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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास पीठ थे, चीन या तिब्बत में तान्त्रिक प्रयोगों का प्रचलन था और ऐसा कहा जाता है कि बुद्ध ने ही ऐसे प्रयोगों की शिक्षा दी है, जो कि बुद्ध की उदात्त शिक्षा के प्रति एक कृत्रिम लेख एवं दुष्ट उपहास-सा लगता है । ऐन्द्रजालिक (मायावी) मन्त्र अथर्ववेद में बहुत संख्या में पाये जाते हैं और ऋग्वेद में कुछ रहस्यवादी शब्द या वचन प्रयुक्त हुए हैं; यथा-'वषट् (ऋ० ७६६७, ७।१००१७ आदि) एवं 'स्वाहा' शब्द (ऋ० १।१३।१२, ५।५।११, ७।२।११) । नींद लाने वाला मन्त्र ऋग्वेद (७।५५५-८) में आया है; ये मन्त्र अथर्ववेद (४।५।६,५, १, ३) में भी आये हैं, और सम्भवत: यह मन्त्र पुरोहित द्वारा उस भद्र व्यक्ति के लिए कहा जाता है जो अनिद्रा से रुग्ण रहता है। कुछ पाश्चात्य विद्वानों का कथन है कि यह मन्त्र प्रेमी द्वारा अपनी प्रेमिका को गुप्त प्रेम के लिए अथवा चोरिकाभेंट के लिए प्रयुक्त होता है, किन्तु इसमें कहीं भी प्रेम शब्द की गन्ध नहीं मिलती है। हम पाश्चात्य विद्वानों की बात स्वीकार नहीं कर सकते। ऋ० (१०।१४५) का उपयोग सौत के विरोध में हुआ है , जिसका प्रथम मन्त्र यों है-'मैं इस ओषधि को खोदता हूँ, यह अत्यन्त शक्तिशाली लता है, जिसके द्वारा एक स्त्री अपनी सौत को पीड़ित करती है, और जिसके द्वारा वह अपने पति को (केवल अपने लिए) प्राप्त करती है। ऋग्वेद में बहुधा ऐसे जादूगरों का उल्लेख मिलता है जो अधिकांश में अनार्य कहे गये हैं और उन्हें नृतदेव (झूठे देवों की पूजा करने वाले), शिश्नदेव (लम्पट, ऋ० ७।२१।५, १०६६।३) की संज्ञाएँ प्राप्त हैं। स्थानाभाव के कारण हम विस्तार में यहाँ नहीं जा सकेंगे। तान्त्रिक ग्रन्थों में छह क्रूर कर्मों का वर्णन है, जिनका उल्लेख आगे किया जायगा। वैदिक काल में ऐसी कल्पना थी कि कुछ दुष्ट लोग, माया, मन्त्र आदि से लोगों एवं पशुओं को मार सकते हैं या उन्हें बीमार कर सकते हैं। दो सक्त (७११०४ एवं १०८७, दोनों में २५ मन्त्र हैं) इस बात को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं कि ऋग्वेदीय लोग अभिचार से डरते थे। दोनों प्रकार के सूक्तों में 'यातुधान' (जो अभिचार करता है) एवं 'रक्षस्' (दुष्ट आत्मा) शब्द आये हैं , 'यातु' शब्द 'जादू' (या जादू) ही है जो भारतीय भाषाओं में प्रयुक्त होता है। पिशाचियाँ (पिशाचिनियाँ) भी होती थीं .(ऋ० १।१३३।५ : हे इन्द्र , रक्तिम एवं शक्तिशाली पिशाची को नष्ट कर दो और सभी दुष्ट आत्माओं को मार डालो ।) यहाँ ऋग्वेद से कुछ मन्त्र अनुवादित हो रहे हैं—'मैं (वसिष्ठ) आज ही मर जाऊँ यदि मैं अभिचार प्रयोग करने वाला होऊँ या यदि मैंने किसी व्यक्ति के जीवन को जला डाला मात्रेण रुद्ररूपी भवेत्क्षणात् ॥...अतः कुलं समाश्रित्य सर्वसिद्धीश्वरो भव । मासेनाकर्षणं सिद्धिद्विमासे वाक्पतिर्भवेत् । ... शक्तिं बिना शिवोऽशक्तः किमन्ये जडबुद्धयः । इत्युक्त्वा बुद्धरूपी च कारयामास साधनम् ॥ कुरु विप्र महाशक्तिसेवनं मद्यसाधनम् ।...मदिरासाधनं कर्तुं जगाम कुलमण्डले । मद्यं मांसं तथा मत्स्य मुद्रा मैथुनमेव च ॥ पुनः पुनः साधयित्वा पूर्णयोगी बभूव सः॥ रुद्रयामल, १७ वा पटल, श्लोक १२१-१२३, १२५, १३५, १५२-१५३, १५७-१५८, १६०-१६१। ६. तन्त्रों में 'स्वाहा' शब्द (मन्त्रों में) अग्नि को पत्नी के अर्थ में भी आया है। देखिए तान्त्रिक टेक्ट्स, जिल्द ७, जहाँ स्वाहा को वह्निजाया, ज्वलनवल्लभा एवं द्विठ कहा गया है। और देखिए शारदातिलक (६।६२-६३) । ७. सस्तु माता सस्तु पिता सस्तु वा सस्तु विश्पतिः । ससन्तु सर्वे ज्ञातयः सस्त्वयमभितो जनः ॥ य आस्ते पश्च चरति यश्च पश्यति नो जनः । तेषां सं हन्मो अक्षाणि यथेदं हम्यं तथा ।...प्रोष्ठेशया वह्येशया नारीर्यास्तल्पशीवरीः । स्त्रियो याः पुण्यगन्धास्ताः सर्वाः स्वापयामसि ॥ ऋ० (७॥५५॥५-८) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002793
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 5
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size16 MB
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