SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 48
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्मयोग्य तिथियों के प्रकार में, जब चन्द्र एवं बृहस्पति कृत्तिका में हों, तो महाकार्तिकी तिथि कहलायेगी। राजमार्तण्ड एवं भविष्य में प्रतिपादित है कि कुछ तीर्थों में महाचत्री आदि तिथियों (अन्य शेष ११ 'महा' पूर्णिमाओं के साथ) के दिन स्नान करने से बड़े फल प्राप्त होते हैं, यथा प्रयाग में महामाघी के दिन, नैमिषारण्य में महाफाल्गुनी पर, शालग्राम में महाचैत्री पर, महाद्वार में महावैशाखी पर, पुरुषोत्तम में महाज्यैष्ठी पर, कनखल में महाषाढ़ी पर, केदार में महाश्रावणी पर, बदरी में महामाद्री पर, कुब्जाम्र में महाश्विनी पर, पुष्कर में महाकार्तिकी पर, कान्यकुब्ज में महामार्गशीर्षी पर तथा अयोध्या में महापौषी पर। देखिए राजमार्तण्ड (१३८९-१३९२), व० क्रि० कौ० (पृ० ८०, जहाँ ये बातें भविष्य में लिखित मानी गयी हैं) तथा हेमाद्रि (काल, पृ० ६४२)। कुछ तिथियो में बहुत-से कर्म निषिद्ध ठहराये गये हैं। ऐसे कृत्यों एवं कर्मों की तालिकाएँ बड़ी लम्बी हैं। दो-एक उदाहरणार्थ पर्याप्त हैं। देवल (कृ० र०, पृ० ५४७, व० क्रि० कौ०, पृ० ८६) में आया है--पंचदशी, चतुर्दशी और विशेषतः अष्टमी को तैल, मांस, व्यवाय (मैथुन) एवं क्षुरकर्म का व्यवहार नहीं होना चाहिए। नारदीय (११५६।१४०-१४१) में व्यवस्था है कि षष्ठी को तैल, अष्टमी को मांस, चतुर्दशी को क्षुरकर्म एवं पूर्णिमा तथा अमावास्या, को मैथुन का प्रयोग नहीं होना चाहिए। कुछ तिथियों में तैल, शाक, फल आदि वर्जित हैं (देखिए तिथितत्त्व,पृ०२७-२८)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy