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________________ बलिराज्य - महोत्सव, गोवर्धनपूजा, अन्नकूट, यमद्वितीया बलिप्रतिपदा को वामनपुराण में वीरप्रतिपदा और द्यूतप्रतिपदा भी कहा गया है ( कृत्यतत्त्व, पृ० ४५२) । पुराणों में आया है कि उस दिन पार्वती ने द्यूतक्रीड़ा में शंकर को हराया, जिससे शंकर दुखी एवं पार्वती प्रसन्न हुई । उस दिन की हार से वर्ष भर धन की हानि होती है और विजय से वर्ष कल्याणकारी होता है । भारत के कतिपय भागों में इस दिन जूआ खेला जाता है, और बहुत से लोग हारते हैं या जीतते हैं। नेपाल जसे छोटे राज्य में बलिप्रतिपदा के दिन सन् १९५५ ई० में ३० लाख रुपयों की बाजी हारी -जीती गयी थी ! इस दिन भी दीपदान होता है। ऐसा वचन है--' बलिराज्य के दिन दीपदान से लक्ष्मी स्थिर होती हैं, दीपदान से ही यह दीपावली कही गयी है । बलिराज्य आने पर जो दीपावली उत्सव नहीं मनाता, उसके घर में किस प्रकार दीप जलेंगे ?' (धर्मसिन्धु, पृ० १०६; पु० चि०, पृ० २४३ - २४४ ) । बलिराज्य चतुर्दशी से लेकर तीन दिनों तक चलता है। अन्य बातें यहाँ छोड़ी जा रही हैं। विशेष विस्तार से अध्ययन के लिए देखिए ध० सि० ( पृ० १०६), का० त० वि० ( पृ० ३२१), नि० सि० ( पृ० २०) आदि। प्रतिपदा को बहुत-से कृत्य होते हैं, यथा बलि पूजा, दीपदान, गौओं एवं बैलों की पूजा, गोवर्धन की पूजा, मार्गपाली ( सड़क की रक्षिका ) को बाँधना, नववस्त्र धारण, द्यूत-क्रीड़ा, पुरुषों एवं सधवा नारियों के समक्ष दीप घुमाना, एक शुभ माला को बाँधना। आजकल इनमें केवल दो-तीन ही किये जाते हैं, बलि पूजा, दीपदान एवं द्यूत-क्रीड़ा। अतः हम संक्षेप में ही लिखेंगे। गौओं, बछड़ों एवं बैलों को सजाकर उनकी पूजा दो मन्त्रों से की जाती है। इस दिन गायों को दुहा नहीं जाता, बैलों पर सामान नहीं ढोये जाते । यह कार्तिक प्रतिपदा को किया जाता है । यह जब द्वितीया से संयुक्त हो तो कृत्य नहीं करना चाहिए, क्योंकि पुत्र, पत्नी या धन की हानि होती है, अतः वैसी स्थिति में अमावास्या से युक्त प्रतिपदा ही मान्य ठहरायी गयी है। देवल के अनुसार प्रतिपदा को गौओं की पूजा से प्रजा, गौएँ एवं राजा समृद्धिशाली होते हैं । गोवर्धन पूजा में वे लोग, जो गोवर्धन पर्वत के पास रहते हैं, वहीं जाते हैं, और प्रातःकाल उसकी पूजा करते हैं, किन्तु वे लोग, जो दूर रहते हैं, गोबर से या भोज्यान्न से गोवर्धन बना लेते हैं या चित्र खींचकर सोलहों उपचारों से गोवर्धन एवं कृष्ण को पूजा करते हैं और मन्त्रों का पाठ करते हैं । उन मन्त्रों में इन्द्र द्वारा की गयी अतिवृष्टि से गोकुल को कृष्ण द्वारा बचाये जाने की घटना की ओर संकेत है। बड़े पैमाने पर नैवेद्य भोग लगाया जाता है। इसी से, जैसा कि स्मृतिकौस्तुभ ( पृ० १७४ ) में आया है, गोवर्धन पूजा को अन्नकूट ( भोजन का टीला या शिखर) भी कहा गया है ( विष्णुपुराण, ५।११।५-२५; वराह, १६४, पद्मपुराण) । आजकल बिहार एवं उड़ीसा में 'गायदौड़' (गायदाणु) नामक उत्सव होता है जो कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा को अपराह्न में सम्पादित होता है । उस दिन गायों के शरीर पर लाल एवं पीले रंग लगाये जाते हैं, सींगों पर तेल और गेरू लगाया जाता है । इस प्रकार से अलंकृत गौएँ एक छोटे छौने ( सूअर के बच्चे ) का पीछा करती हैं और अपने नोकीले सींगों से उसे मार डालती हैं। रस्सी से बँधे हुए छौने को ग्वाला लोग गायों के बीच फेंकते हैं और गाएँ भड़क कर उसका पीछा करती हैं और अपने सींगों से उसे दबाती हैं । यह दृश्य सचमुच बड़ा बीभत्स होता है। अपराह्न में ही इस प्रतिपदा को मार्गपाली -बन्धन कृत्य किया जाता है। अपने घर के आचार के अनुसार कुश या काश की रस्सी बनायी जाती है और पूर्व दिशा में स्थित किसी वृक्ष या लम्बे स्तम्भ में उसे बाँधा जाता है । उसका नमन करना होता है और मन्त्र के साथ प्रार्थना की जाती है। उस रस्सी के नीचे से सभी -- राजा, ब्राह्मण आदि गौओ, हाथियों के साथ निकलते हैं । इसी प्रकार उसी ढंग की रस्सी से रस्साकशी की जाती है। एक ओर राजकुमार लोग और दूसरी ओर निम्न जाति के लोग होते हैं । यह कृत्य किसी मन्दिर के समक्ष, या महल में या चौराहे पर किया जाता है और समान संख्या में लोग दोनों ओर लग जाते हैं। यदि निम्न जाति के लोग जीत जाते हैं तो समझा जाता है कि राजा उस वर्ष विजयी रहेगा ( आदित्यपुराण, नि० सि० पृ० २०२; , व्रतराज, पृ० Jain Education International ७७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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