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धर्मशास्त्र एवं सांख्य
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मिश्र से पुरानी है । विज्ञानभिक्षु ने लगभग १५५० ई० में सांख्यप्रवचनसूत्र पर एक भाष्य लिखा । सूत्रकार एवं विज्ञानभिक्षु ने यह असम्भव मान्यता स्थापित करने का प्रयास किया है कि सांख्य सिद्धान्त की बातें ईश्वरवादी सिद्धान्त या अद्वैत वेदान्त के विरोध में नहीं पड़ती हैं । माठरवृत्ति (सांख्यकारिका ७१ ) ने कुछ ऐसे आचार्यों के नाम लिये हैं जो पञ्चशिख एवं ईश्वरकृष्ण के बीच में हुए थे, यथा - भार्गव, उलूक ( कौशिक ? ), वाल्मीकि, हारीत, देवल आदि, किन्तु जयमंगला ने पञ्चशिख के उपरान्त सांख्य के आचार्यों में गर्ग एवं गौतम को उल्लिखित किया है ( देखिए पं० ऐयस्वामी के संस्करण की टिप्पणी १, पृ० ६६) । परमार्थ (पं० ऐयस्वामी के संस्करण का पृ० ६८ ) के चीनी संस्करण से उद्घारित संस्कृत टीका का कथन है कि पञ्चशिख के उपरान्त आचार्यों एवं शिष्यों की परम्परा इस प्रकार है - पञ्चशिख - गार्ग्य-उलूक - वार्षगण - ईश्वरकृष्ण । इससे स्पष्ट है कि कम-से-कम पाँच या छह आचार्य पंचशिख एवं ईश्वरकृष्ण के बीच में हुए । युक्तिदीपिका के एक स्थल-मंग से युक्त वचन से प्रकट होता है कि कम-से-कम दस व्यक्ति पंचशिख एवं ईश्वरकृष्ण के बीच में हुए थे । यदि यह स्वीकार कर लिया जाय और यदि ईश्वरकृष्ण को २५० ई० प्रदान की जाय तो पंखशिख को ई० पू० प्रथम शताब्दी के उपरान्त किसी भी दशा में नहीं रखा जा सकता, प्रत्युत वे इससे भी प्राचीन हो सकते हैं । 'तेन च बहुधा कृतं तन्त्रम्' (सांख्यकारिका ७० ) पर युक्तिदीपिका ने भगवान् पंचशिख को 'दशम कुमार' (प्रजापति ? का दसवाँ पुत्र ) कहा है और ऐसा उद्घोषित किया है कि उन्होंने शास्त्र की व्याख्या बहुतों से की, यथा जनक एवं वसिष्ठ से, और इस प्रकार पञ्चशिख को शान्तिपर्व ( ३०८।२४ - २६ ) में उल्लिखित पंचशिख के समान माना है ।
वाचस्पति मिश्र ने योगसूत्रभाष्य ( २।२३ ) की अपनी टीका में सांख्य लेखकों के 'दर्शन' एवं 'अदर्शन' सम्बन्धी प्रश्न पर आठ वैकल्पिक दृष्टिकोण उपस्थित किये हैं और टिप्पणी की है कि इन आठ विकल्पों में चौथा सांख्य शास्त्र का वास्तविक सिद्धान्त है । लगभग पाँचवीं शताब्दी से सांख्यकारिका सांख्य सिद्धान्त पर एक प्रामाणिक ग्रन्थ मानी जाती रही है। सांख्यकारिका में आया है कि यह पवित्र शास्त्र कपिल मुनि द्वारा आसुरि को निरूपित किया गया, जिन्होंने इसे पञ्चशिख को दिया और पञ्चशिख ने इसे अन्य कई शिष्यों को दिया और यह आचार्यों एवं शिष्यों की परम्परा में ईश्वरकृष्ण के पास आया, जिन्होंने इसे आर्या श्लोकों में संक्षिप्त किया ।" यहाँ पर कपिल मुनि को सांख्य सिद्धान्त का प्रथम उद्घोषक कहा गया है ।
४. अस्य तु शास्त्रस्य भगवतोऽग्रे प्रवृत्तत्वात् न शास्त्रान्तरवत् वंशः शक्यो वर्ष सहस्रैरप्याख्यातुम् । संक्षेपेण तु द्वाव... ( छूट गया है) हारीत बाद्ध लि- कंरात - पौरिक - ऋषभेश्वर - पञ्चाधिकरण - पतंजलि - वार्षगण्यकौण्डिन्य - मूकाविकशिष्यपरम्परयागतं.. ... युक्ति० पू० १७५ ।
५. एतत्पवित्रमयं मुनिरासुरयेऽनुकम्पया प्रददौ । आसुरिरपि पञ्चशिखाय तेन च बहुधा कृतं तन्त्रम् ।। शिष्यपरम्परयागतमीश्वरकृष्णेन चैतदार्याभिः । संक्षिप्तमार्यमतिना सम्यग्विज्ञाय सिद्धान्तम् ॥ सां० का० ( ७०-७१) । यह ब्रष्टव्य है कि गौड़पाद ने केवल ६६ श्लोकों की टीका की है और इन दोनों तथा आगे के एक अन्य श्लोक को छोड़ दिया है, जो यों है— 'सप्तत्यां किल येऽर्थास्तेऽर्थाः कृत्स्नस्य षष्टितन्त्रस्य । आख्यायिका विरहिताः परवादविवजिताश्चापि ॥' जिसका तात्पर्य यह है कि ( पंचशिख के) सम्पूर्ण षष्टितन्त्र के सभी विषय (सांख्यकारिका के ) सत्तर श्लोकों में पाये जाते हैं, केवल उदाहरणस्वरूप दी गयी कहानियाँ एवं अन्य मत-मतान्तर छोड़ दिये गये हैं । सांख्यकारिका को सांख्यसप्तति एवं चीनी भाषा में 'सुवर्णसप्तति' कहा गया है।
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