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________________ धर्मशास्त्र एवं सांस्य शान्तिपर्व में कुछ अन्य अध्याय भी हैं जहाँ पर सांख्य सिद्धान्तों एवं तत्सम्बन्धी पारिम षिक शब्दों का उल्लेख हुआ है, किन्तु वे वासुदेव या परमात्मा की ओर संकेत करते हैं। उदाहरणार्थ, अध्याय ३४० (श्लोक २३, २४, २६-२७, ६४-६५) में नारद से स्वयं भगवान् ने सांख्य के कुछ सिद्धान्तों का विवेचन किया है, यथा २४ तत्त्व एवं पुरुष (२५वाँ तत्त्व), तीनों गुण, पुरुष (जो क्षेत्रज्ञ एवं भोक्ता है), आचार्य (जो सांख्य के विषय में निश्चित निष्कर्षों तक पहुँच गये हैं) लोग उसे ईश्वर कहते हैं जो सूर्य के मण्डल में कपिल के समान है, वह हिरण्यगर्भ, जो वेद में प्रशंसित है और योगशास्त्र का प्रणेता है, 'मैं' ही हूँ। न-केवल शान्तिपर्व में प्रत्युत महाभारत के अन्य पर्यों में भी सांख्य सिद्धान्त का विवेचन हुआ है। उदाहरणार्थ, आश्वमेधिक (३५१४७-४८) ने सत्त्व, रज एवं तम का आत्मगुणों के रूप में उल्लेख किया है और उनके सन्तुलन की चर्चा की है। इसी अध्याय में, अन्यत्र २४ तत्त्वों का उल्लेख है, यथा-अव्यक्त, महान्, अहंकार आदि तथा तीनों गुणों की चर्चा है। आसुरि का उल्लेख सांख्यकारिका द्वारा कपिल के शिष्य के रूप में हुआ है, योगसूत्र-भाष्य (१२२५) एवं शान्तिपर्व (अध्याय ३०६) में भी इनकी चर्चा उद्धरणों में हुई है। किन्तु इनके द्वारा लिखित कोई ग्रन्थ नहीं है और किसी लेखक ने इनका कोई उद्धरण भी नहीं दिया है (केवल एक जैन लेखक हरिभद्र ने इनका एक श्लोक उदधत किया है)। कपिल किंवदन्तीपूर्ण एवं पुराणकथात्मक व्यक्ति हैं। ऋग्वेद (१०।२७।१६) में कपिल दस अंगिरसों में परिगणित हैं। कपिल-सम्बन्धी भ्रामक गाथाओं के लिए देखिए सांख्य-प्रवचन-भाष्य पर हाल की भूमिका (प० १४) । महाभारत-सम्बन्धी संकेतों को हमने पहले ही देख लिया है। वनपर्व (२२१।२६) में कपिल को सांख्ययोग का प्रवर्तक कहा गया है, परमर्षि की उपाधि दी गयी है और अग्नि का अवतार माना गया है। मत्स्यपुराण (१०२।१७-१८) में आया है कि ब्रह्मा के सात पुत्रों, यथा--सनक, सनन्द, सनातन, कपिल, आसुरि, वोढ़ एवं पञ्चशिख को जल-तर्पण करना चाहिए । वामन-पुराण (६०७०) ने कपिल (सांख्य के ज्ञाता के रूप में), वोढ, आसुरि, पञ्चशिख (योगयुक्त के रूप में) का उल्लेख किया है और कहा है कि सनत्कुमार ब्रह्मा के पास योगविद्या सीखने के लिए गये । कात्यायन के स्नानसूत्र (कण्डिका ३) में, जो पारस्करगृह्यसूत्र से सम्बन्धित है, निर्दिष्ट केवल ये ही ऐसे सात व्यक्ति हैं जिन्हें ऋषियों के साथ तर्पण किया जाता है। भागवतपुराण (११३।१०) में कपिल को विष्ण का पाँचवाँ अवतार कहा गया है, उन्हें सिद्धेश की उपाधि दी गयी है तथा आसुरि का सांख्य-शिक्षक कहा गया है (उस सांख्य की शिक्षा देने वाला कहा गया है जो अब समय के फेर से पुराना पड़ गया) । गीता (१०।२६, सिद्धानां कपिलो मनिः) ने कपिल को एक मुनि तथा सिद्धों में सर्वश्रेष्ठ माना है। सांख्यकारिका ने उन्हें एक मनि के रूप में माना है। कूर्मपुराण (२१७१७) ने गीता की ही बात कही है। २६. मनुष्यास्तर्पयेद् भक्त्या ब्रह्मपुत्रानुषींस्तथा। सनकश्च सनन्दश्च तृतीयश्च सनातनः ॥ कपिलश्चासरि. श्चैव वोढुः पञ्चशिखस्तथा। सर्वे ते तृप्तिमायान्तु मद्दत्तेनाम्बुना सदा ॥ मत्स्य० (१०२।१७-१८)। ब्रह्माण्ड पुराण (४।२।२७२-२७४) ने ब्रह्मा के इन सात पुत्रों का उल्लेख किया है किन्तु भिन्न क्रम से। वामनपुराण (६०६६-७०) ने सातों पुत्रों को इस क्रम में रखा है--सनत्कुमार, सनातन, सनक, सनन्दन, कपिल, वोढ एवं आरि और अन्त में पञ्चशिख को जोड़ दिया गया है। बृहद्योगियाज्ञवल्क्यस्मृति (७१६६) में ये सातों ब्रह्मा के मानव पुत्र कहे गये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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