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________________ नववर्षारम्भ की प्रतिपदा ३३ भारत के उन भागों में, जहाँ वर्ष का आरम्भ चैत्र से होता है, प्रतिपदा तिथि को लोग धामिक कृत्यों एवं शुभ आयोजनों द्वारा मनाते हैं। चैत्र के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के कृत्यों पर ब्रह्मपुराण में जो आया है उस पर कालों के निबन्धों में लम्बा आख्यान है, यथा कल्पतरु (नयतकाल, पृ० ३७७-३८२), हेमाद्रि (व्रत, माग १, पृ० ३६०-३६५), कृत्यरत्नाकर (पृ० १०३-११०), व्रतराज (पृ० ४९-५३)। उस पुराण में आया है कि ब्रह्मा ने चैत्र मास के शुक्ल पक्ष के प्रथम दिन सूर्योदय के समय संसार का निर्माण किया और उसी दिन से कालगणना का शुभारम्भ हुआ। उसी दिन सब कल्मषों (पापों) को नाश करने वाली महाशान्ति का कृत्य किया जाना चाहिए। सर्वप्रथम ब्रह्मा की पूजा सभी ख्यात उपचारों के साथ की जानी चाहिए, इसके उपरान्त 'ओम्' एवं 'नमः' के साथ अन्य देवों की पूजा, प्रत्येक पल से लेकर सभी युगों की, दक्ष की कन्याओं की तथा अन्त में विष्णु की पूजा होनी चाहिए। इसके उपरान्त ब्राह्मणों का सम्मान भोजन एवं दक्षिणा से करना चाहिए, सम्बन्धियों एवं भृत्यों को भेंट या दान देना चाहिए, यविष्ठ नामक अग्नि में होम करना चाहिए, विशिष्ट भोजन बनवाना चाहिए तथा बड़े-बड़े उत्सव किये जाने चाहिए। भविष्यपुराण (ब्राह्मपर्व, १६१४४; हेमाद्रि, व्रत, पृ० ३३६ एवं वर्षक्रियाकौमुदी, प० २८ में उद्धत) में आया है कि यह तिथि ब्रह्मा द्वारा सर्वश्रेष्ठ तिथि घोषित हई है और इसे सर्वप्रथम पद (स्थान मिला है, अत: इसे प्रतिपदा कहा जाता है। चैत्र प्रतिपदा को वर्ष के स्वामी की पूजा होती है, उस दिन प्रत्येक गृहस्थ द्वारा तोरण एवं पताकाएँ लगायी जाती हैं। उस दिन तेल लगाकर स्नान करना चाहिए, नीम की पत्तियाँ खायी जानी चाहिएँ, शक या संवत् का नाम (फल) पंचांग से सुनना चाहिए। इसी प्रकार वर्ष के स्वामी, देवताओं (वर्ष के मन्त्रियों), अन्नों एवं द्रवों आदि के देवों के नाम सुनने चाहिए। आजकल भी ये कृत्य' देश में किसी-न-किसी रूप में किये जाते हैं। प्रतिपदा का शुभारम्भ प्रातःकाल होता है। जब प्रतिपदा दो दिनों तक सूर्योदय के समय हो तो प्रथम का वरण करना चाहिए, किन्तु यह किसी दिन सूर्योदय के समय न हो तो पूर्वविद्धा का ही वरण होना चाहिए। उदाहरणार्थ, यदि सूर्योदय के उपरान्त चार घटिकाओं तक अमावास्या हो तो प्रतिपदा ५६ घटिकाओं की उस दिन तथा कुछ घटिका दूसरे दिन तक रहती है, ऐसी स्थिति में अमावास्या से संबद्ध होने पर भी वर्ष का आरम्म हो जाता है और दूसरे दिन पर-विद्धा होने पर द्वितीया तिथि को प्रतिपदा नहीं मानना चाहिए। यदि चैत्र में मलमास होतो बहुत-से लोगों के मत से मलमास वाली प्रतिपदा से वर्ष का आरम्भ मान लिया जाना चाहिए।' समयमयूख के अनुसार जब चैत्र मलमास हो तो वर्ष एवं वसन्त का आरम्भ इसी से होता है, किन्तु तेल से स्नान एवं वर्षफल का श्रवण शुद्ध मास से करना चाहिए। धर्मसिन्धु (पृ० ३८) में आया है कि तैल-स्नान आदि कृत्यों के संकल्प में नये वर्ष का उच्चारण मलमास के प्रथम दिन से होना चाहिए, किन्तु ध्वजारोपण, निम्बपत्राशन, वत्सरादि फलश्रवण शुद्ध मास में किये जाने चाहिए। सामान्य विश्वास है कि चैत्र-शुक्ल प्रतिपदा वर्ष के ३॥ अत्यन्त महत्त्वपूर्ण मुहूर्तों में एक है। साम्राज्य-लक्ष्मीपीठिका (पृ० १२८-१३२) में चैत्र-शुक्ल के इस महान् उत्सव का ३. चैत्रस्य मलमासत्वे तैलाभ्यंगशकश्रवणादि शुद्ध एव कार्यम् । यद्यपि वत्सरवसन्तयोः प्रवृत्तिर्माता तथापि तत्प्रयुक्तकृत्यम्-षष्ट्या तु दिवसर्मासः कथितो बादरायणः। पूवमधं परित्यज्य कर्तव्या उत्तरे क्रिया ॥ इति वचनादुत्कृष्योत्तर एव कार्यम्। स० म० (पृ० १३)। पु० चि० (पृ० ५७) ने इस मत का विरोध किया है। वर्षक्रियाकौमुदी (पृ० २२७) ने 'पूर्वमधू परित्यज्य उत्तरार्ध प्रशस्यते' पड़ा है। और देखिए राजमार्तण्ड (कालविवेक, पृ० १३९), ज्योतिःशास्त्र। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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