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________________ ४८६ धर्मशास्त्र का इतिहास द्वारा पृथिवी की पुन: प्राप्ति का उल्लेख किया है। ऋ० (१०।११० ) की सर्वानुक्रमणी ( पृ० ४२ ) ने जमदग्नि ऋषि या उनके पुत्र राम का उल्लेख किया है। मेघदूत में विष्णु के वाम पाद को बलि के ऊपर रखने का उल्लेख हैं (वामनावतार) । माघ ने शिशुपालवध ( १५ ।५८ ) में बोधिसत्व (बुद्ध) को हरि का अवतार माना है ( वहाँ) कामदेव की सेना से बुद्ध को मोहित करने के प्रयास की ओर निर्देश है ) । माघ लगभग ७२५-७७५ ई० के आसपास हुए थे। वामन एवं कृष्ण नाम के अवतारों की जानकारी पतंजलि के महाभाष्य से प्राचीन है, क्योंकि इसमें बलि के बन्धन एवं कंस वध के नाटकीय प्रतिरूपों का उल्लेख पाया जाता है। एलोरा की दशावतार गुफा में वराह, नरसिंह, वामन एवं कृष्ण की प्रतिमाएँ हैं । ये गुफाएँ आठवीं शती की कही गयी हैं । उपर्युक्त बाल से प्रकट है कि कुछ अवतार, यथा वामन, परशराम एवं कृष्ण, ईसा से कई शतियों पूर्व से ज्ञात थे और भ दस अवतार कुछ लेखकों एवं अन्य लोगों द्वारा सातवीं शती तक मान लिये गये थे । धर्मशास्त्र-सम्बन्धी उपकरणों की वृद्धि में अवतारों की धारणा ने बहुत कुछ सहयोग दिया। अवतारों की धारणा एवं मान्यता से बहुत-से व्रतों एवं उत्सवों का धार्मिक कृत्यों में समावेश हो गया, यथा - वराहपुराण में द्वादशी व्रतों के विषय में एवं मत्स्य से लेकर कल्कि तक दस अवतारों के सम्मान में ३९-४८ अध्याय लिखित हैं। अवतारों की जयन्तियों के विषय में पृथक् पर्व बने, यथा-- वैशाख शुक्ल १४ को नरसिंह जयन्ती, वैशाख शुक्ल ३ को परशुराम जयन्ती । १२० अवतारों एवं उनकी जयन्तियों का वर्णन बहुत-से धर्मशास्त्र ग्रन्थों में भी पाया जाता है, किन्तु डा० पी० एल० वैद्य द्वारा सम्पादित (गंगा ओरिएण्टल सीरीज़ ) टोडरानन्द ( भाग १ ) में सबसे अधिक विस्तार से वर्णन हैं । पुराणों ने दान, श्राद्ध, तीर्थ, व्रत आदि पर सहस्रों श्लोक प्रणीत किये हैं जो धर्मशास्त्र के ग्रन्थों में सविस्तार उद्धृत हैं। स्थानाभाव से हम यहाँ उनकी ओर संकेत नहीं कर सकेंगे । ऐसा नहीं समझना चाहिए कि पुराणों में केवल धार्मिक विषयों तथा पंच-लक्षणों (सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर वंशानुचरित या वंश्यानुचरित) का ही उल्लेख है । कुछ पुराणों में अघोलिखित विषयों पर सविस्तार वर्णन है - राजाओं, मन्त्रियों, सेनापति, न्यायाधीश, दूत, लेखक, राजवैद्य के कर्तव्य, राज्याभिषेक, आक्रमण आदि । इस ग्रन्थ के खण्ड ३ में इन विषयों में कुछ पर विवेचन हो चुका है। राजनीतिक विषयों की अति विशद चर्चा मत्स्य' (अ० २१५-२२६, २४०), अग्नि ( २१४ - २४२), विष्णुधर्मोत्तर (२, अ० २-७, १८-२१,२४-२६, २८, ६१-६३, ६६-७२,१ ४५-१५२, १७७) में हुई है । अन्य पुराणों, यथा - गरुड़ (१।१०८-११५), मार्कण्डेय (२४, वेंकटेश्वर भी कहा गया है। मिलाइए हर्षचरित (३): 'महावराहपीवरस्कन्धपीठे नरकासुर इव भुवो गर्भावभूतः ।' देखिए 'रायल कांक्वेस्ट्स एण्ड कल्चरल माइग्रेशंस', शिवराम मूर्ति (कलकत्ता, १९५५), जहाँ चोयो शती के 'आदिवराह' की आकृति छपी है (प्लेट संख्या २ सी) । १२०. निर्णयसिन्धु में पुराणसमुच्चय से निम्नोक्त श्लोक उद्धृत है : मत्स्योऽभूद् घुतभुग्विने मधुसिते, कूर्मो विष माधवे, वाराहो गिरिजासुते नभसि यद् भूते सिते माघवे । सिंहो, भाद्रपदे सिते हरितियों श्रीवामनो, माधवे रामो गौरितिथावतः परमभूद् रामो नवभ्यां मघोः ॥ कृष्णोष्टम्यां नभसि सितपरे, चाश्विने यद्दशम्यां बुद्धः, कल्की नभसि समभूच्छुक्लषष्ठ्यां क्रमेण ॥ भक्तिप्रकाश (वीरमित्रोदय का एक भाग, पृ० ७९ ) ने भी इसे उद्धृत किया है। निर्णयसिन्धु में भी ऐसी टिप्पणी है कि कुछ लोगों ने विभिन्न तिथियों वाले वचन उद्धृत किये हैं और कुछ कोंकणी लेखकों ने वराहपुराण के श्लोक उद्धृत किये हैं, जिनमें मत्स्यजयन्ती आषाढ़ शुक्ल ११, बुद्ध की पौष शुक्ल ७ आदि हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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