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विजया दशमी, दसहरा, दिवाली
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विरोध में देवी के साहसपूर्ण कृत्यों का भी उल्लेख होता है और नवरात्र के उपरान्त ही वह उत्सव होता है। दशहरा या 'दसेरा' शब्द 'दश' (दस) एवं 'अहन्' से ही बना है । इस शब्द एवं ऊपर वर्णित 'दुर्गोत्सव' के साथ आये 'दशहरा' अन्तर है। उत्तर भारत में विजया दशमी को दशहरा ( दसेरा ) मी कहा जाता है। दिवाली - दीपों के उत्सव को सम्पूर्ण भारत में मान्यता प्राप्त है । किन्तु इसके कृत्य विभिन्न प्रकार से विभिन्न युगों एवं विभिन्न प्रान्तों में सम्पादित होते रहे हैं। किसी देव या देवी के सम्मान में किया गया यह केवल एक उत्सव नहीं है, जैसा कि कृष्णजन्माष्टमी या नवरात्र है। यह चार या पाँच दिनों तक चलता है और इसमें कई पृथक्-पृथक् कृत्य हैं। दीपावली के दिवस तो तीन ही हैं। इसे अधिक ग्रन्थों में दीपावली और कहीं-कहीं दीपालिका ( भविष्योत्तर, अध्याय १४०, उपसंहार) संज्ञा दी हुई है । यदि इस उत्सव के किसी एक कृत्य पर विशेष बल दिया जाता है तो उसे सुखरात्रि ( राजमार्तण्ड, १३४६ - १३४८ एवं कालविवेक, पृ० २३२, ४०३ - ४०४), यक्षरात्रि (वात्स्यायन कामसूत्र, ११४१४२), सुखसुप्तिका ( व्रतप्रकाश, हेमाद्रि, व्रत, भाग २, पृ० ३४८ - ३४९ ) की संज्ञाएँ भी प्राप्त हो गयी हैं। प्रो० पी० के० गोडे ने इस उत्सव की प्राचीनता पर विद्वत्तापूर्ण प्रकाश डाला है (गंगानाथ झा इंस्टीच्यूट जर्नल, जिल्द ३, पृ० २०५-२१६) । भविष्योत्तर में दो अर्थ वाला एक पद्य मिलता है। नि० सि०, कालतत्त्वविवेचन ( पृ० ३१५) के अनुसार चतुर्दशी, अमावास्या एवं कार्तिक प्रतिपदा के तीन दिनों तक यह कौमुदी - उत्सव होता है । "
सभी बातों के संयोग से दीपावली लगभग ५ दिनों तक चलती रहती है। इसमें पाँच दिनों तक पाँच कृत्य होते हैं, यथा धन-पूजा, नरकासुर पर विष्णु-विजय का उत्सव, लक्ष्मी पूजा, बलि पर विष्णु की विजय का उत्सव, द्यूत - दिवस एवं भाई-बहिन - प्यार के आदान-प्रदान का उत्सव । आश्विन (अमान्त) के कृष्णपक्ष की त्रयोदशी से ही पाँच दिनों तक दीप प्रकाश एवं पटाकों के छोड़ने के कृत्य होते रहते हैं । त्रयोदशी को 'धनतेरस' कहा जाता है । इस दिन धन्वन्तरि जयन्ती का पर्व भी चिकित्सक लोग मनाते हैं। इसके पूर्व या उसी दिन घर, द्वार, आँगन स्वच्छ किये जाते हैं, लीपे-पोते जाते हैं, पात्र आदि को चमका दिया जाता है। देखिए पद्म० ( ६ । ११४१४), स्कन्द० ( निर्णयामृत का उद्धरण, नि० सि०, पृ० २९६ ) एवं का० त० वि० ( पृ० ३२३) ।
चतुर्दशी से लेकर चार दिनों के उत्सव का वर्णन भविष्योत्तर में विस्तार के साथ दिया हुआ है। कुछ अन्य बातों का समावेश करते हुए हम इसी के आधार पर यहाँ प्रकाश डाल रहे हैं।
कार्तिक के कृष्णपक्ष की चतुर्दशी को दिनोदय में नरक से बचने के लिए तेल मालिश कर स्नान करना चाहिए, सिर पर अपामार्ग की टहनियों को घुमाना चाहिए और इनके साथ जोती हुई भूमि की मिट्टी एवं काँटे भी होने
४. उपशमितमेघनादं प्रज्वलितदशाननं रमितरामम् । रामायणमिव सुभगं दीपदिनं हरतु वो दुरितम् ॥ भविष्योत्तर ० ( १४०।७१) । प्रथम पंक्ति से दीपदिन एवं रामायण के तीन अंग-विशेष की ओर संकेत है। उपशमिताः मेघानां नादाः यस्मिन् (दीपदिन के सम्बन्ध में), उपशमितः मेघनादः यस्मिन् ( रामायण के सम्बन्ध में ) ; प्रज्वलितानि दशानां दीपवर्तीनाम् आननानि अग्राणि यस्मिन् (दीपदिन के साथ), प्रज्वलितः दशानन रावणः यस्मिन् ( रामायण के साथ) ; रमिताः रामाः युवतयः यस्मिन् ( दीपदिन), रमितः रामः
(रामायण) ।
५. इषासित चतुर्दश्यामिन्दुक्षय तिथावपि । ऊर्जादाँ स्वातिसंयुक्ते तदा दीपावली भवेत् । कुर्यात्संलग्नमेतच्च पोत्सवदिनत्रयम् ॥ नारदसंहिता (नि० सि० पृ० १९७, का० त० वि०, पृ० ३१५, व्रतराज, पृ० ५६३) ।
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