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________________ एकादशी व्रत के अधिकारी ४१ उन्होंने केवल व्रत की बात चलायी है और वर्जना की नहीं। इस विषय में मीमांसा का नियम है-'जिसकी निन्दा की जाती है उसकी निन्दा में केवल प्रवृत्त रहना ही निन्दा नहीं है, प्रत्युत वह, जो निन्दित होता है उसके विरोधी कर्तव्य के सम्पादन की स्तुति के लिए होती है। वे कथन जो व्रत के विषय में प्रतिपादन करते हैं, दो प्रकार के हैं, यथा वे, जो एकादशी को नित्य मानते हैं, और वे, जो किसी वांछित वस्तु की प्राप्ति के लिए प्रतिपादित हैं, अर्थात् काम्य । नारद (हेमाद्रि, काल, पृ० १५९; नि० सि० ३७) में आया है--विष्णु के भक्त एवं वे जो विष्णु को परम लक्ष्य' मानते हैं, उन्हें सदा प्रत्येक पक्ष में एकादशी के दिन उपवास करना चाहिए।' कात्यायन (हेमाद्रि, काल, पृ० १६२; का० नि०, पृ० २३६; एकादशीतत्त्व, २८) में एकादशी के बारे में काम्य-विधि यों कही गयी है--'जो विष्णु को परम लक्ष्य मानता है, जो संसार-सागर पार करना चाहता है या जो ऐश्वर्य, सन्तति, स्वर्ग, मोक्ष आदि प्राप्त करना चाहता है, उसे दोनों पक्षों की एकादशी को भोजन नहीं करना चाहिए।' इसका निष्कर्ष यह निकला कि एकादशी नित्य एवं काम्य दोनों है और यहाँ पर 'संयोग-पृथक्त्व' (देखिए ऊपर 'रामनवमी' का वर्णन) का सिद्धान्त लागू होता है। दोनों पक्षों की एकादशियों पर एकादशी व्रत केवल उन्हीं के लिए नित्य है जो गृहस्थ नहीं हैं; यह व्रत गृहस्थों के लिए केवल शुक्ल पक्ष की एकादशी पर ही नित्य है, कृष्ण पक्ष में नहीं, क्योंकि देवल में आया है--'दोनों पक्षों की एकादशी में पका मोजन नहीं करना चाहिए, यह वन में रहने वाले यतियों एवं मुनियों का धर्म है, किन्तु गृहस्थ को ऐसा केवल शुक्ल पक्ष की एकादशी में करना चाहिए (नि० सि०, ३६; समयप्रकाश, पृ० ६२; कालविवेक, पृ० ४२६; हेमाद्रि, काल०, पृ० १५०; ए० त०, पृ० ३६; ब्रह्मवैवर्त० ४।२६।३८)। पद्मपुराण में आया है कि गहस्थ को केवल शयनी (आषाढ़ शुक्ल ११) एवं बोधिनी (कार्तिक शुक्ल ११) के मध्य में पड़ने वाली कृष्ण एकादशियों पर उपवास करना चाहिए, अन्य कृष्ण पक्ष की एकादशियों पर नहीं (ब्रह्मवैवर्त ४।२६।३९; का० नि०, पृ० २९; नि० सि०, पृ० ३६; समयप्रकाश, पृ० ६३ । इन सभी में पद्म० का उद्धरण है)। नारद (हेमाद्रि, काल, पृ० १८३ आदि) में एक वचन आया है--'पुत्रवान् गृही को संक्रान्ति पर, कृष्ण एकादशी पर एवं चन्द्रसूर्य-ग्रहण पर उपवास नहीं करना चाहिए।' निष्कर्ष यह निकला कि गृहस्थ को केवल शुक्ल एकादशी पर ही उपवास करना चाहिए (यही उसके लिए नित्य है), किन्तु वह काम्य व्रत शयनी एवं बोधिनी के मध्य में पड़ने वाली कृष्ण एकादशियों पर भी कर सकता है, किन्तु यदि वह पुत्रवान् हो तो उसे शयनी एवं बोधिनी के मध्य में पड़ने वाली कृष्ण एकादशियों में उपवास नहीं करना चाहिए। विधवा यति के सदृश है; सधवा को केवल शुक्ल पक्ष की एकादशी पर उपवास करना चाहिए। किन्तु यह ध्यान रखने योग्य है कि ये प्रतिबन्ध वैष्णवों के लिए नहीं हैं (देखिए ए० त०, पृ० ३८; हेमाद्रि, काल, पृ० १८१), उन्हें सभी एकादशियों पर उपवास करना होता है। हेमाद्रि (व्रत, भाग १, पृ०९९९) का मत है कि सभी को दोनों पक्षों की एकादशियों पर उपवास करने का अधिकार है। इस भाग के द्वितीय अध्याय में व्रतों की अतिशय प्रशंसा एवं महिमा के विषय में प्रकाश डाला जा चुका है। प्रायश्चित्तस्वरूप उपवासों के विषय में हमने इस ग्रन्थ के चौथे भाग में पढ़ लिया है। एकादशी पर किये जाने वाले उपवास की अतिशय प्रशंसा में पुराणों एवं निबन्धों में विस्तार के साथ अत्युक्तियाँ भरी पड़ी हैं। नारद-पुराण २. न्याय यह है--"नहि निन्दा निन्द्यं निन्दितुं प्रवृत्ता अपि तु विधेयं स्तोतुम्" (देखिए तन्त्रवातिक, जैमिनि ११२७, पृ० ११५)। शबर अधिक स्पष्ट हैं-"नहि निन्दा निन्द्यं निन्दितुं प्रयुज्यते। किं तहि । निन्दितादितरत् शिंसितुम्। तत्र न निन्वितस्य प्रतिषेधो गम्यते किंत्वितरस्य विधिः। शबरभाष्य (जैमिनि, २०४।२१)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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