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तान्त्रिक सिद्धान्त एवं धर्मशास्त्र
पश्चात्कालीम लेखकों ने इतना सरलतापूर्वक कह दिया होगा कि वे बुद्ध को उद्धृत कर रहे हैं। ये विरोध डा० भट्टाचार्य द्वारा उद्धत कमलशील के वक्तव्यों के विषय में भी उपस्थित किये जा सकते हैं, क्योंकि कमलशील एवं उनके गुरु बुद्ध के १२०० वर्ष उपरान्त हुए हैं।
पहले हिन्दू तन्त्रों का उद्भव हुआ कि बौद्ध तन्त्रों का? इसका उत्तर देना कठिन है। ऐसा लगता है कि दोनों का उद्भव एक ही काल में हुआ। देखिए ई० ए० पेयने कृत 'दि शाक्तज़' (पृ. ७०-७४) जहाँ पर मतों पर विवेचन उपस्थित किया गया है। साधनमाला (यह एक वज्रयानी कृति है जिसमें छोटे-छोटे ३१२ ग्रंथ हैं जो डा० भट्टाचार्य के मत से तीसरी शती से लेकर १२वीं शती तक प्रणीत होते
२वीं शती तक प्रणीत होते रहे हैं) में वजयान के चार पीठ (प्रमुख केन्द्र) कहे गये हैं, यथा--कामाख्या , सिरिहट्ट (या श्रीहट्ट), पूर्णगिरि एवं उड़डियान।१२ इनमें प्रथम दो क्रम से कामाख्या या कामरूप (गौहाटी से तीन मील दूर) एवं सिलहट हैं। अन्य दो स्थानों के विषय में मतैक्य नहीं है। म० म० ह० प्र० शास्त्री ने उड्डियान को (जो अधिकतर एक पीठ के रूप में वर्णित है) उड़ीसा कहा है। उनके पुत्र डा० बी० भट्टाचार्य के विचार से यह अत्यन्त सम्भव है कि वज्रयान तन्त्रवाद उड्डियान (बुद्धिस्ट इसोटेरिज्म), भूमिका पृ० ४६) से ही प्रादुर्भूत हुआ। डा० बागची (स्टडीज इन दि तन्त्रज, पृ० ३७-४०) ने अच्छे तर्कों के आधार पर ऐसा कहा है कि उड्डियान स्वात घाटी (भारत के पश्चिमोत्तर भाग में) के पास था। यही बात ग्रोस्सेट ('इन दि. फूटस्टेप्स आव बुद्ध', पृ० १०६-११०) ने भी कही है। बार्हस्पत्यसूत्र (एफ० डब्लू० टॉमस द्वारा सम्पादित) ने आठ शाक्त क्षेत्रों के नाम लिये हैं (३।१२३-१२४) । साधनमाला (जिल्द २, पृ० ७८) की भूमिका में डा० भट्टाचार्य ने ऐसा मत व्यक्त किया है कि हिन्दू तन्त्रों का मूल बौद्ध तन्त्रों में पाया जाता है। किन्तु विन्तरनित्ज़ (हिस्ट्री आव इण्डियन लिटरेचर, अंग्रेजी अनुवाद, जिल्द २, पृ० ४०१) का कथन है कि डा० भट्टाचार्य का यह मत तथ्यों के विरोध में पड़ता है। प्रस्तुत लेखक विन्तरनित्ज़ के इस मत का समर्थन करता है।
यद्यपि डा. भट्टाचार्य ने यह स्वीकार किया है कि बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म ने आरम्भिक काल में हिन्दु देवों का सहारा लिया, तब भी उन्होंने (बुद्धिस्ट इसोटेरिज्म की भूमिका, पृ० १४७) कहा है-"बिना विरोधाभास के भय के ऐसी घोषणा करना सम्भव है कि बौद्धों ने ही, सर्वप्रथम अपने धर्म में तन्त्रवाद का श्रीगणेश किया और हिन्दूओं ने उनसे आगे चलकर उसे उधार लिया।" प्राचीन भारतीयों को मारण-मोहन
१२. ऐसा प्रतीत होता है कि कुछ तन्त्र ग्रन्थों में पांच पीठ उल्लिखित हैं (हरप्रसाद शास्त्री के मतानुसार, नेपाल ताड़पत्र एवं कागद की चुनी हुई कागद को पाण्डुलिपियों का कैटलॉग, नेपाल दरबार लाइब्रेरी, कलकत्ता, १६०५, १६०५, पृ० ८०), यथा-ओडियान (उड़ीसा में, हरप्रसाद शास्त्री के मत से), जाल (जलन्दर या जालन्धर में), पूर्ण, मतंग (श्रीशैल में) एवं कामाख्या (आसाम में)। ये पाँच पीठ शिव द्वारा प्रेषित ग्रन्थ में उल्लिखित हैं, अतः यह निर्विवाद कहा जा सकता है कि उस ग्रन्थ के पूर्व तन्त्रवाद सम्पूर्ण देश में फैल चुका था। साधनमाला (जिल्द १, पृ० ४५३ एवं ४५५) में उड्डियान, पूर्णगिरि, कामाख्या एवं सिरिहट्ट का उल्लेख है। कुलचूड़ामणितन्त्र
क्टस, जिल्द ४) ने छठे पटल श्लोक ३-७ में पांच पीठों का उल्लेख किया है, यथा-उड्डियान, काम रूप, कामाख्या, जालन्धर एवं पूर्णगिरि (देखिए तीसरा पटल भी, ५६-६१)। इण्डियन हिस्टॉरिकल क्वार्टरल (जिल्व ११, ५० १४२-१४४) में तर्क दिया गया है कि उडियान एवं शाहोरे बंगाल में हैं । देवीभागवत (७।३०।५५-८०) ने एक सौ से अधिक देवियों के क्षेत्रों का उल्लेख किया है।
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