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अध्याय ७
नागपञ्चमी, मनसापूजा, रक्षाबन्धन, कृष्णजन्माष्टमी
श्रावण मास में बहुत से महत्त्वपूर्ण व्रत किये जाते हैं, जिनमें शुक्ल पक्ष की पंचमी को किया जाने वाला नागपंचमी व्रत प्रसिद्ध है। भारत के सभी भागों में नागपंचमी विभिन्न प्रकार से सम्पादित होती है। कुछ लोगों के मत से वर्ष भर के सर्वोत्तम शुभ ३३ दिनों में नाग पंचमी ३ शुभ दिन है। किन्तु कुछ लोग यह महत्त्व अक्षयतृतीया को देते हैं, जैसा कि हमने इस भाग के चौथे अध्याय में देख लिया है। भविष्य (ब्रह्म पर्व, ३२।१-३९) में नागपंचमी का विस्तार के साथ उल्लेख है (कृ० क०, व्रत, पृ०८७ ९०; हे०, व्रत, भाग १,पृ० ५५७-५६०) । संक्षेप में यहाँ उल्लेख किया जाता है--जब लोग पंचमी को दूध से वासुकि, तक्षक, कालिय, मणिभद्र, ऐरावत, धृतराष्ट्र, कर्कोटक एवं धनञ्जय नामक सों को नहलाते हैं तो ये नाग उनके कुटुम्बों को अभयदान दे देते हैं। भविष्य० (११३२ ) में यह कथा आयी है-- नागों की माता कद्रू ने अपनी बहिन विनता से बाजी लगायी कि इन्द्र के घोड़े उच्चैःश्रवा की पूंछ काली है। विनता के अनुसार पूंछ एवं शरीर दोनों सफेद थे, किन्तु कद्रू कहती थी कि पूंछ काली है किन्तु घोड़ा श्वेत है। कद्रू ने अपने पुत्रों से पूंछ में लिपट जाने को कहा जिससे वह काली दृष्टिगोचर हो, किन्तु उन्होंने इस धोखेबाजी से अपने को विलग रखा, जिस पर कद्रू ने उन्हें शाप दिया कि तुन्हें अग्नि जला डालेगी (जनमेजय के सर्पसत्र में)। लोगों को चाहिए कि वे नागों की सोने, चाँदी या मिट्टी की प्रतिमाएँ बनायें और करवीर एवं जाती पुष्पों तथा गंधादि से उनकी पूजा करें। पूजा का परिणाम होगा सर्प-दंश से मुक्ति । और देखिए भविष्योत्तर पुराण (अध्याय ३६) एवं हेमाद्रि (काल, पृ० ६२१); का० वि० (पृ० ४१३); कृ० र० (पृ० २३४)। सौराष्ट्र में नागपंचमी श्रावण कृष्ण पक्ष में सम्पादित होती है।
___ बंगाल एवं दक्षिण भारत में (महाराष्ट्र में नहीं) मनसा देवी-पूजन होता है जो अपने घर के आंगन में स्नुही (थूहर) की टहनी पर श्रावण के कृष्ण पक्ष की पंचमी को किया जाता है। देखिए राजमार्तण्ड, समयप्रदीप, कृत्यरत्नाकर, तिथितत्त्व आदि। सर्वप्रथम सर्प-मय से दूर रहने के लिए मनसा देवी-पूजन का संकल्प होता है, तब गन्ध, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य दिया जाता है और तब अनन्त एवं अन्य नागों की पूजा होती है जिसमें प्रमुख रूप से दूध-घी का नैवेद्य चढ़ाया जाता है। घर में नीम की पत्तियाँ रखी जाती हैं, स्वयं व्रती उन्हें खाता है और ब्राह्मणों को भी खिलाता है। ब्रह्मवैवर्तपुराण (२१४५-४६) ने मनसा देवी के जन्म, उसकी पूजा, स्तोत्र (प्रशंसा) के विषय में उल्लेख किया है।
दक्षिण भारत में श्रावण शुक्ल पंचमी को काठ की चौकी पर लाल चन्दन से सर्प बनाये जाते हैं या मिट्टी के पीले या काले रंगों के साँपों की प्रतिमाएं बनायी या खरीदी जाती हैं और उनकी पूजा दूध से की जाती है। विभिन्न प्रकार के साँपों को लेकर सँपेरे घूमते रहते हैं, उनके साँपों को लोग दूध देते हैं और उन्हें धन भी देते हैं।
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