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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास विजय के लिए नीराजन (दीप घुमाना) करना चाहिए। राजा को चाहिए कि वह अर्धरात्रि के समय राजधानी में घूमकर लोगों के आनन्दोत्सव का निरीक्षण करे। जब अर्धरात्रि बीत जाय और पुरुषों की आँखें नींद से मतवाली हो जायँ तो नारियों को चाहिए कि वे सूपों एवं ढोलकों को पीट-पीटकर शोर-गुल करें और इस प्रकार अपने गृह-प्रांगण से अलक्ष्मी को भगायें। कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा वर्ष की तीन अत्यन्त प्रमुख शुभ तिथियों में परिगणित होती है। ध० सि० (पृ० १०६) में आया है कि यद्यपि चतुर्दशी एवं उसके आगे के तीन दिन दीपावली की संज्ञा से विभूषित हैं; तथापि वह दिन जो स्वाति-नक्षत्र से संयुक्त है, अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। इस दिन भी अभ्यंग-स्नान (तैल-स्नान) करने का नियम है। इस तिथि पर सबसे महत्त्वपूर्ण कृत्य है बलि-पूजन । भविष्योत्तर० (१४०-४७-७३) में यह यों वर्णित है--रात्रि में पाँच प्रकार के रंगीन चूर्णों से खचित भूमि पर एक वृत्त पर दो हाथों वाले बलि की आकृति राजा द्वारा बनायी जानी चाहिए। आकृति पर सभी आभूषण हों, उसके पास विन्ध्यावलि (बलि की पत्नी) भी हो और चारों ओर से कूष्माण्ड, बाण, मुर आदि असुर घेरे हुए हों। मूर्ति या आकृति पर मुकुट एवं कर्णाभूषण हों। राजा को अपने मन्त्रियों एवं भाइयों के साथ प्रासाद के मध्य में भांति-भांति के कमलों से पूजा करनी चाहिए, चन्दन, धूप, नैवेद्य (मांस एवं मदिरा से युक्त) भोजन देना चाहिए और यह मन्त्र कहना चाहिए-“बलिराज नमस्तुभ्यं विरोचनसुत प्रभो। मविष्येन्द्र सुरारात पूजेयं प्रतिगृह्यताम्।" अर्थात् 'विरोचन के पुत्र राजा बलि, तुम्हें प्रणाम, देवों के शत्रु एवं भविष्य के इन्द्र, यह पूजा लो।' इसके उपरान्त उसे क्षत्रियों की गाथाओं पर आधारित नृत्यों, गानों, नाटकों आदि का अवलोकन कर रात्रि भर जागना चाहिए। सामान्य लोगों को भी अपने घरों में बलि की प्रतिमा को पर्यंक पर सजाना चाहिए। यह प्रतिमा चावल से बनी हुई होनी चाहिए और उस पर पुष्प एवं फल रखे रहने चाहिए। जो कुछ भी थोड़ा या अधिक दान इस अवसर पर किया जाता है वह अक्षय होता है और विष्णु को प्रसन्न करता है। कृत्यतत्त्व (पृ० ४५३) में आया है कि बलि को तीन पुष्पांजलियाँ दी जानी चाहिए। भविष्योत्तर ने जोड़ दिया है कि यह तिथि बलि के राज्य का विस्तार करती है, इस पर किये गये स्नान एवं दान सौगुना फल देते हैं। ___ यदि प्रतिपदा अमावास्या या द्वितीया से संयुक्त हो, तो बलि-पूजा, जिसका समय रात्रि है, अमावास्या से संयुक्त प्रतिपदा को की जानी चाहिए। यही बात माधव ने भी कही है (कालनिर्णय, पृ० २६)।। बलि विष्णुभक्त प्रह्लाद के पुत्र विरोचन का पुत्र था। वन० (२८१२) में आया है कि एक बार बलि ने अपने पितामह से पूछा कि 'कौन उत्तम है, क्षमा या तेज ।' शान्ति० (२२५।१३) में ऐसा उल्लेख है कि बलि ने ब्राह्मणों से ईर्ष्या की। बलि बहुत शक्तिमान् था, उसने देवों का तेज छीन लिया। बलि की गाथा ब्रह्म० (७३), कूर्म. (१।१७), वामन० (अध्याय ७७ एवं ९२), स्कन्द० (अध्याय २४५-२४६), भविष्योत्तर० (१४०) में आयी है। बलि ने अश्वमेध यज्ञ किया। विष्णु ने वामन रूप धारण किया और बलि से तीन पग भूमि माँगी। यद्यपि शुक्र ने बलि को सचेत कर दिया था कि वामन और कोई नहीं साक्षात् विष्णु हैं, तथापि बलि ने तीन पग भूमि देने की प्रतिज्ञा की। वामन ने अपना रूप बढ़ाया और दो पगों से स्वर्ग एवं भूमिलोक को नाप लिया। जब वामन ने तीसरे पग के लिए भूमि मांगी तो बलि ने अपनी गरदन बढ़ा दी और इस प्रकार बलि पाताल लोक में दबा दिया गया। विष्ण ने प्रसन्न होकर बलि को पाताल लोक का अधिपति बना दिया और उसे भविष्य में होने वाले इन्द्र की स्थिति प्रदान की। यह कथा अति प्राचीन है। महाभाष्य (पाणिनि, ३।१।२६) में आया है---'जब कोई बलि-बन्धन की कथा कहता है या रंगमंच पर उसे खेलता है तो ऐसा कहा जाता है 'बलि बन्धयति' (वह बलि को बांधता है), जब कि बलि बहुत पहले बन्दी हुआ था।' इससे प्रकट है कि बलि की कथा नाटकों या कविताओं में २००० वर्ष पहले आ गयी थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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