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________________ धर्मशास्त्र एवं सांस्य २४३ है वह दार्शनिक पद्धति जिसमें २५ तत्त्वों (प्रकृति, पुरुष एवं अन्य) की धारणा है। इसी अर्थ में यह शब्द एक बार गीता (१८।१३ सांख्ये कृतान्ते प्रोक्तानि...) में भी प्रयुक्त हुआ है। मत्स्य० ने भी सांख्य के इस स्वरूप पर बल दिया है। अमरकोश के अनुसार 'संख्या' का एक अन्य अर्थ भी है (चर्चा संख्या विचारणा), यथा-बौद्धिक जाँच या विचार करना; और 'सांख्य' शब्द की व्युत्पत्ति इससे की जा सकती है 'बौद्धिक जाँच या विचारणा की पद्धति', इसका पंल्लिग में दार्शनिक अर्थ है, 'तदधीते तद्वेद' (पा० ४।२।४६), जिसका अर्थ है, 'सांख्यं वेद' ('संख्या सम्यग् बुद्धिवैदिकी तया वर्तन्ते इति सांख्याः' भामती, वे० सू० भाष्य, २।११३)। भामती ने दूसरे अर्थ में इसे प्रयुक्त किया है। सामान्य अर्थ में सांख्य का अर्थ है 'तत्त्वविज्ञान' (अन्तिम तत्त्व का ज्ञान, जिसमें वेदान्त भी सम्मिलित है) या 'वह व्यक्ति जो अन्तिम तत्त्व को जानता है।' 'सांख्य' शब्द का प्रयोग भगवद्गीता में बहुधा तत्त्वविज्ञान (२।३६, १५, १३।२४) एवं तत्त्वज्ञानी (३३, २५) के अर्थ में हुआ है। कुछ अति प्राचीन संस्कृत ग्रन्थों में कारिका के सांख्यसिद्धान्तों के समान कुछ तत्त्वों का उल्लेख मिलता है। अश्वघोष के बुद्धचरित (अध्याय--१३।१७) में अराड़ एवं गौतम (भावी बुद्ध) की बातचीत में प्रकृति, पाँच तत्त्वों, अहंकार, बुद्धि, इन्द्रियों, ज्ञान के पदार्थों आदि का उल्लेख है। यद्यपि तत्त्वों का उल्लेख हुआ है किन्तु सांख्य के सिद्धान्तों से अन्य बातें मेल नहीं खातीं। चरकसंहिता (शारीरस्थान, अध्याय १, श्लोक १७, ३६, ६३-६६) में कुछ ऐसे सिद्धान्त हैं जो सांख्यकारिका की पद्धति से मेल खाते हैं और श्लोक १५१ ने योगियों एवं सांख्यों की ओर संकेत किया है। मक्त आत्मा को ब्रह्म में विलीन होते बताया गया है। अत: वह कठ एवं श्वेताश्व० उपनिषदों के दर्शन के समान-सा है। सुश्रुतसंहिता (शारीरस्थान, अध्याय १, ३, ४-६, ८-६) ने सांख्य पर प्रकाश डाला है और वह बुद्धचरित एवं चरकसंहिता की अपेक्षा सांख्य सिद्धान्त के बहुत सन्निकट है।४। हमने इस अध्याय के आरम्म में ही देख लिया है कि मनु आदि के ग्रन्थों में प्रधान के सिद्धान्त की ओर संकेत मिल जाता है। मनु (१।१५) ने सृष्टि की चर्चा करते हुए महान्, तीन गुणों, पाँच इन्द्रियों एवं उनके पदार्थों का उल्लेख किया है। मनु (१।२७) ने पाँच तत्त्वों की पाँच तन्मात्राओं का उल्लेख किया है। मनुस्मृति (१२।२४) में सत्त्व, रज एवं तम का उल्लेख है, और देखिए १२।२६, २६, ३०-३८, १२।४०, मनु में आया है कि जो सत्त्वगुणी होते हैं वे देव हो जाते हैं, जो रजोगुणी होते हैं वे मानव हो जाते हैं तथा जो तमोगुणी होते हैं वे हीन पशु हो ३४. सर्वभूतानां कारणमकारणं सत्त्वरजस्तमोलक्षणमष्टरूपमखिलस्य जगतः सम्भवहेतुरव्यक्तं नाम । तदेकं बहूनां क्षेत्रज्ञानामधिष्ठानं समुद्र इवौदकानां भावानाम् । सुश्रुत० ११३; तस्मादव्यक्तान्महानुत्पद्यते तल्लिङ्ग एव तल्लिङ्गाच्च महतस्तल्लक्षण एवाहडकार उत्पद्यते स त्रिविधो वैकारिकस्तैजसो भूतादिरिति । सुश्रुत १२४ तत्र बुद्धीन्द्रियाणि शब्दादयो विषयाः कर्मेन्द्रियाणां वचनादानानन्दविसर्गविहरणानि । सुश्रुत ११५; अव्यक्तं महानहंकारः पञ्च तन्मात्राणि चेत्यष्टौ प्रकृतयः, शेषाश्च षोडश विकाराः ॥६; तत्र सर्व एवाचे तन एष वर्गः पुरुषः पञ्चविशतितमः कार्यकारणसंयुक्तश्चेतयिता भवति । सत्यप्यचैतन्ये प्रधानस्य पुरुषः कैवल्यार्थ प्रवृत्तिमुपविशन्ति क्षीरावीश्चात्र हेतूनुदाहरन्ति। १८ मिलाइए सां० का० (५७) 'वत्सविवृद्धिनिमित्तं क्षीरस्य यथा प्रवृत्तिरमस्य । पुरुषविमोक्षानिमित्तं तथा प्रवृत्तिः प्रधानस्य ॥' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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