SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धर्मशास्त्र का इतिहास ऐसा प्रतीत होता है कि आरम्भ में ऋषिपंचमी व्रत सभी पापों की मुक्ति के लिए सभी लोगों के लिए व्यवस्थित था, किन्तु आगे चलकर यह केवल नारियों से ही सम्बन्धित रह गया। किन्तु सौराष्ट्र में इसका सम्पादन नहीं होता। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनन्तचतुर्दशी का व्रत किया जाता है। इसका उल्लेख कृत्यकल्पतरु में नहीं है। इसमें अनन्त के रूप में हरि की पूजा होती है। पुरुष दाहिने तथा नारियाँ बाँये हाथ में अनन्त धारण करती हैं। रुई या रेशम के धागे कुंकमी रंग में रंगे होते हैं और उनमें चौदह गाँठे होती हैं। इन्हीं धागों से अनन्त का निर्माण होता है। यह व्यक्तिगत पूजा है, इसका कोई सामाजिक धार्मिक उत्सव नहीं होता। अग्निपुराण (१९२॥ ७-१०) में इसका विवरण है। चतुर्दशी को दर्भ से बनी हरि की प्रतिमा की, जो कलश के जल में रखी होती है, पूजा होती है। व्रती को धान के एक प्रस्थ (प्रसर) आटे से रोटियाँ (पूड़ी) बनानी होती हैं जिनकी आधी वह ब्राह्मण को दे देता है और शेष अर्धांश स्वयं प्रयोग में लाता है। यह व्रत नदी-तट पर किया जाना चाहिए, जहाँ हरि की कथाएँ सुननी चाहिए। हरि से इस प्रकार की प्रार्थना की जाती है--'हे वासुदेव, इस अनन्त संसार रूपी महासमुद्र में डूबे हुए लोगों की रक्षा करो तथा उन्हें अनन्त के रूप का ध्यान करने में संलग्न करो, अनन्त रूप वाले तुम्हें नमस्कार' (अग्नि० १९२।९)। इस मन्त्र से हरि की पूजा करके तथा अपने हाथ के ऊपरी भाग में या गले में धागा बाँधकर या लटकाकर (जिस पर मन्त्र पढ़ा गया हो) व्रती अनन्त व्रत करता है तथा प्रसन्न होता है। यदि हरि अनन्त हैं तो १४ गाँठे हरि द्वारा उत्पन्न १४ लोकों की द्योतक हैं। । हेमाद्रि (व्रत, भाग २,१०२६-३६) में अनन्त व्रत का विवरण विशद रूप से आया है, उसमें कृष्ण द्वारा युधिष्ठिर से कही गयी कौण्डिन्य एवं उसकी स्त्री शीला की गाथा भी आयी है। कृष्ण का कथन है कि 'अनन्त' उनके रूपों का एक रूप है और वे काल हैं जिसे अनन्त कहा जाता है। अनन्त' व्रत' चन्दन, धूप, पुष्प, नैवेद्य के उपचारों के साथ किया जाता है। इस व्रत के विषय में अन्य बातों के लिए देखिए वर्षक्रियाकौमुदी (पृ० ३२४-३३९), तिथितत्त्व (पृ० १२३), का० नि० (पृ० २७९), वतार्क आदि। ऐसा आया है कि यदि यह व्रत १४ वर्षों तक किया जाय तो व्रती विष्णुलोक की प्राप्ति कर सकता है (हेमाद्रि, व्रत, माग २, पृ० ३५)। इस व्रत के उपयुक्त समय एवं तिथि के विषय में कई मत प्रकाशित हो गये हैं। माधव (का०नि० २७९) के अनुसार इस व्रत में मध्याह्न कर्मकाल नहीं है किन्तु वह तिथि, जो सूर्योदय के समय तीन मुहूर्तों तक अवस्थित रहती है, अनन्तनत के लिए सर्वोत्तम है। किन्तु नि० सि० (पृ० १४२) ने इस मत का खण्डन किया है। __ आजकल मा अनन्त चतुर्दशी व्रत किया जाता है, किन्तु व्रतियों की संख्या धीरे-धीरे कम होती जा रही है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy