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________________ अध्याय ८ हरितालिका, गणेशचतुर्थी, ऋषिपंचमी एवं अनन्तचतुर्दशी हरितालिका व्रत नारियों का व्रत है। यह भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को सम्पादित होता है । इस व्रत का कृत्यकल्पतरु एवं हेमाद्रि में कोई उल्लेख नहीं है । पश्चात्कालीन मध्यकालिक निबन्ध, यथा निर्णयसिन्धु ( पृ० १३३), व्रतार्क (४४), व्रतराज ( पृ० १०३ ११० ) एवं अहल्याकामधेनु ( २८२ - २९५ ) इसका वर्णन करते हैं । राजमार्तण्ड (१२५७-२२५८) में भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को किये जाने वाले हरितालीचतुर्थी व्रत का उल्लेख है और ऐसा लिखा गया है कि यह पार्वती को प्यारा (प्रीतिदायक ) है । महाराष्ट्रीय नारियों में यह अत्यधिक प्रचलित है। इसका संक्षिप्त वर्णन किया जा रहा । नारियों को तैल एवं त्रिफला (तिष्यफला ) के लेप से स्नान कर रेशमी वस्त्र धारण करने चाहिए । तिथि आदि का नाम लेकर निम्न संकल्प करना चाहिए -- ' मम समस्त पापक्षयपूर्वकं सप्तजन्मराज्याखण्डितसौभाग्यादिवृद्धये उमामहेश्वरप्रीत्यर्थं हरितालिका व्रतमहं करिष्ये । तत्रादौ गणपतिपूजन करिष्ये' ( व्रतराज, पृ० १०३ ) । उसे उमा एवं शिव का नमन करना चाहिए। मन्त्रों के साथ आवाहन, आसन, पाद्य, अर्घ्य आदि सोलह उपचारों के सम्पादन से उमा पूजन करना चाहिए । पुष्प देने के उपरान्त व्रती को पाँव से लेकर सिर तक उमा के सभी अंगों की पूजा करनी चाहिए। इसके उपरान्त धूप, दीप, नैवेद्य, आचमनीय, गन्ध ( कपूर, चन्दन ), ताम्बूल, पूगीफल, दक्षिणा, अलंकार, नीराजन (दीप डुलाना) के कृत्य किये जाने चाहिए। इसके उपरान्त उमा के विभिन्न नामों (गौरी, पार्वती आदि) एवं शिव के विभिन्न नामों (हर, महादेव, शम्भु आदि) से पूजा होनी चाहिए; पुष्प दान करना चाहिए, उमा एवं महेश्वर की प्रतिमाओं की प्रदक्षिणा करनी चाहिए, प्रत्येक वार मन्त्र के साथ नमस्कार करना चाहिए, प्रार्थना एवं शुभ वस्तुओं के साथ पात्रों में दान करना चाहिए । ' यह व्रत बंगाल, गुजरात आदि में नहीं प्रचलित है। माधव (का० नि०, पृ० १७६ ) ने व्यवस्था दी है कि यदि तृतीया तिथि द्वितीया एवं चतुर्थी से संयुक्त हो तो व्रत दूसरे दिन किया जाना चाहिए, जब कि तृतीया कम से कम एक मुहूर्त (दो घटिका ) तक अवस्थित रहे और तब चतुर्थी का प्रवेश हो । १. नमस्कारमन्त्र यह है- 'अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम । तस्मात्कारुण्यभावेन क्षमस्व परमेश्वरि ॥ प्रार्थनामन्त्र यह है - - ' पुत्रान् देहि धनं देहि सौभाग्यं देहि सुव्रते । अन्यांश्च सर्वकामांश्च देहि देवि नमोस्तु ते ॥ वायनमन्त्र यह है--'सौभाग्यारोग्यकामाय सर्वसम्पत्समृद्धये । गौरीगौरोशतुष्ट्यर्थं वायनं ते ददाम्यहम् ॥' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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