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धर्मशास्त्र का इतिहास पुत्र राम (रावण को मारते हुए), कृष्ण (कंस, नरकासुर, कालयवन, जरासंध, शिशुपाल को मारते या हराते हुए)। उसी अध्याय में दस नाम इस प्रकार आये हैं हंस, कूर्म, मत्स्य, वराह, नरसिंह, वामन, राम (भार्गव), राम (दाशरथि), साचत, कल्कि। यहाँ बुद्ध का नाम नहीं है। कृष्ण को सात्वत कहा गया है और एक नाम हंस आया है। आदि० (२१८।१२) में वासुदेव को सात्वत कहा गया है। हरिवंश (१।४१।११) में ऐसा कथित है कि प्राचीन काल में सहस्रों अवतार हुए हैं और भविष्य में भी सहस्रों होंगे। यही बात शान्तिपर्व (३३९।१०६) में भी है। और देखिए भागवत (१।३।२६) एवं अग्नि (१६।११-१२)। हरिवंश (११४१।२७) में अधोलिखित नाम आये हैं वराह, नरसिंह, वामन, दत्तात्रेय, जामदग्न्य (परशुराम), राम, कृष्ण एवं वेदव्यास। किन्तु केशव को नवाँ अवतार कहा गया है (१।४१।६) । अतः यह समझा जा सकता है कि मत्स्य एवं कूर्म की भी गणना हुई है, यद्यपि इनके नाम स्पष्ट रूप से आये नहीं हैं और विष्णुयशा कल्कि को भावी अवतार कहा गया है। दस अवतारों के नाम वराह (४१२,४८५१७२२, ५५।३६-३७), मत्स्य (२८५।६-७) १५, अग्नि (अध्याय २-१६, जहाँ दसों की गाथाएँ दी हुई हैं), नरसिंह (अध्याय ३६), पद्म (६।४३।१३-१५) में आये हैं। वायु (९८१६८-१०४) में अवतारों का उल्लेख अन्य ढंग से हुआ है और दस नाम ये हैं-वराह, नरसिंह, वामन, दत्तात्रेय, मान्धाता, जामदग्न्य, राम (दाशरथि), वेदव्यास वासुदेव, कल्कि विष्णुयशा। ब्रह्माण्ड (३।७३।७५) में वर्तमान दस नामों से भिन्न नाम आये हैं। भागवत में विष्णु के अवतारों का उल्लेख कई स्थानों पर हुआ है-१।३।१-२५ में २२ अवतारों का उल्लेख है जिनमें ब्रह्मा, देवर्षि नारद (जिन्होंने सात्वतसिद्धान्त चलाया), नर-नारायण, कपिल (जिन्होंने आसुरि को सांख्य सिद्धान्त पढ़ाया), दत्तात्रेय, ऋषभ (नाभि एवं मेरुदेवी के पुत्र) १६, धन्वन्तरि, मोहिनी, वेदव्यास, बलराम एवं कृष्ण, बुद्ध, कल्कि भी सम्मिलित हैं। २१७ में २३ अवतारों का उल्लेख है, जिनमें बहुत-से १।३ में भी पाये जाते हैं। २१७ में ध्रुव, पृथु (बेन के पुत्र), हयग्रीव भी उल्लिखित हैं, जिनमें प्रथम दो कहीं और अवतारों के रूप में नहीं घोषित हैं। भागवत (११।४०।१७-२२) में निम्नोक्त अवतार वर्णित हैं-मत्स्य, हयशीर्ष, कूर्म, सूकर, नरसिंह, प्रद्युम्न, अनिरुद्ध, बुट, कल्कि। भागवत (११।४।१६-२२) में १६ अवतार उल्लिखित हैं---सामान्यतः वर्णित दस तथा हंस, दत्त (दत्तात्रेय), कुमार (नारद), ऋषभ, व्यास एवं हयग्रीव। मत्स्य (९९।१४) एवं पद्म (५।१३।१८२-१८६) में १२ अवतारों का उल्लेख है। प्रपंचसारतन्त्र (अद्वैत-गुरु शंकराचार्य द्वारा लिखित कहा गया) के पटल २०५९ में मत्स्य, कर्म, वराह,
मनुष्याणामजायत यदुक्षये ॥ स एव भगवान् विष्णुः कृष्णेति परिकीर्त्यते । वनपर्व २७२।७१-७२। ब्रह्मपुराण (१८०।२६-२७ एवं १८१२-४) में गीता के ही शब्द हैं। देवीभागवत (७॥३९) में है 'यदा यदा...भवति भूबर। अम्यु...तवा वेषान् बिभर्म्यहम् ॥'
११५. मत्स्य का २८५।६-७ अंश क्षेपक है, क्योंकि एक अन्य स्थान पर भवतारों के नाम भित्र। मत्स्य के ४७१०६ में भृगु द्वारा विष्णु को दिये गये शाप का उल्लेख है, क्योंकि विष्णु ने अपनी पत्नी को मार गला पा अतः उन्हें सात बार मनुष्य-योनि में उत्पन्न होना पड़ा और वे सात अवतार है--बत्तात्रेय, मान्धाता, जामदग्न्य (भार्गव) राम, राम दाशरथि, वेदव्यास, बुद्ध, कल्कि तथा तीन अन्य (४७।२३७-३४०), यथा-मारायण, नरसिंह एवं वामन जोड़ दिये गये हैं; मत्स्य (५४।१५-१९) में नक्षत्रपुरुष-व्रत और दस अवतारों का उल्लेख है।
११६. ऋषभ, जो नाभि के पुत्र थे, जनों के प्रथम तोयंकर-से लगते हैं, और वे सम्भवतः बुद्ध के समान विष्णु के अवतार कहे गये हैं। भागवत (१।३।२४) में बुद्ध के लिए कहा गया है-ततः कलौ संप्रवृत्ते संमोहाय सुरद्विषाम् । बुद्धो नाम्नाऽजनसुतः कोकटेष भविष्यति ॥ नमो बुद्धाय शुद्धाय दैत्यवानवमोहिने। १०॥४०॥२२॥
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