । अतः ऐसा प्रतीत होता है कि कृष्णात्रेय उन आत्रेय से भिन्न हैं जो चरक के अध्यायों में श्रद्धापूर्वक उल्लिखित हैं । " " यहाँ तक कि अश्वघोष के बुद्धचरित में आत्रेय को वैद्यक शास्त्र का प्रथम प्रवर्तक कहा गया है । १२ पतञ्जलि ने योग एवं व्याकरण पर ग्रन्थ लिखे, यह एक परम्परा है जो भर्तृहरि के वाक्यपदीय से अपेक्षाकृत पुरानी है। इस बात को तर्क द्वारा सिद्ध किया जा सकता है। इस ग्रन्थ ने अपने प्रथम विभाग ( ब्रह्मकाण्ड) में लिखा है कि काय, वाणी एवं बुद्धि में जो मल (दोष) उपस्थित होते हैं वे वैद्यक ( चिकित्सा), व्याकरण (लक्षण) एवं अध्यात्म-शास्त्र द्वारा दूर किये जा सकते हैं। इसके उपरान्त इसने महाभाष्य की प्रशंसा में लिखा है'अलब्धगाध गाम्भीर्यादुत्तान इव सौष्ठवात्' (वाक्यपदीय २।४८५), जिस पर टीकाकार ने टिप्पणी की है कि ब्रह्मtatus के श्लोक में महाभाष्य का लेखक प्रशंसित है और दूसरे श्लोक में स्वयं भाष्य की प्रशंसा । इससे प्रकट होता है कि टीकाकार के मत से वाक्यदीय ने वैद्यक, व्याकरण एवं अध्यात्म ( अर्थात् योग ) शास्त्रों को पतञ्जलि द्वारा लिखित माना है । १०. पातञ्जल - महाभाष्य चरकप्रतिसंस्कृतैः । मनोवाक्कायदोषाणां हर्त्रेऽहिपतये नमः ॥ चरक की टीका का आरम्भिक श्लोक । इसी प्रकार का दूसरा श्लोक है— योगेन चित्तस्य पदेन वाचा मलं शरीरस्य च वैद्यकेन । योsपाकरोत्तं प्रवरं मुनीनां पतञ्जलिं प्राञ्जलिरानतोऽस्मि ॥ विज्ञानभिक्षु के योग वार्तिक में उल्लिखित । ११. वेदविद्वेद भगवान् वेदाङ्गानि बृहस्पतिः । भार्गवो नीतिशास्त्रं च जगाद जगतो हितम् ॥ गान्धवं नारदो वेदं भरद्वाजो धनुर्ग्रहम् । देवर्षि चरितंगार्ग्यः कृष्णात्रेयश्चिकित्सितम् । न्यायतन्त्राण्यनेकानि तैस्तैरुक्तानि वादिभिः ॥ शान्ति० (२०३।१८ - २०, चित्रशाला २१०।२०- २२ ) । १२. चिकित्सितं यच्च चकार नात्रिः पश्चात्तदात्रेय ऋषिर्जगाद ॥ बुद्धचरित ( ११५० ) । अश्वघोष को ईसा के पश्चात् दूसरी शती का माना जाता है । १३. कायवाग्बुद्धिविषया ये मलाः समवस्थिताः । चिकित्सा -लक्षणाध्यात्मशास्त्रस्तेषां विशुद्धयः ॥ वाक्यपदीय (१।१४८); अलब्धगाधे गाम्भीर्यादुतान इव सौष्ठवात् । वाक्यपदीय ( २०४८५ ) ; तदेवं ब्रह्मकाण्डे 'कायवाग्बुद्धिविषया ये मलाः - इत्यादिश्लोकेन भाष्यकारप्रशंसा उक्ता, इह चैव भाष्यप्रशंसेति शास्त्रस्य शास्त्रकर्तुश्च टीकाकुता महतोपर्वाणता । हेलाराज की टीका । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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