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________________ ४२८ धर्मशास्त्र का इतिहास श्लोक लिये हैं और स्मृतिच० ने कुल २३। इस पुराण के इतने बड़े आकार के रहने पर भी इसके उद्धरण बहुत कम लिये गये हैं। यह एक विचित्र बात है। एक श्लोक में कालिदास की ध्वनि मिलती है और देवल का मत भी एक स्थान पर झलक उठता है।" इतने विशाल ग्रन्थ में क्षेपकों का आ जाना सरल है। अतः तिथि-निश्चय करना कठिन है। नेपाल दरबार पुस्तकालय की एक पाण्डुलिपि सातवीं शती की है, जैसा कि हरप्रसाद शास्त्री का कथन है। अत: यदि हम स्कन्दपुराण की तिथि के विषय में यह कहें कि यह सातवीं शती के पूर्व नहीं रखा जा सकता और न नवीं शती के पश्चात् का हो सकता है, तो हम सत्य से बहुत दूर नहीं होंगे। भगवति ब्रह्ममातविष्णुभगिनि रुद्रदेवते सर्वपापविमोचिनि स्वरूपं स्मर इडे इडान्ते हव्ये चान्द्रे तिमति सरस्वति सुश्रुते एह्येहि हुंकर हुंकुरु सर्वलोकमपे एह्यागच्छागच्छ स्वाहा । इति धेनुकर्णजपः।' २१. मरणं प्रकृतिश्चैव जीवितं विकृतिर्यदा। स्कन्द (१।२।१०।२७); मिलाइए 'मरणं प्रकृतिः शरीरिणां विकृतिर्जीवितमुच्यते बुधः॥' रघुवंश (८१८७); त्रीणि ज्योतींषि पुरुष इति वै देवलोऽब्रवीत् । भार्या कर्म च विद्या च संसाध्यं यत्नतस्त्रयम् ॥ स्कन्द (११२।१५।१०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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