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मीमांसा एवं धर्मशास्त्र
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एवं १७८ पर बादरि ( या वादरि) को पराशरों का एक उपविभाग माना है । अतः यह सम्भव था कि कतिपय व्यक्ति शतियों के उपरान्त भी जैमिनि या बादरायण के नाम ग्रहण कर सकते थे ।
शंकराचार्य के अत्यन्त प्रसिद्ध शिष्य सुरेश्वराचार्य की 'नैष्कर्म्यसिद्धि' की उक्तियों का उत्तर देना भी आवश्यक है। सुरेश्वराचार्य का कथन है कि जैमिनि का यह मन्तव्य नहीं है कि वेद के सभी वचन यज्ञिय कृत्यों से सम्बन्धित हैं; यदि वे वास्तव में वैसा विश्वास करते तो उन्होंने उस 'शारीरकसूत्र' का प्रणयन न किया होता, जिसका आरम्भ 'अथातो ब्रह्मजिज्ञासा' एवं 'जन्माद्यस्य यतः' से होता है और जिसमें सभी वेदान्तवचनों के अर्थ के विषय में खोज की बात पायी जाती है, जिसमें ब्रह्म के रूप का स्पष्ट निरूपण है और है गंभीर तर्क के साथ अपने शब्द का समर्थन, किन्तु उन्होंने शारीरक शास्त्र का प्रणयन अवश्य किया । इस वचन ( उक्ति) का तात्पर्य यह है कि जैमिनि ने ब्रह्म के ज्ञान एवं खोज पर शारीरक सूत्र नामक एक सूत्र -ग्रन्थ लिखा, जिसका आरम्भ उन्हीं
सूत्रों से हुआ जो विद्यमान वेदान्तसूत्र के प्रथम दो सूत्र कहे जाते हैं । १४ कर्नल जैकब ने नैष्कर्म्यसिद्धि के प्रथम संस्करण की भूमिका ( पृ० ३ ) में ऐसा विचार व्यक्त किया है कि नैष्कर्म्यसिद्धि ने जैमिनि को वेदान्तदर्शन का लेखक माना है । किन्तु उनका कथन त्रुटिपूर्ण है, क्योंकि सुरेश्वर ने जो कुछ कहा है वह यही है कि जैमिनि ने कर्ममीमांसा पर न केवल एक सूत्र -ग्रन्थ लिखा प्रत्युत उन्होंने ब्रह्ममीमांसा के सिद्धान्तों पर शारीरक सूत्र नामक एक ग्रन्थ भी लिखा, किन्तु उन्होंने ( सुरेश्वर त ) यह नहीं कहा है कि वेदान्तसूत्र का सम्पूर्ण ग्रन्थ जैमिनि द्वारा लिखित है । डा० बेल्वाल्कर ने (देखिए वेदान्त दर्शन पर गोपाल वसु मल्लिक लेक्चर्स, पृ० १४१-१४२) दो सिद्धान्त प्रतिपादित किये हैं, यथा—-(१) छान्दोग्योपनिषद् एवं बृहदारण्यकोपनिषद् तथा अन्य उपनिषदों की प्रत्येक शाखा के लिए पृथक्-पृथक् ब्रह्म-सूत्र लिखित थे, एवं ( २ ) जैमिनि का शारीरक सूत्र इसमें सम्मिलित कर लिया गया और वह विद्यमान ब्रह्मसूत्र के विषयों में प्रमुख स्थान रखता था । किन्तु प्रस्तुत लेखक इन दोनों सिद्धान्तों का विरोध करता है | यहाँ पर अति विस्तार के साथ कुछ कहा नहीं जा सकता, किन्तु इतना कह देना आवश्यक है कि डा० वेल्वाल्कर के कथन के पीछे कोई साक्ष्य नहीं है । यदि 'जन्माद्यस्य यतः' जैमिनि ( जो महाभारत एवं पुराणों द्वारा विशेष रूप से सामवेदी घोषित हैं) का ही एक सूत्र है तो वह सूत्र भाष्यकारों द्वारा तैत्तिरीयोपनिषद् के वचन पर आधारित क्यों माना जाता है ? छान्दोग्योपनिषद् एवं बृहदारण्यकोपनिषद् में प्रत्येक, अन्य आठ उपनिषदों (दस प्रमुख उपनिषदों में) से विस्तार में दुगुनी हैं और तैत्तिरीयोपनिषद् से ६ गुनी बड़ी हैं । अतः ये दोनों उपनिषदें विद्यमान ब्रह्मसूत्र में अधिक बार चर्चा का विषय रही हैं। दूसरा सिद्धान्त तो मात्र अनुमान है। हमें इस बात की पुष्टि के लिए कोई साक्ष्य नहीं प्राप्त होता कि वेदान्तसूत्र का प्रमुख भाग जैमिनि के शारीरक सूत्र से उठाकर रख लिया गया है, जबकि हमें वह (जैमिनि का शारीरक सूत्र ) अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है और न उससे कोई अन्य सूत्र ( ऊपर उद्धृत दो सूत्रों के अतिरिक्त ) कहीं किसी ग्रन्थ में उद्धृत हुए हैं ।
अब हम कुछ उन सूत्रों की चर्चा करेंगे जिनमें 'तदुक्तम्' शब्द आये हैं। कुल आठ सूत्रों में ये शब्द आये
१४. यतो न जैमिनेरयमभिप्राय आम्नायः सर्व एव क्रियार्थक इति । यदि हायमभिप्रायोऽभविष्यद् अथातो ब्रह्म जिज्ञासा, जन्माद्यस्य यतः - इत्येवमादिब्रह्म वस्तुस्वरूपमात्र याथात्म्यप्रकाशनपरं गम्भीरन्यायसन्दृब्धं सर्ववेदान्तार्थमीमांसनं श्रीमच्छारीरकं नासूत्र यिष्यत् असूत्रयच्च । तस्माज्जैमिनेरेवायमभिप्रायो यथैव विधिवाक्यानां स्वार्थमात्र प्रामाण्यमेवमेकात्म्यवाक्यानामप्यनधिगतवस्तुपरिच्छेदसाम्यादिति । नैष्कर्म्यसिद्धि, पू० ५४-५५ ( श्री कर्नल जैकब द्वारा सम्पादित, बी० एस० एस० १६०६) ।
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