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________________ २६ धर्मशास्त्र का इतिहास पर या कुण्ड में होम करना चाहिए और पुनः साधारण अग्नि में घृत' या पायस (दूध एवं शक्कर में पकाये हुए चावल) की १०८ आहुतियां देनी चाहिए। इसके उपरान्त आचार्य को कंकण, कुण्डल, अँगूठी, पुष्षों, वस्त्रों आदि से सम्मानित करना चाहिए और निम्नलिखित मन्त्र का पाठ करना चाहिए--'हे राम, आज मैं आप से अनुग्रह प्राप्त करने के लिए आपकी इस स्वर्ण-प्रतिमा को, जो अलंकारों एवं वस्त्रों से सज्जित है, दान-रूप में दूंगा।' उसे आचार्य को दक्षिणा तथा अन्य ब्राह्मणों को सोना, गाय, वस्त्रों का जोडा, अन्न यथाशक्ति देना चाहिए और ब्राह्मणों के साथ भोजन करना चाहिए। ऐसा करने से वह ब्राह्मण-हत्या जैसे महापातकों एवं जघन्य पापों से छुटकारा पा लेता है। जो व्यक्ति यह व्रत करता है मानो अपने हाथ में मुक्ति धारण कर लेता है और सूर्यग्रहण पर कुरुक्षेत्र में तुलापुरुष के दान का पुण्य प्राप्त करता है (देखिए तुलापुरुष महादान के लिए इस महाग्रन्थ का खण्ड दो)। हेमाद्रि में अपेक्षाकृत संक्षिप्त उल्लेख है, किन्तु तिथितत्त्व (पृ० ६१-६२), नि० सि० (पृ० ८५), व्रतार्क ने अगस्त्यसंहिता से अधिक ग्रहण कर विस्तार के साथ उल्लेख किया है। उनके मत से राम-प्रतिमा के पार्श्व में भरत, शत्रुघ्न एवं लक्ष्मण की (हाथ में धनुष के साथ) एवं दशरथ की मूर्तियाँ भी दाहिनी ओर हों तथा कौसल्या की प्रतिमा की भी पूजा होनी चाहिए जिसके साथ पौराणिक मन्त्र कहे जाने चाहिए। रामार्चनचन्द्रिका ने दस एवं पाँच आवरणों की पूजा की भी चर्चा की है। रामनवमी का व्रतः चैत्र के मलमास में नहीं किया जाता। यही बात जन्माष्टमी एवं अन्य व्रतों के साथ भी पायी जाती है। वर्तमान समय में बहुत-से लोग रामनवमी पर उपवास नहीं करते, और कदाचित् ही कोई होम या प्रतिमा-दान करता है, किन्तु मध्याह्न काल में राम-मन्दिरों में उत्सव किये जाते हैं। आजकल नासिक, तिरुपति, अयोध्या एवं रामेश्वर में बड़ी धूमधाम के साथ यह उत्सव मनाया जाता है और सहस्रों व्यक्ति वहाँ जाते हैं। आजकल 'राम' नाम से बढ़कर कोई अन्य नाम हिन्दुओं की चिह्वा पर नहीं पाया जाता। - वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया एक महत्त्वपूर्ण तिथि है। इसे अक्षय-तृतीया कहते हैं। विष्णुधर्मसूत्र में इसका अति प्राचीन उल्लेख है। मस्त्य० (६५।१-७), नारदीय० (१।११२।१०) में यह उल्लिखित है। वहाँ आया है कि इस दिन उपवास करना चाहिए, वासुदेव की पूजा अक्षत चावल से की जानी चाहिए, उनसे अग्नि में होम करना चाहिए तथा उनका दान करना चाहिए। इस प्रकार के कृत्य' से व्यक्ति सभी पापों से छुटकारा पाता है, जो कुछ उस दिन दान किया जाता है, वह अक्षय हो जाता है। मत्स्य० में आया है कि उस दिन जो भी कुछ दिया जाता है, या जिसका यज्ञ किया जाता है या जो कुछ कहा जाता है (जप), वह फल रूप में अक्षय होता है, इस तिथि का उपवास भी अक्षय फल देने वाला होता है, यदि इस तृतीया में कृत्तिका नक्षत्र हो तो वह विशिष्ट रूप से फल देने योग्य ठहरती है। भविष्य० (३०।१-१९) में इसका विस्तार से उल्लेख है। उसमें आया है-'यह युगादि तिथियों में परिगणित होती है, क्योंकि कृत युग (सत्य युग) का आरम्भ इसी से हुआ, इस दिन जो कुछ भी किया जाता है, यथा स्नान, दान, जप, अग्नि-होम, वेदाध्ययन, पितरों को जलतर्पण-सभी अक्षय होते हैं।' इसमें व्यवस्था है कि इस तिथि में जल-पात्रों, छत्रों एवं पादत्राणों के दान से इनमें कमी नहीं पड़ती, इसी से इसे अक्षय तृतीया कहते हैं। देखिए वि० ध० सू० (९०।१६-१७)। कन्नौज के राजा गोविन्दचन्द्र के 'लार' नामक दान-पत्रों से पता चलता है कि सं० १२०२ में मंगल की अक्षय तृतीया (अप्रैल १५, ११४६ ई०) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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