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________________ वट सावित्री - श्रत ३९ उपचारों के साथ उसकी पूजा करनी चाहिए और अपने सौन्दर्य, सद्नाम, सम्पत्ति एवं वैधव्य -मुक्ति के लिए सावित्री की पूजा (मूर्ति की या केवल मानसिक रूप से ), उसके पैर से ऊपर तक का स्मरण करके करनी चाहिए। इसके उपरान्त यम एवं नारद की पूजा करनी चाहिए और पुजारी को 'वायन' अर्थात् दान देना चाहिए और दूसरे दिन उपवास तोड़ना चाहिए । बंगाल में वटसावित्री व्रत के स्थान पर ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को सावित्री चतुर्दशी मानी जाती है। यह चौदह वर्षों की होती है। यदि स्त्री तीन दिनों तक उपवास के योग्य न हो तो वह त्रयोदशी को नक्त, चतुर्दशी को अयाचित भोजन तथा पूर्णिमा को व्रत करे।" ७. त्रिरात्रं नियमं कुर्यादुपवासस्य भक्तितः । अशक्ता चेत् त्रयोदश्यां नक्तं कुर्याज्जितेन्द्रिया । अयाचितं चतुर्दश्यां पौर्णमास्यामुपोषणम् ॥ भविष्योत्तर (हेमाद्रि, व्रत, भाग २, पृ० २६९ द्वारा उद्धृत) । ब्रह्मसावित्री व्रत के लिए देखिए हेमाद्रि (भाग २, पृष्ठ २६९-२७२ ) जहाँ ब्रह्मा की पत्नी सावित्री की, जो हाथों में वीणा एवं पुस्तक लिये रहती हैं, पूजा का उल्लेख है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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