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________________ ७२ धर्मशास्त्र का इतिहास सड़कों पर निकलती थीं और जुलूस निकाला जाता था। प्राचीन एवं मध्य कालों में घोड़ों, हाथियों, सैनिकों एवं स्वयं का नीराजन उत्सव राजा लोग करते थे। कालिंदास (रघु० ४।२४-२५) ने वर्णन किया है कि जब शरद ऋतु का आगमन होता था तो रघु 'वाजिनीराजना' नामक शान्ति कृत्य करते थे। वराह ने बृहत्संहिता (अध्याय ४४, कर्न द्वारा सम्पादित) में अश्वों, हाथियों एवं मानवों के शुद्धियुक्त कृत्य का वर्णन विस्तार से किया है। निर्णयसिन्धु ने सेना के नीराजन के समय के मन्त्रों का उल्लेख यों किया है--'हे सब पर शासन करने वाली देवी, मेरी वह सेना जो चार भागों (हस्ती, रथ, अश्व एवं पदाति) में विभाजित है, शत्रुविहीन हो जाय, और आपके अनुग्रह से मुझे सभी स्थानों में विजय-प्राप्ति हो।' तिथितत्त्व में ऐसी व्यवस्था है कि राजा को अपनी सेना को शक्ति प्रदान करने के लिए नीराजन करके जल या गोशाला के समीप खंजन को देखना चाहिए और उसे निम्न मन्त्र से सम्बोधित करना चाहिए--'खंजन पक्षी, तुम इस पृथ्विी पर आये हो, तुम्हारा गला काला एवं शुभ है, तुम सभी इच्छाओं को देने वाले हो, तुम्हें नमस्कार है।'३ तिथितत्त्व (पृ० १०३) ने खंजन के देखे जाने आदि के बारे में प्रकाश डाला है। बृहत्संहिता (अ० ४५) ने खंजन के दिखाई पड़ने तथा किस दिशा में कब उसका दर्शन हुआ आदि के विषय में घटित होने वाली घटनाओं का उल्लेख किया है। देखिए कृत्यरत्नाकर (पृ० ३६६-३७३), वर्षक्रियाकौमुदी (पृ० ४५०-४५१)। मनु (५।१४) एवं याज्ञ० (१।१७४) ने खंजन को उन पक्षियों में परिगणित किया है जिन्हें नहीं खाना चाहिए (सम्भवतः यह प्रतिबन्ध इसीलिए था कि यह पक्षी शकुन या शुभ संकेत बताने वाला कहा जाता रहा है)। ___ उत्तरी भारत में रामलीला के उत्सव दस दिनों तक चलते रहते हैं और आश्विन की दशमी को समाप्त होते हैं, जिस दिन रावण एवं उसके साथियों की आकृतियाँ जलायी जाती हैं। इसके अतिरिक्त इस अवसर पर और भी कई प्रकार के कृत्य होते हैं, यथा हथियारों की पूजा, दशहरा या विजयादशमी से सम्बन्धित वृत्तियों (पेशों) के औजारों या यन्त्रों की पूजा। स्थान-संकोच से यह विवरण नहीं उपस्थित किया जायगा। दशहरा उत्सव की उत्पत्ति के विषय में कई कल्पनाएँ की गयी हैं। भारत के कतिपय भागों में नये अन्नों की हवि देने, द्वार पर धान की हरी एवं अनपकी बालियों को टाँगने तथा गेहूँ आदि के अंकुरों को कानों या मस्तक या पगड़ी पर रखने के कृत्य होते हैं, अत: कुछ लोगों का मत है कि यह कृषि का उत्सव है। कुछ लोगों के मत से यह रण-यात्रा का द्योतक है, क्योंकि दशहरा के समय वर्षा समाप्त हो जाती है, नदियों की बाढ़ थम जाती है, धान आदि कोष्ठागार में रखे जाने वाले हो जाते हैं। सम्भवतः यह उत्सव इसी दूसरे मत से सम्बन्धित है। भारत के अतिरिक्त अन्य देशों में भी राजाओं के युद्ध-प्रयाण के लिए यही निश्चित ऋतु थी। शमी-पूजा भी प्राचीन है। वैदिक यज्ञों के लिए शमी वृक्ष में उगे अश्वत्थ (पीपल) की दो टहनियों (अरणियों) से अग्नि उत्पन्न की जाती थी। अग्नि शक्ति एवं साहस की द्योतक है, शमी की लकड़ी के कुन्दे अग्नि-उत्पत्ति में सहायक होते हैं। देखिए अथर्ववेद (७।११।१), तै० ब्रा० (११२।१।१६) एवं (१।२।११७), तै० ० (६।९।२) जहाँ शमी एवं अग्नि की पवित्रता एवं उपयोगिता की ओर मन्त्रसिक्त संकेत है। इस उत्सव का सम्बन्ध नवरात्र से भी है। क्योंकि इसमें महिषासुर के ३. कृत्वा नीराजनं राजा बालवृद्ध्य यथा बलम्। शोभनं खंजनं पश्येज्जलगोगोष्ठसंनिधौ ॥ नीलग्रीव शुभग्रीव सर्वकामफलप्रद। पृथिव्यामवतीर्णोसि खञ्जरीट नमोस्तु ते॥ ति० त० (पृ० १०३); नि० सि० (५० १९०), व० क्रि० कौ० (पृ० ४५०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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