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________________ अध्याय ९ नवरात्र या दुर्गोत्सव सम्पूर्ण भारत में आश्विन शुक्ल पक्ष की प्रथम तिथि से लेकर नवमी तक दुर्गापूजा का उत्सव, जिसे नवरात्र मी कहते हैं, किसी-न-किसी रूप में मनाया जाता है। कुछ ग्रन्थों (निर्णयामृत, पृ०५६ स० म०, पृ० १५) ने व्यवस्था दी है कि दुर्गोत्सव शरद (आश्विन शुक्ल ) एवं वसन्त ( चैत्र शुक्ल ) दोनों में अवश्य किया जाना चाहिए ।" किन्तु आश्विन का दुर्गोत्सव ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है, विशेषतः बंगाल, बिहार एवं कामरूप में । यदि व्यक्ति ९ दिनों तक यह उत्सव करने में असमर्थ हो तो उसे आश्विन शुक्ल सप्तमी से आरम्भ कर तीन दिनों तक कर लेना चाहिए। तिथितत्त्व ( पृ० ६७ एवं १७३ ) ने दुर्गापूजा की अवधियों के बारे में कई विकल्प दिये हैं-- ( १ ) पूर्णिमान्त आश्विन के कृष्णपक्ष की नवमी से आश्विन शुक्ल की नवमी तक ; ( २ ) अश्विन शुक्ल की प्रथमा से नवमी तक; (३) षष्ठी से नवमी तक; (४) सप्तमी से नवमी तक; (५) महाष्टमी से नवमी तक ; (६) केवल महाष्टमी पर (७) केवल महानवमी पर इन विकल्पों में बहुत-से कालिका एवं अन्य पुराणों में भी हैं। दुर्गोत्सव पर विशाल साहित्य है, व्रतों, तिथियों एवं पूजा पर लिखने वाले सभी निबन्धों ने विशद प्रकाश डाला है। कुछ ग्रन्थ तो केवल इसी पर लिखित हैं, यथा शूलपाणि का दुर्गोत्सवविवेक ; दुर्गापूजा प्रयोगतत्त्व, जिसका रघुनन्दन लिखित दुर्गार्चनपद्धति एक अंश है; विद्यापति की दुर्गाभक्तितरंगिणी; विनायक ( नन्दपण्डित) कृत नवरात्र-प्रदीप ; उदयसिंह ( १५वीं शती का अर्धांश ) की दुर्गोत्सवपद्धति । इनके अतिरिक्त मार्कण्डेयपुराण (अध्याय ७८- ९० ) में 'देवीमाहात्म्य' ( या सप्तशती या चण्डी) भी है, जिसमें विष्णु, शंकर, अग्नि एवं देवों से संगृहीत तेजों से उत्पन्न देवी का स्वरूप, उसके द्वारा शिव से त्रिशूल, विष्णु से चक्र, इन्द्र से वज्र की प्राप्ति तथा महिषासुर, चण्ड, मुण्ड, शुम्भ एवं निशुम्भ नामक दानवों का वध एवं विजय प्राप्ति वर्णित है । कालिकापुराण, बृहन्नंदिकेश्वरपुराण एवं देवीपुराण ने भी दुर्गा एवं उसकी पूजा का विशद वर्णन उपस्थित किया है। यह पूजा मित्य एवं काम्य दोनों है । कालिकापुराण (६३।१२-१२ ) ने व्यवस्था दी है कि जो प्रमाद, छल, मत्सर या मूर्खता के वश में आकर दुर्गोत्सव नहीं करता उसकी सभी कांक्षाएँ क्रुद्ध देवी द्वारा नष्ट हो जाती हैं। यह काम्य भी है, क्योंकि दुर्गोत्सव करने से फलों की प्राप्ति भी होती है। सभी को देवी की पूजा करनी चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से अतुलनीय महत्ता प्राप्त होती है और धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है । तिथितत्त्व ( पृ० ६५ ) में आया है कि भवानी को प्रसन्न करने के लिए, उस वर्ष में आनन्द के लिए, भूत-पिशाचों के नाश के १. शरद्व सन्तयोस्तुल्य एव दुर्गोत्सवः कार्यः । निणर्यामृत, पृ० ५६ एवं समयमयूख, पृ० १५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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