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________________ अध्याय ५ एकादशी आषाढ़ मास में सब से महत्त्वपूर्ण तिथि है एकादशी । पुराणों एवं मध्यकाल के निबन्धों में एकादशी के विषय में एक विशाल साहित्य है। एकादशी पर तो पृथक् रूप से कई निबन्ध हैं, यथा शूलपाणि का एकादशीविवेक एवं रघुनन्दन का एकादशीतत्त्व । इनके अतिरिक्त कालविवेक ( पृ० ४२५ ४५१), हेमाद्रि ( काल, पृ० १४५ - २८८ ), माधव कृत कालनिर्णय ( पृ० २३३ - २७५ ), व्रतराज ( पृ० ३६१-४७५), कालतत्त्वविवेचन ( पृ० ९४ - १७२ ) ने एकादशी पर (विवेचन के लिए) सैकड़ों पृष्ट लिख डाले हैं । किन्तु हम स्थान - संकोच से संक्षेप में ही लिखेंगे। यदि कोई पुराणों के कतिपय कथनों की जांच-पड़ताल करे तो पता चलेगा कि उनमें 'कुछ तो एकादशी के दिन केवल भोजन करना वर्जित करते हैं और कुछ एकादशी व्रत की व्यवस्था करते हैं । प्रथम के कुछ उदाहरण निम्न हैं । नारदीय में आया है - 'सभी प्रकार के पाप एवं ब्राह्मण हत्या के समान अन्य पाप हरि के दिन में भोजन में आश्रय लेते हैं; जो एकादशी के दिन भोजन करता है वह उन पापों का भागी होता है; पुराण बारम्बार यही रटते हैं 'जब हरि का दिन आता है तो भोजन नहीं करना चाहिए, भोजन नहीं करना चाहिए।" इस व्यवस्था से एकादशी की विधि उस दिन कुछ भी पकी हुई वस्तु के न खाने में है । उन कथनों में जहाँ 'व्रत शब्द आया है, ऐसा नहीं समझना चाहिए कि वे केवल वर्जना ( यथा भोजन न करना) करते हैं, प्रत्युत ये भावात्मक रूप भी रखते हैं, यथा प्रजापति व्रत में आता है, 'सूर्योदय नहीं देखना चाहिए', जिसकी व्याख्या जैमिनि (४|११३ - ६ एवं ६।२।२० ) ने की है | उदाहरणार्थ, मत्स्य एवं भविष्य में आया है, 'जब व्यक्ति एकादशी को उपवास करता है और द्वादशी को खाता है, चाहे शुक्ल पक्ष में या कृष्ण पक्ष में, वह विष्णु के सम्मान में बड़ा व्रत करता है।' उन कथनों में, जहाँ 'उपवास' शब्द आया है और जो ( एकादशी करने के कारण ) फल की व्यवस्था देते हैं. वहाँ ऐसा समझना चाहिए कि वे व्रत की भी व्यवस्था देते हैं न कि केवल किसी वस्तु के न सेवन की ही बात करते हैं । वे कथन भी, जो एकादशी के दिन भोजन करने की भर्त्सना करते हैं, इस प्रकार भी समझे जा सकते हैं कि मानो १. यानि कानि च पापानि ब्रह्महत्यासमानि च । अन्नमाश्रित्य तिष्ठन्ति सम्प्राते हरिवासरे ॥ तानि पापान्यवाप्नोति भुञ्जानो हरिवासरे । रटन्तीह पुराणानि भूयो भूयो वरानने । न भोक्तव्यं न भोक्तव्यं संप्राप्ते हरिवासरे ॥ नारदीय ( हेमाद्रि, काल०, पृ० १५३; का० नि०, पृ० २३५) । और देखिए नारदीयपुराण ( उत्तर, २४ |४| २३/२४) । मिलाइए ब्रह्मवैवर्त, कृष्णजन्म खण्ड, २६।२३ 'सत्यं सर्वाणि पापानि ब्रह्महत्यादिकानि च । सन्त्येवदनमाश्रित्य श्रीकृष्णव्रतवा सरे ।' एकादशीतत्त्व ( पृ० १६ ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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