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पुराणों एवं उपपुराणों पर संक्षिप्त टिप्पणियां
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भागवतपुराण-मिताक्षरा, अपरार्क, कल्पतरु, स्मृतिचन्द्रिका जैसे आरम्भिक निबन्धों ने इस पुराण से कुछ भी उद्धरण नहीं लिया है। दानसागर को इस पुराण का पता था, किन्तु दान-सम्बन्धी बातों के अभाव के कारण उसने इसकी चर्चा नहीं की। इसकी तिथि बहुत ही विवादग्रस्त है, यह पाँचवीं शती से १० वीं शती तक खींची जाती है। डा० पुसल्कर ('स्टडीज़ इन एपिक्स एण्ड पुराणज', १९५३, पृ० २१४-२१६) ने इसके सम्बन्ध के सभी लेख एकत्र कर डाले हैं। श्री एस० एस० शास्त्री (ए० बी० ओ० आर० आई०, जिल्द १४, पृ० २४१-२४९) ने 'दो भागवतों की चर्चा में देवीभागवत-पुराण को इस भागवत से प्राचीन माना है। ह० (जे० ओ० आर०, मद्रास, जिल्द २१, पृ० ४८-७९) ने इस मत का उलटा कहा है, अर्थात् देवीभागवत को भागवत से पश्चात्कालीन माना है। श्री बी० एन० कृष्णमूर्ति शर्मा (ए० बी० ओ० आर० आई०, जिल्द १४, पृ० १८२-२१८) ने भागवत को ५ वीं शती का माना है। प्रो० दासगुप्त ने अपने ग्रन्थ 'इण्डियन फिलासफी के चौथे भाग में इस पुराण की चर्चा की है, किन्तु उनका मत जे० बी० आर० एस० (जिल्द ३६, ५० ९-५०) में आलोचित हो चका है। पद्मपुराण (भाग ४, अध्याय १८९-१९४) में ५१८ श्लोकों में भागवतपुराण का एक माहात्म्य है। इस पुराण का लेखक तमिल देशवासी है, ऐसा श्री अमरनाथ राय ने कहा है (इण्डि० हिस्टा० क्वा०, जिल्द ८, पृ० ४९-५३ ) । प्रस्तुत लेखक का कथन है कि यह पश्चात्कालीन पुराण है, क्योंकि कल्पतरु के मोक्षकाण्ड में भी इसका उल्लेख नहीं हुआ है, जब कि उसी काण्ड में विष्णुपुराण से ३०० श्लोक उद्धृत हुए हैं। वर्तमान संस्करण को नवीं शती के पूर्व रखने के लिए हमारे पास कोई प्रचुर एवं साधिकार प्रमाण नहीं है।
मत्स्यपुराण (आनन्दाश्रम संस्करण)---इसमें २८१ अध्याय एवं १४,०६२ श्लोक हैं। यह प्राचीन पुराणों में मुख्य है और सम्भवतः इसमें अन्य पुराणों की अपेक्षा अधिक स्मृति-सम्बन्धी अध्याय हैं। इसमें मनुस्मृति एवं महाभारत के बहुत-से श्लोक आये हैं। याज्ञवल्क्यस्मृति के भी कुछ श्लोक आये हैं (यथा याज्ञ० ११२९५, मत्स्य ९३।२; याज्ञ २।२७९।२९५-६ एवं ३०३, मत्स्य २२७।२००, २०२-२०३ एवं २०४) । लगता है, मत्स्य ने शिव एवं विष्णु को समान तुला पर रखा है। इसने न केवल विष्णु के मत्स्यावतार की महत्ता गायी है, प्रत्युत इसने तारकासुर के वध पर १२७० श्लोक एवं त्रिपुर के वध पर ६२३ श्लोक दिये हैं और ये दोनों शिव द्वारा हते गये हैं। वामनपुराण (१२१४८) ने इसे प्रमुख पुराणों में परिगणित किया है। .
मिताक्षरा (याज्ञ १।२९७) ने मत्स्य के अध्याय ९४ के ९ श्लोक (जो ग्रहों की प्रतिमाओं के आकार के सम्बन्ध में हैं) तथा अध्याय ९३ के दो (११-१२) श्लोक, जो एक मण्डल में श्वेत चावलों के साथ प्रत्येक को स्थापित करने के विषय में हैं, उद्धृत किये हैं। कल्पतरु ने व्रत पर सैकड़ों, दान पर लगभग ७५०, राजधर्मकाण्ड में ४१०, गृहस्थकाण्ड में ११५, श्राद्ध पर ११२, नियतकाल पर ६७, व्यवहारकाण्ड में १८, ब्रह्मचारी पर ६ एवं मोक्ष पर २, इस प्रकार लगभग २००० श्लोक उद्धृत किये हैं। अपरार्क ने लगभग ४०० श्लोक लिये हैं। दानसागर, स्मृतिचन्द्रिका
१७७१५१। वराह ने सूर्य के तीन मन्दिरों का उल्लेख किया है (१७८०५-७), एक यमुना के दक्षिण में, दूसरा मध्य में जिसे कालप्रिय कहा जाता है और तीसरा मूलस्थान (आज के मुलतान) के पश्चिम में। भविष्यपुराण ने सूर्य की पूजा के तीन महत्वपूर्ण स्थानों का उल्लेख किया है (यथा-मुण्डीर, कालप्रिय एवं मित्रवण)। दिलीपकुमार विश्वास की यह बात ठीक जंचती है. (१५ वी इण्डियन हिस्ट्री कांग्रेस की प्रोसीडिंग का सार-संक्षेप, पृ०३०) कि मुण्डीर आज का मोढेरा है जो उत्तरी गुजरात में है और जहां पर लगभग एक सहस्र वर्षों से एक सुन्दर सूर्य-मन्दिर अवस्थित है।
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