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________________ नवरात्र की दुर्गापूजा ६५ हमने देख लिया है कि आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा से पूर्णिमा तक प्रमुख देव चार मासों के लिए शयन आरम्भ करते हैं । दुर्गा इन दिनों में आषाढ़ शुक्ल अष्टमी को शयन करने जाती हैं। अतः आश्विन में वे सोती रहेंगी। अतः उनके बोधन के लिए वचनों की व्यवस्था हुई है । किन्तु यहाँ भी मतैक्य नहीं है । तिथितत्त्व ( पृ० ७१ ) में आया है कि यदि अठारह भुजाओं वाली देवी की पूजा करनी हो तो आश्विन के शुक्लपक्ष के पूर्व कृष्णपक्ष की नवमी तिथि पर देवी को जगाना चाहिए, किन्तु यदि दस भुजाओं वाली देवी की पूजा करनी हो तो आश्विन शुक्लपक्ष षष्ठी को बोधन कराना चाहिए। किन्तु रघुनन्दन इस बात को अमान्य ठहराते हैं और कहते हैं कि दस भुजा वाली देवी का बोधन पिछले कृष्णपक्ष की नवमी को या शुक्लपक्ष की षष्ठी को होना चाहिए। यदि बोधन नवमी की हो तो संकल्प इस प्रकार का होना चाहिए - 'अमुकगोत्र : श्री अमुकदेवशर्मा अतुलविभूतिकामः संवत्सरसुखकामो दुर्गाप्रीतिकामो वा वार्षिकशरत्कालीन दुर्गामहापूजामहं करिष्ये' ( दुर्गार्चनपद्धति, पृ० ६०० ) । व्रती आश्विन शुक्लपक्ष की प्रथमा को भी आरम्भ कर सकता है और बोधन शुक्लपक्ष की षष्ठी को हो सकता है । संकल्प के उपरान्त ऋ० (७।१६।११) का पाठ होता है । इसके उपरान्त घट की प्रतिष्ठा होती है जिसमें जल, आम्रपल्लव या अन्य वृक्षों की टहनियाँ डाली जाती हैं और दुर्गा की पूजा १६ या ५ उपचारों से की जाती है। इसके उपरान्त चन्दन - लेप एवं त्रिफला (केशों को पवित्र करने के लिए) एवं कंघी चढ़ायी जाती है । द्वितीया तिथि को केशों को ठीक स्थान पर रखने के लिए रेशम की पट्टी दी जाती है। तृतीया को पैरों को रंगने के लिए अलक्तक, सिर के लिए सिन्दूर, देखने के लिए दर्पण दिया जाता है। चतुर्थी तिथि को देवी को मधुपर्क दिया जाता है, मस्तक पर तिलक के लिए चाँदी का एक टुकड़ा तथा आँखों के लिए अंजन दिया जाता है। पंचमी तिथि को अंगराग एवं शक्ति के अनुसार आभूषण दिये जाते हैं। यदि दुर्गापूजा षष्ठी को ( ज्येष्ठा नक्षत्र से संयुक्त हो या न हो ) हो तो व्रती को प्रातःकाल बेल के वृक्ष के पास जाना चाहिए और संकल्प करना चाहिए, वेदमन्त्र ( ऋ० ७।१६।११) कहना चाहिए, घट-स्थापन करना चाहिए और बिल्व वृक्ष को दुर्गा के समान पूजना चाहिए। यदि पूजा प्रतिपदा को ही आरम्भ कर दी गयी हो तो व्रती को बेल वृक्ष के पास सायंकाल (चाहे ज्येष्ठा हो या न हो ) जाना चाहिए और देवी का बोधन मन्त्र के साथ करना चाहिएए-'रावण के नाश के लिए एवं राम पर अनुग्रह करने के लिए ब्रह्मा ने तुम्हें अकाल में जगाया, अतः मैं मी तुम्हें आश्विन की षष्ठी की सन्ध्या में जगा रहा हूँ ।' दुर्गा-बोधन के उपरान्त व्रती को चाहिए कि वह बेल वृक्ष से यह कहे- 'हे बेल वृक्ष, तुमने श्रीशैल पर जन्म लिया है और तुम लक्ष्मी के निवास हो, तुम्हें ले चलना है, चलो, तुम्हारी पूजा दुर्गा के समान करनी है।' इसके उपरान्त व्रती बेल वृक्ष पर मही (मिट्टी), गंध, शिला, धान्य, दूर्वा, पुष्प, फल, दही, घृत, स्वस्तिक - सिन्दूर आदि को प्रत्येक के साथ मन्त्र का उच्चारण करके रखता है और उसे दुर्गा के शुभ निवास के योग्य बनाता है। इसके उपरान्त वह दुर्गा पूजा के मण्डप में आता है, आचमन करता है और अपराजिता लता को या नौ पौधों की पत्तियों को एक में गूंथता है । नव पत्रिका हैं कदली, दाड़िमी, धान्य, हरिद्रा, माणक, कचु, बिल्व, अशोक, जयन्ती । प्रत्येक के साथ विशिष्ट मन्त्र का पाठ होता है । इसी दिन दुर्गा की मिट्टी की प्रतिमा बिल्व की शाखा के साथ घर में लायी जाती है और पूजित होती है। अन्य विवरण हम यहाँ नहीं दे पा रहे हैं । सप्तमी तिथि को, चाहे वह मूल-नक्षत्र से युक्त हो या रहित हो, व्रती स्नान करके बिल्व (बेल) वृक्ष के पास जाता है, पूजा करता है, हाथ जोड़कर कहता है - 'हे सौभाग्यशाली बिल्व, तुम सदा शंकर के प्यारे हो, तुमसे एक शाखा लेकर मैं दुर्गापूजा करूँगा; हे प्रभु, टहनी काटने से कष्ट का अनुभव न करना; हे बिल्व, तुम पेड़ों के राजा हो, मैं तुम्हें नमस्कार करता हूँ।' इस प्रकार कहकर वह दक्षिण-पश्चिम या उत्तर-पश्चिम दिशा को छोड़कर कहीं ९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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