________________
विजयादशमी, अपराजिता एवं शमी की पूजा
७१
आरम्भ करते हैं, भले ही चन्द्र आदि ज्योतिष के अनुसार ठीक से व्यवस्थित न हों, इसी दिन श्रवण नक्षत्र में राजा शत्रु पर आक्रमण करते हैं और विजय तथा शान्ति के लिए इसे शुभ मानते हैं ।
इस शुभ दिन के प्रमुख कृत्य हैं अपराजिता पूजन, शमी-पूजन, सीमोल्लंघन ( अपने ग्राम या राज्य की सीमा को लाँघना ), घर को पुन: लौट आना एवं घर की नारियों द्वारा अपने समक्ष दीप घुमवाना, नये वस्त्रों एवं आभूषणों को धारण करना, राजाओं के द्वारा घोड़ों, हाथियों एवं सैनिकों का नीराजन तथा परिक्रमण कराना ।
दशहरा या विजयादशमी सभी जातियों के लोगों के लिए एक महत्त्वपूर्ण दिन है, किन्तु राजाओं, सामन्तों एवं क्षत्रियों के लिए यह विशेष रूप से शुभ दिन है।
धर्मसिन्धु ( पृ० ९६ ) में अपराजिता - पूजा की विधि संक्षेप में यों है--'अपराह्न में गाँव के उत्तर-पूर्व जाना चाहिए, एक स्वच्छ स्थल पर गोबर से लीप देना चाहिए, चन्दन से ८ कोणों का एक चित्र खींच देना चाहिए, संकल्प करना चाहिए (मम सकुटुम्बस्य क्षेमसिद्ध्यर्थमपराजितापूजनं करिष्ये; राजा के लिए --- 'मम सकुटुम्बस्य यात्रायां विजयसिद्ध्यर्थमपरा ० ' ) । इसके उपरान्त उस चित्र (आकृति) के बीच में अपराजिता का आवाहन करना चाहिए और इसी प्रकार उसके दाहिने एवं बायें जया एवं विजया का आवाहन करना चाहिए और साथ ही 'क्रियाशक्ति को नमस्कार' एवं 'उमा को नमस्कार' कहना चाहिए। इसके उपरान्त 'अपराजितायै नमः, जयायै नमः, विजयायै नमः' मन्त्रों के साथ अपराजिता, जया, विजया की पूजा १६ उपचारों के साथ करनी चाहिए और यह प्रार्थना करनी चाहिए, 'हे देवी, यथाशक्ति जो पूजा मैंने अपनी रक्षा के लिए की है, उसे स्वीकार कर आप अपने स्थान को जा सकती हैं।' राजा के लिए इसमें कुछ अन्तर है । राजा को विजय के लिए ऐसी प्रार्थना करनी चाहिए -- ' वह अपराजिता जिसने कण्ठहार पहन रखा है, जिसने चमकदार सोने की मेखला ( करवनी) पहन रखी है, जो अच्छा करने की इच्छा रखती है, मुझे विजय दें, इसके उपरान्त उसे उपर्युक्त प्रार्थना करके विसर्जन करना चाहिए। तब सब को गाँव के बाहर उत्तर-पूर्व में उगे शमी वृक्ष की ओर जाना चाहिए और उसकी पूजा करनी चाहिए। शभी की पूजा के पूर्व या उपरान्त लोगों को सीमोल्लंघन करना चाहिए । कुछ लोगों के मत से विजयादशमी के अवसर पर राम एवं सीता की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि उसी दिन राम ने लंका पर विजय प्राप्त की थी। राजा द्वारा की जाने वाली पूजा के विषय में देखिए हेमाद्रि ( व्रत, भाग १, पृ० ९७०-७१), तिथितत्त्व ( पृ० १०३ ) । निर्णयसिन्धु एवं धर्मसिन्धु तथा अन्य निबन्धों में शमी-पूजा के विषय में कुछ अन्य विस्तार पाये जाते हैं ।" यदि शमी वृक्ष न होतो अश्मन् वृक्ष की पूजा की जानी चाहिए ।
इस अवसर पर कहीं-कहीं में से या बकरे की बलि दी जाती है। भारत में स्वतन्त्रता प्राप्ति के पूर्व देशी राज्यों में, यथा बड़ोदा, मैसूर आदि रियासतों में विजयादशमी (या दशहरा जैसा कि प्रचलित है) के अवसर पर दरबार लगते थे और हौदों से युक्त हाथियों एवं दौड़ते तथा उछल कूद करते हुए घोड़ों की सवारियाँ राजधानी की
२. तथा भविष्ये । शमी शमयते पापं शमी लोहितकण्टका । धारिण्यर्जुनबाणानां रामस्य प्रियवादिनी ॥ करिष्यमाणयात्रायां यथाकालं सुखं मया । तत्र निविघ्नकर्त्री त्वं भव श्रीरामपूजिते । इति । नि० सि० ( पृ० १९० ), पु० चि० ( पृ० १४७), ध० सि० ( पृ० ९६ ) ) । विराटपर्व (अध्याय ५) में आया है कि जब पाण्डवों ने विराट की राजधानी में रहना चाहा तो उन्होंने अपने अस्त्र-शस्त्र ( यथा, प्रसिद्ध गाण्डीव धनुष एवं तलवारें आदि) एक श्मशान के पास पहाड़ी पर स्थित शमी वृक्ष पर रख दिये थे। ऐसा भी परिकल्पित है कि राम ने लंका पर आक्रमण दशमी को ही किया था, जब श्रवण नक्षत्र था ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org