________________
रामनवमी-व्रत
भर पृथिवी पर बैठकर जागरण करना चाहिए।' यहाँ 'सदा' शब्द से प्रकट होता है कि यह 'नित्य' व्रत है किन्तु अन्य लोगों के मत से यह काम्य' है, क्योंकि यहाँ पाप से मुक्ति का फल भी मिलता है। निर्णयसिन्धु एवं तिथितत्त्व जैसे ग्रन्थों का निष्कर्ष है कि यह 'नित्य' एवं 'काम्य' दोनों है, जैसा कि “संयोगपृथक्त्व" नामक मीमांसा का न्याय कहता है ; 'अग्निहोत्र' के प्रकरण में वेद का कहना है-~'वह अग्नि में दधि का होम करता है'; वहीं दूसरा वचन है--'जो शारीरिक शक्ति चाहता है उसे अग्नि में दधि का होम करना चाहिए।' अर्थ यह है कि दो भिन्न वाक्यों में 'दधि' शब्द अलग-अलग वर्णित है, अतः दधि के साथ होम नित्य भी है और काम्य भी।
हेमाद्रि (व्रत, भाग १, पृ० ९४१-९४६), नि० सि० (पृ० ८३-८६), तिथितत्त्व (पृ० ५९-६२), कृ० त० वि० (पृ० ९६-९८), व्रतराज (पृ० ३१९-२९), व्रतार्क (१७२-१८२) में रामनवमी व्रत की विधि इस प्रकार है--चैत्र के शुक्ल पक्ष की अष्टमी के दिन भक्त को स्नान करना चाहिए, सन्ध्या करनी चाहिए, एक ऐसे ब्राह्मण को आमन्त्रित कर सम्मानित करना चाहिए जो वेदज्ञ हो, शास्त्रज्ञ हो, राम की पूजा में भक्ति रखता हो, राम-भक्तों की विधि जानता हो, और उससे प्रार्थना करनी चाहिए, 'मैं राम की प्रतिमा का दान करना चाहता हूँ।' इसके उपरान्त शरीर में लगाने के लिए उस ब्राह्मण को तेल देना चाहिए, स्नान कराना चाहिए, श्वेत वस्त्र पहनाना चाहिए, पुष्प देना चाहिए, उसे सात्विक भोजन देना चाहिए और स्वयं भी वही खाना चाहिए तथा सदा राम का ध्यान करना चाहिए। उस दिन रात्रि में उसे एवं आचार्य (सम्मानित ब्राह्मण) को बिना भोजन किये रहना चाहिए, दिन भर राम-कथाएँ सुननी चाहिए और स्वयं तथा आचार्य को पृथिवी पर ही सुलाना चाहिए (खाट पर नहीं)।
दूसरे दिन प्रातःकाल उठकर, स्नान, सन्ध्या-वन्दन करना चाहिए, चार द्वारों वाले ध्वजासंयुक्त मण्डप का निर्माण करना चाहिए, और तोरण, ध्वजा एवं पुष्पों से अलंकृत करना चाहिए। पूर्व द्वार पर शंख, चक्र एवं गरुड़, दक्षिण में धनुष एवं बाण, पश्चिम में गदा, तलवार एवं केयूर, उत्तर में कमल, स्वस्तिक-चिह्न एवं नीले रत्न रखने चाहिए। मण्डप में चार अंगुल ऊँची वेदिका बनानी चाहिए और मण्डप में पवित्र गानों एवं नृत्यों का आयोजन होना चाहिए। उसे ब्राह्मणों से आशीर्वाद ग्रहण करना चाहिए और तब संकल्प करना चाहिए कि 'मैं रामनवमी के दिन पूर्ण उपवास करूँगा और राम-पूजा में संलग्न राम की स्वर्ण-प्रतिमा बनवा कर राम को प्रसन्न करने के लिए उसका दान करूंगा'; इसके उपरान्त वह कहे--'मेरे गम्भीर पापों को राम दूर करें।' राम की मूर्ति
र पर रखना चाहिए, इस मूर्ति के दो हाथ होने चाहिए; जानकी की मूर्ति राममूर्ति की दाहिनी जाँघ पर होनी चाहिए। मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराना चाहिए। इसके उपरान्त मूलमन्त्र का पाठ होना चाहिए और न्यासों की प्रतिष्ठा होनी चाहिए। उत्सव. या पूजा मध्याह्न में की जाती है। ऋग्वेद के सोलह मन्त्रों (१०१९०) एवं पौराणिक मन्त्रों के साथ सोलह उपचारों से राम की प्रतिमा का पूजन करना चाहिए, प्रतिमा के विभिन्न अंगों की भी पूजा करनी चाहिए (श्री रामभद्राय नमः पादौ पूजयामि आदिः)। इसके उपरान्त मूल मन्त्र के साथ वेदिका
५. वैदिक मन्त्रों (ऋ० १०।९० के सोलह मन्त्रों) के साथ शरीर के कतिपय अंगों का स्पर्श से पवित्रीकरण ही न्यास है। मूल मन्त्र या तो ६ अक्षर हैं, यथा 'श्री राम राम राम' या १३ अक्षर हैं, यथा 'श्रीराम जय राम जय जय राम।' आजकल पुजारी लोग ऋ० १०॥३॥३ को वैदिक मूलमन्त्र के रूप में कहते हैं-'भद्रो भद्रया सचमान आगात् स्वसारं जारो अभ्येति पश्चात्। सुप्तकेतैर्युभिरग्निवितिष्ठन् रुशद्भिवणैरभि राममस्थात्।' यहाँ 'राम' शब्द आया है, किन्तु दूसरे अर्थ में। सायण ने अर्थ किया है-'रामं कृष्णं शार्वरं तमः।'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org