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________________ ! अध्याय २४ धर्मशास्त्र पर पुराणों का प्रभाव साहित्यिक कृतियों एवं समाज का एक-दूसरे पर घात प्रतिघात होता है । ईसा के पूर्व एवं पश्चात् की शतियों तक भारतीय समाज ने बौद्ध धर्म, जैन धर्म एवं अन्य विरोधी सम्प्रदायों द्वारा टुकड़े-टुकड़े हो जाने के कारण एवं यूनानियों, शकों, पल्लवों, हूणों तथा अन्य बाह्य लोगों के आक्रमणों एवं अत्याचारों के फलस्वरूप वैदिक धर्मावलम्बी चिन्तकों को सोचने के लिए विवश किया और उन्हें ऐसे ग्रन्थों के प्रणयन के लिए अनुप्राणित एवं अभिप्रेरित किया जिनमें नये दृष्टिकोणों एवं व्यवहारों का समावेश हो और उनके फलस्वरूप वैदिक एवं स्मृतिधर्म की पुनर्व्याख्या हो सके। जब ये ग्रन्थ प्रामाणिक एवं महत्त्वपूर्ण हो गये तो वेद के अनुयायियों का प्रयास यही था कि वे उनका अनुसरण करें और यथासम्भव पुराणों की आवश्यकताओं के अनुसार व्यवहारों एवं धार्मिक कृत्यों में अनुकूलता स्थापित करें। हमें यही देखना है कि पुराणों ने किस प्रकार पुनर्व्यवस्थापन की समस्या का समाधान किया। हमें यह अवश्य जानना चाहिए कि प्रचलित हिन्दू धार्मिक व्यवहारों से यही प्रकट होता है, जैसा for प्रत्येक कृत्य के आरम्भ में लिये गये संकल्प से स्पष्ट होता है, कि उनसे श्रुति (वेद), स्मृति एवं पुराणों (श्रुतिस्मृति - पुराणोक्त फलप्राप्त्यर्थम् ) द्वारा घोषित फल कर्ता को प्राप्त होता रहे। इस क्रिया के मूल में दो बातें थीं, यथा(१) बौद्ध धर्म, जैन धर्म की शक्ति एवं मर्यादा तथा विभिन्न उत्पन्न दार्शनिक सम्प्रदायों के प्रभाव को समाप्त करना' तथा (२) बौद्ध धर्म के आकर्षक स्वरूपों से अधिकांश लोगों के मन को हटाना और उनके मन में यह Maratha yr of स्थत एवं पुनः प्रकाशित हिन्दू धर्म से उन्हीं सामाजिक एवं आध्यात्मिक लाभों को प्राप्त कर सकते हैं जो बौद्ध धर्म से परिलक्षित अथवा अभिसंधानित होते हैं, तथा यह भी बताना कि वेद के अनुयायियों के धार्मिक सिद्धान्त बौद्ध धर्म की शिक्षाओं से मेल रखते हैं और बौद्ध धर्म की बातें वैदिक व्यवहारों से ही ली गयी हैं । अन्ततोगत्वा बौद्ध धर्म अपने उद्गम स्थान भारत से विलुप्त हो गया । बौद्ध धर्म के भारत से विलुप्त हो जाने के कारणों पर प्रकाश हम इस भाग के अन्त में डालेंगे, किन्तु यहाँ पर इतना तुरत कह देना आवश्यक है कि बौद्ध धर्म के अधःपतन एवं विलुप्त होने के मूल में पुराणों का एक प्रमुख हाथ था, क्योंकि उन्होंने बौद्ध धर्म वे बहुत-से सिद्धान्तों पर स्वयं बल दिया तथा उन्हें अपना लिया, यथा --- अहिंसा पर बल दिया, बुद्ध को विष्णु का अवतार घोषित कर दिया, निरामिष भोजन को तपस्या का एक प्रमुख अंग मान लिया तथा मठों एवं वैराग्यवाद का उपयोग किया, जैसा कि मनु एवं याज्ञवल्क्य की स्मृतियों में कथित था । ' १. महावग्ग (सुत्तनिपात का भाग) में ऐसा आया है कि बुद्ध के समय में ६३ वार्शनिक सम्प्रदाय थे (देखिए सेक्रेड बुक आव वि ईस्ट, जिल्द १०, भाग २,५,०९२) । २. पाजिटर ('पुराण टेक्ट्स आव वि डायनेस्टीज आव वि कलि एज', पृ० २८, पादटिप्पणी) का विचार है कि पौराणिक साहित्य द्वारा हिन्दू धर्म का पुनवद्वार हुआ और बौद्ध धर्म का अधःपतन हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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