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________________ अक्षय तृतीया, परशुरामजयन्ती, दशहरा ३७ के दिन राजा ने गंगा में स्नान करके किसी श्रीधर ठक्कुर को एक ग्राम दान दिया (एपि० इण्डिका, भाग ७, पृ० ७९) । जब तृतीया पूर्वाह्न में होती है तो उपर्युक्त धार्मिक कृत्य किये जाते हैं, किन्तु जब वह दो दिनो तक रहती है तो उनमें पश्चात्कालीन वाली व्रत के लिए उपयुक्त ठहरायी गयी है । विस्तार से अध्ययन के लिए देखिए हेमाद्रि (व्रत, भाग १, पृ० ५०० ५१२ एवं काल, पृ० ६१८ ), व्रतराज ( पृ० ९३-९६) एवं स्मृ० कौ० ( पृ० १०९) । इस तिथि में युगादि श्राद्ध के पिण्ड नहीं दिये जाते । अक्षय तृतीया वर्ष भर के अत्यन्त शुभ ३ || दिनों में से एक है (यह स्वयं है है ) | वैशाख के शुक्ल पक्ष की तृतीया को परशुरामजयन्ती भी मनायी जाती है ।" इसका सम्पादन रात्रि के प्रथम प्रहर में होता है (सूर्यास्तोत्तरं त्रिमुहूर्तः प्रदोषः, धर्मसिन्धु, पृ० ९ ) । स्कन्द० एवं भविष्य में आया है कि वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को रेणुका के गर्भ से विष्णु उत्पन्न हुए, उस समय नक्षत्र पुनर्वसु था, प्रहर प्रथम था, छह ग्रह उच्च थे और राहु मिथुन राशि में था । परशुराम की प्रतिमा की पूजा की जाती है और 'जमदग्निसुतो वीरः क्षत्रियान्तकरः प्रभो । गहाणार्घ्यं मया दत्तं कृपया परमेश्वर ॥' (धर्मसिन्धु, पु० ४६ ) नामक मन्त्र के साथ अ दिया जाता है। यदि तृतीया 'शुद्धा' (अन्य तिथि से न मिली हुई ) हो तो उस दिन उपवास करना चाहिए, किन्तु यदि तृतीया दो दिनों वाली हो, प्रथम प्रहर वाली थोड़ी भी सन्ध्याकाल में हो तो उपरान्त वाले दिन को व्रत किया जाना चाहिए, नहीं तो (यदि तृतीया विद्धा हो और रात्रि के प्रथम प्रहर से आगे न बढ़े ) तो दो दिनों में पहले वाले दिन उपवास करना चाहिए । परशुराम के कुछ मन्दिर भी हैं, विशेषतः कोंकण में, यथा चिप्लून में, जहाँ परशुरामजयन्ती बड़ी धूमधाम से मनायी जाती है। देखिए नि० सि० ( १०९५ ), स्मृ० कौस्तुभ ( पृ० ११२), पु० चि० (८९), हेमाद्रि ( व्रत, भाग १, पृ० ११७ ) जहाँ विस्तार से वर्णन है । भारत के बहुत से भागों में यह जयन्ती नहीं मनायी जाती| किन्तु दक्षिण में इसका सम्पादन होता है। ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष की दशमी को दशहरा नामक व्रत किया जाता है । ब्रह्मपुराण ( ६३ । १५ ) में आया है। कि ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की दशमी को 'दशहरा' कहते हैं क्योंकि यह दस पापों को नष्ट करती है (देखिए व० क्रि० कौ०, पृ० २८० ) । मनु (१२।५-७ ) ने दस पापों को तीन श्रेणियों में बाँटा है, यथा कायिक, वाचिक एवं मानस । राजमार्तण्ड (१३९७-१४०५ ) ने इस व्रत का वर्णन किया है। नि० सि० ( पृ० ९८ ) तथा अन्य निबन्धों में इसका अन्य आधार माना गया है, यथा ज्येष्ठ शुक्ल दशमी को मंगलवार ( वराह० के अनुसार ) या बुधवार ( स्कन्द० के अनुसार ), हस्त नक्षत्र, व्यातिपात, गर (करण), आनन्द योग पर, जब कि चन्द्र एवं सूर्य क्रमशः कन्या एवं वृषभ राशियों में हों; जब ये सब हों या इनमें अधिकांश हों, तो व्यक्ति को गंगा स्नान करके पापमुक्त होना चाहिए। बुधवार एवं हस्त से आनन्द योग होता है। ऐसा कल्पित है कि इसी तिथि पर गंगा ६. महाभारत में परशुराम की गाथा ( यथा २१ बार क्षत्रियों का नाश करना, कश्यप को पृथिवी का दान, राम के मिलने पर वीरता का ह्रास, महेन्द्र पर्वत पर निवास, पश्चिमी सागर को पीछे हटा देना आदि ) पायी जाती है। देखिए आदि० (२।३, १०३।६२), सभा० (१४१२), वन० ( ११६ १४, ११७१९ ), उद्योग० ( १७८/६२), द्रोण० (७०), कर्ण ० (४२१३ - ९ ), शल्य० ( ४९।७-१० ) । परशुराम के विषय में पुराणों में भी उल्लेख है, देखिए ब्रह्म० (२१३।११३ - १२३ ), वायु० (९१।६७-८६), ब्रह्माण्ड ० ( ३।२१-४७ एवं ५७-५८, जहाँ गोकर्ण एवं शूर्पारक की रक्षा की है), विष्णुधर्मोत्तर ( १।३५ ) । इनमें से कुछ अनुश्रुतियाँ २००० वर्ष से अधिक प्राचीन होंगी। रघुवंश ( ६ ४२, ११६४ ९१ ) में भी परशुराम-सम्बन्धी किंवदन्तियों का उल्लेख है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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