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________________ पुराणों में राजनीति, न्याय-व्यवहार, समाजव्यवस्था संबन्धी निवेश ૪૮૭ प्रेस संस्करण, या २७, बनर्जीसंस्करण), कालिका (८७) में भी राजनीतिक बातों का उल्लेख है । यह द्रष्टव्य है कि मत्स्य (२४०।२) एवं अग्नि ( २२८।१) दोनों में 'आनन्द' एवं 'पाष्णिग्राह' नामक दो पारिभाषिक शब्द आये हैं, जो 'मण्डल - सिद्धान्त' के अन्तर्गत कहे गये हैं (कौटिल्य ४२, पृ० २६० ) । अत्यन्त आरम्भिक निबन्धों में कृत्यकल्पतरु ने राजधर्म पर एवं व्यवहार काण्ड पर मत्स्यपुराण को पर्याप्त रूप से उद्धृत किया है। इस निबन्ध ने ब्रह्म० को भी उद्धृत किया है, किन्तु वे उद्धरण प्रकाशित संस्करण (आनन्दाश्रम) में नहीं मिलते, यद्यपि वे मित्र मिश्र के राजनीतिप्रकाश में तथा अनन्तदेव के राजधर्मकौस्तुभ में भी उद्धृत हैं। राजधर्म पर कृत्यकल्पतरु ने विष्णुधर्मोत्तर को अपने राजधर्म में उद्धृत नहीं किया है, किन्तु राजनीतिप्रकाश में वह अधिकतर उद्धृत हुआ है, यथा-वि० ० २।१८।१, ५-१४ = रा० नी० प्र० पृ० ६१; वि० ० २।१८।२-४ = रा० नी० प्र० प्र०, ६६-८१ ( राज्याभिषेक पर मन्त्रों एवं सात देवों के आवाहन के लिए); वि० ० २।२३।१-१३ - रा० नी० प्र०, पृ० ८२-८३ । राजधर्मकौस्तुभ ने वि० घ० को २१ बार उद्धृत किया है। मत्स्य, अग्नि एवं विष्णुधर्मोत्तर में राजधर्म एवं उससे सम्बन्धित विषयों पर कई सहस्र श्लोक हैं। गरुड़पुराण (१।१०८-११५) में राजनीति पर लगभग ४०० श्लोक हैं जिनमें बहुत-से सुभाषित रूप में हैं और मनुस्मृति आदि में भी आये हैं (यथा गरुड़ १।१०९ | १ एवं ५२, १०७ एवं ११५/६३ क्रम से मनु ७।२१३, ८ २६, २।२३९ एवं ९।३ के जैसे हैं, महाभारत एवं नारदस्मृति, उदाहरणार्थ, 'न सा सभा' जो गरुड़ ११५।५२ है वह नारद ३।१८ ही है ) । स्वयं गरुड़ में आया है कि वह अर्थशास्त्र पर आधारित नीति ( राजधर्म) का सार-संक्षेप रखेगा, किन्तु १०८ - ११४ वाले अध्यायों के अन्त में जो आया है वह बृहस्पति द्वारा उद्घोषित नीतिशास्त्र है। बाण की कादम्बरी का एक आरम्भिक श्लोक भी गरुड़ में भाया है।' मार्कण्डेयपुराण (२४/५, २३-३३ या अध्याय २७ एवं २१-३१, बनर्जी संस्करण) के कुछ श्लोक रा० नी० प्र० ( पृ० ३०-३१) द्वारा उद्धृत हैं ( राजाओं के कर्तव्यों पर तथा उनके द्वारा इन्द्र, सूर्य, यम, सोम एवं वायु नामक पंच देवों के विलक्षण गुणों के अपनाये जाने पर ) । दायभाग ने रिक्थ एवं उत्तराधिकार वाले सापिण्ड्य को अशौच के सापिण्ड्य से पृथक् मानने में मार्कण्डेयपुराण को उद्धृत किया है। राजा द्वारा मनाये जाने वाले 'कौमुदीमहोत्सव' पर कृत्यकल्पतरु ने (राजधर्म, पू० १८२ - १८३ ) स्कन्दपुराण को उद्धृत किया है। यही उद्धरण रा० नी० प्र० ( पृ० ४१९-४२१) में भी है । कृत्यकल्पतरु (राजधर्म काण्ड) ने वसोर्धारा पर भविष्यपुराण से एक लम्बा वचन उद्धृत किया है, जो रा० नी० प्रकाश द्वारा देवीपुराण से उद्धृत है । कालिकापुराण ने ८७ वें अध्याय में राजनीति पर १३१ श्लोक लिखे हैं, जिनमें राजा द्वारा सम्पादित किये जाने वाले कर्तव्यों पर एक निष्कर्ष उपस्थित किया गया है। इस अध्याय में उशना एवं बृहस्पति के ग्रन्थों का उल्लेख है (श्लोक ९९ एवं १९३०) और राजा द्वारा ऐसे ब्राह्मणों को सम्मानित करने की ओर निर्देश है, जो ज्ञान, विद्या, तप एवं आयु में श्रेष्ठ हों आगे इसमें राजा को इन्द्रियनिग्रह, (साम, दान, दण्ड एवं भेद नामक) चार उपायों के पालन; जुआ, मद्यपान, विषय-भोग, आबेट-यापन आदि के त्याग; ६ गुणों (यान, आसन १२१. अकारणाविष्कृतकोपधारिणः खलाद् भयं कस्य न नाम जायते । विषं महाहेविषमस्य दुर्वचः सुदुःसहं संपितेत् सवा मुखे ॥ गवड़ १ । ११२।१६; मिलाइए कादम्बरी का प्रारम्भिक श्लोक ५ : 'अकारणाविष्कृतवैरवारुणावसज्जनात् कस्य भयं न जायते। विषं महाहेरिव यस्य दुर्वचः सुदुःसहं संनिहितं सदा मुखे ॥' ( खल-वन्दना) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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