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धर्मशास्त्र का इतिहास विस्तारपूर्वक वर्णन है, जो सर्वप्रथम राजा या प्रमुख अधिकारी या सात गांव वाले भूमिपति द्वारा मनाया जाना चाहिए।
चैत्र मास की दूसरी महत्त्वपूर्ण तिथि है नवमी, जो शुक्ल पक्ष में होती है और जिस दिन विष्णु के सातवें अवतार राम की जयन्ती मनायी जाती है और उस दिन रामनवमी व्रत किया जाता है। इस विषय में हेमाद्रि (व्रत, भाग १, पृ० ९४१-९४६), व० क्रि० कौ० (पृ० ५२३-५२९), तिथितत्त्व (पृ० ५९-६२), निर्णयसिन्धु (पृ० ८३-८६), मुकुन्दवन यति के शिष्य आनन्दवन' यति की अगस्त्यसंहिता एवं रामार्चनचन्द्रिका आदि निबन्धों में विस्तार के साथ वर्णन है। यह विचित्र बात है कि इसका उल्लेख कृत्यकल्पतरु में, जो कृत्यों पर एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है, नहीं मिलता। प्रतीत होता है. राम-सम्प्रदाय की प्रसिद्धि कृष्ण-सम्प्रदाय के उपरान्त हई। अमरकोश ने विष्णु, नारायण, कृष्ण, वासुदेव, देवकीनन्दन एवं दामोदर को एक-दूसरे का पर्याय माना है, इसने राम (दाशरथि) का उल्लेख नहीं किया है, प्रत्युत उसे हलधर का पर्याय माना है। यहाँ हम रामनवमी का संक्षिप्त उल्लेख करेंगे। रामार्चनचन्द्रिका एवं व्रतार्क में प्रतिपादित है कि इसका सम्पादन समी लोग कर सकते हैं, यहाँ तक कि इसके अधिकारी चाण्डाल भी हैं।
___ अगस्त्यसंहिता (हेमाद्रि, व्रत, भाग १, पृ० ९४१) में आया है कि राम का जन्म चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मध्याह्न में हुआ था, उस समय पुनर्वसु नक्षत्र में चन्द्र था, चन्द्र और बृहस्पति दोनों समन्वित थे, पाँच ग्रह अपनी उच्च अवस्था में थे, लग्न कर्कटक था और सूर्य मेष राशि में था। माधव के कालनिर्णय (पृ० २२९-२३०) में आया है--'जब नवमी दो तिथियों में हो, तब यदि वह पहली तिथि के मध्याह्न में हो तो व्रत उसी दिन होना चाहिए। किन्तु यदि नवमी दोनों दिनों के मध्याह्न में पड़ती हो, या जब किसी भी दिन मध्याह्न को नवमी न हो तो दशमी से युक्त नवमी में व्रत होना चाहिए, न कि अष्टमी से युक्त नवमी में। यदि नवमी पुनर्वसु से संयुक्त हो तो वह तिथि अत्यन्त पुनीत ठहरती है। यदि अष्टमी, नवमी एवं पुनर्वसु एक स्थान पर हों तब भी नवमी दूसरे दिन (अर्थात् दशमी से संयुक्त विमी) होनी चाहिए। अन्य विस्तारों को हम यहीं छोड़ते हैं।
ऐसा कुछ लोगों का मत है कि रामनवमी नित्य व्रत है और सब के लिए है, किन्तु कुछ अन्य लेखकों के मत से यह केवल राम-भक्तों के लिए नित्य है और अन्य लोगों के लिए, जो विशिष्ट फल (पाप-मुक्ति या संसारनिवृत्ति या मुक्ति) चाहते हैं, काम्य है। अगस्त्यसंहिता में आया है--'यह सब के लिए है, यह सांसारिक आनन्द एवं मुक्ति के लिए है। वह व्यक्ति भी, जो अशुद्ध है, पापिष्ठ है, यह सर्वोत्तम व्रत करके सब से सम्मान पाता है, और ऐसा हो जाता है मानो साक्षात् राम हो। जो व्यक्ति रामनवमी के दिन भोजन करता है वह कुम्भीपाक में घोर कष्ट पाता है। जो व्यक्ति एक रामनवमी व्रत भी कर लेता है उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं और उसके पाप कट जाते हैं। और भी आया है----'उस दिन सदा उपवास करना चाहिए, राम-पूजा करनी चाहिए, उसे रात्रि
४. सर्वेषामप्ययं धर्मो भुक्तिमुक्त्येकसाधनम्। अशुचिर्वापि पापिष्ठः कृत्वेवं व्रतमुत्तमम्। पूज्यः स्यात् सर्वभूतानां यथा रामस्तथैव सः। यस्तु रामनवम्यां तु भुङ्क्ते स च नराधमः। कुम्भीपाकेषु घोरेषु पच्यते नात्र संशयः॥...एकामपि नरो भक्त्या श्रीरामनवमीं मुने। उपोष्य कृतकृत्यः स्यात्सर्वपापैः प्रमुच्यते॥ अगस्त्यसंहिता (हेमाद्रि, व्रत, भाग १, पृ० ९४२)। और देखिए नि० सि० (पृ० ८४), स्मृ० मु० (काल, पृ० ८३६)।
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