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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास एवं स्व-प्रसन्नता के लिए भवानी-पूजा करनी चाहिए। देवीपुराण में आया है.--'यह एक महान् एवं पवित्र व्रत है जो महान् सिद्धियाँ देता है, सभी शत्रुओं को नष्ट करता है, सभी लोगों का उपकार करता है. विशेषतः अति वृष्टियों में । यह पुनीत यज्ञों के लिए ब्राह्मणों द्वारा, भूमिपालन के लिए क्षत्रियों, गोधन के लिए वैश्यों, पुत्रों एवं सुखों के लिए शूद्रों, सौभाग्य के लिए नारियों, अधिक धन के लिए धनिकों द्वारा सम्पादित होता है, यह शंकर आदि द्वारा सम्पादित हुआ था। आगे चलकर यह पूजा सामान्य सीमा पर उतर आयी, जैसा कि मार्कण्डेय० (८९।११-१२) में आया है-'वार्षिक महापूजा में जो शरत्काल में होती है, मेरे माहात्म्य को भक्तिपूर्वक सुनने से व्यक्ति सभी प्रकार की बाधा से निर्मुक्त एवं मेरे प्रसाद से धनधान्य से समन्वित हो जाता है। भविष्य ० (पूजाप्रकाश, पृ० ३०९ में उद्धृत) से दुर्गा-पूजा की अतिशयोक्तिपूर्ण महत्ता प्रकट हो जाती है--'अग्निहोत्र आदि कर्म, दक्षिणा से युक्त वेद-यज्ञ चण्डिकापूजा के सामने लाख का एक अंश भी नहीं है।' यह दुर्गापूजा सभी लोगों द्वारा सम्पादित की जा सकती है। न-केवल चारों वर्गों के लोग ही इसे कर सकते हैं, प्रत्युत इसे अन्य लोग भी जो जातियों के बाहर हैं, कर सकते हैं। दुर्गापूजा का सामूहिक रूप भी है, यह केवल धार्मिक व्रत ही नहीं है, इसका सामाजिक महत्त्व है (यथा मित्रों को निमन्त्रित कर उनको खिलाना-पिलाना)। भविष्य ० (हे व्रत, भाग १, पृ० ९१० ; ति० त०, पृ० ६८; नि० सि०, पृ० १६४; स्मृतिकौ०, पृ० २०१, का० त० नि०, पृ० २६७) में आया है--'इसका सम्पादन विन्ध्य पर्वत में (विन्ध्यवासिनी देवी के मन्दिर में), सभी स्थानों, नगरों, गृहों, ग्रामों एवं वनों में ब्राह्मणों, क्षत्रियों, राजाओं, वैश्यों, शूद्रों द्वारा, भक्तों द्वारा, उनके द्वारा जिन्होंने स्नान कर लिया है, जो प्रमुदित एवं हर्षित हैं, म्लेच्छों तथा अन्य लोगों (प्रतिलोम आदि) द्वारा तथा नारियों द्वारा हो सकता है।' भविष्य ० (कृ० र०, पृ० ३५७ ; नि० सि०, पृ० ११४; ति० त०, पृ० ६८, कृत्यकल्प०, नयतकालिक, पृ० ४१०) में यह भी आया है---'दुर्गापूजा म्लेच्छों आदि द्वारा, दस्युओं (चोरी करने वालों, निष्काषित हिन्दुओं) द्वारा, अंग, बंग एवं कलिंग के लोगों द्वारा, किन्नरों, बर्बरों एवं शकों द्वारा की जाती है। पश्चात्कालीन निबन्धों में यह सावधानीपूर्वक आया है कि म्लेच्छों को मन्त्रों के साथ जप या होम या पूजा का अधिकार नहीं है, जैसा कि शूद्र ब्राह्मण द्वारा ऐसा करते हैं, किन्तु वे लोग देवी के लिए पशुओं की अलि या सुरा-दान मानसिक रूप में कर सकते हैं। स्कन्द० एवं भविष्य० (ति० त०, पृ० ६८; का० त० वि०, १० २६९-२७०) में ऐसा उल्लेख हुआ है कि चण्डिका-पूजा के तीन प्रकार हैं-- सात्त्विकी, राजसी एवं तामसी, जिनमें सात्त्विकी पूजा में जप होता है, नैवेद्य दिया जाता है किन्तु मांस का प्रयोग नहीं होता; राजसी में बलि एवं नैवेद्य होता है और मांस का प्रयोग होता है; किन्तु तामसी में सुरा एवं मांस का प्रयोग होता है, किन्तु जप एवं मन्त्रों का प्रयोग नहीं होता। इस अन्तिम प्रकार का सम्पादन किरातों (वनवासी आदि) द्वारा होता है। रघुनन्दन ने प्रायश्चित्ततत्त्व (पृ० ५२०) में लिखा है कि दुर्गापूजा में सुरा का प्रयोग कलियुग की प्रथा नहीं है। २. महासिद्धिप्रदं धन्यं सर्वशत्रुनिबर्हणम्। सर्वलोकोपकारार्थ विशेषादतिवृष्टिषु। कृत्यर्थ (ऋत्वर्थ ? ) ब्राह्मणाद्यैश्च क्षत्रियभूमिपालने। गोधनार्थ विशा वत्स शूद्रः पुत्रसुखाथिभिः। सौभाग्याथ स्त्रिया कार्यमाढ्यश्च धनकांक्षिभिः। महाव्रतं महापुण्यं शंकराद्यैरनुष्ठितम् ॥ देवीपुराण (हे०, व्रत, भा १, पृ० ९०१; कृ० र०, पृ० ३५९; दुर्गाभक्तितरंगिणी, पृ० १६; ति० त०, पृ० ६७)।। ३. अतो म्लेच्छादीनां न शूद्रवद ब्राह्मणद्वारापि जपे होमे समन्त्रकपूजायां वाधिकारः किन्तु तस्तत्तदुपचाराणां सुराद्युपहारसहितानां पश्वादिबलेश्च मनसोत्सर्गमात्रं देवीमुद्दिश्य विधेयमिति सिद्धम्। स्मृतिको० (पृ० २९१)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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