SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 430
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुराणों एवं उपपुराणों पर संक्षिप्त टिप्पणियाँ ४१३ कालिका-(वेंक० प्रेस, बम्बई द्वारा ९३ अध्यायों में उप० रूप में प्रकाशित)। देखिए ह० (ए० बी० ओ० आर० आई०, जिल्द २२, पृ० १-२३); शर्मा (इण्डि० हि० क्वा०, जिल्द २३, पृ० ३२२-३२६) ने ऐसा विचार व्यक्त किया है कि यह उपपुराण कामरूप के राजा धर्मपाल के शासन-काल में पूर्ण हुआ; ह० (भारतीय विद्या, जिल्द १६, १९५६, पृ० ३५-४०) ने शर्मा के मत का विरोध किया है। प्रो० गोड़े ने इसकी तिथि के विषय में जे० ओ० आर० (मद्रास, जि० १०, पृ० २८९-२९४) में लिखा है। और देखिए डा० राघवन (वही, जिल्द १२, पृ० ३३१-३६०), जिन्होंने व्यक्त किया है कि इसके तीन पाठान्तर हैं। ह० ने आज की प्रति एवं पहले की प्रति में अन्तर दिखाते हुए आज की प्रति को १० वीं या ११ वो शती का माना है। कल्पतरु ने कालिका के श्लोक (व्रत एवं दान पर १००, गृहस्थ पर १४, व्यवहार पर १२, नियतकाल एवं तीर्थ पर ५, ब्रह्मचारी पर २) उद्धृत किये हैं। इसी प्रकार अपरार्क एवं दानसागर में भी इसके उद्धरण हैं। वेंक० संस्करण में विष्णुधर्मोत्तर का उल्लेख है. (९१-७० एवं ९२।२)। आज जो प्रति उपलब्ध है उसके आधार पर कालिका को १००० ई० में रखा जा सकता है। कल्किपुराण--देखिए ह० (स्टडीज, जिल्द १, पृ० ३०३-३०८)। इसके तीन संस्करण हैं और सभी कलकत्ता के हैं। ह० के कथनानुसार यह पश्चात्कालीन पुराण है, इसे किसी ने उद्धृत नहीं किया है, फिर भी इसे १८ वीं शताब्दी के उपरान्त का नहीं कहा जा सकता है। कूर्म-(वेंक० प्रेस संस्करण); यह पूर्वार्ध (५३ अध्याय) एवं उत्तरार्ध (४६ अध्याय) भागों में बँटा हुआ है। देखिए ह० ('पुराणज़ इन हिस्ट्री आव स्मृति', इण्डि० कल्चर, जिल्द १, पृ० ५८७-६१४; 'स्मृति चैप्टर्स आव कूर्म', इण्डि० हिस्टा० क्वा०, जिल्द ११, पृ० २६५-२८६ एवं स्टडीज़, पृ.० ५७-७५) । ह० का कथन है कि यह आरम्भ में एक पाञ्चरात्र कृति था, जो पाशुपत बनाने के लिए परिवर्तित कर दिया गया। बहुत श्लोकों में कूर्म ने कहा है कि परमात्मा एक है (२।११।११२-११५), किन्तु नारायण एवं ब्रह्मा (१।९।४०) या विष्णु एवं शिव (१।२।९५) के रूपों में दो और कभी तीन (१।१०७०)। स्मृतिचन्द्रिका (भाग १,पृ० १९९) ने इसके (१।२।९४, ९५, ९७-९९) उद्धरण दिये हैं, जिनके द्वारा कोई विष्णु की पूजा (ऋ०२२।२० या १०१९८के मन्त्रों के साथ).या शिव की पूजा गायत्री या रुद्रों के साथ (तै० सं० ४।५।१-११),या 'त्र्यम्बकम्' (ऋ०७५९।१२,तै० सं०१।८।६।२) के साथ या 'ओं नमः शिवाय' के साथ कर सकता है। स्मृतिच० ने आह्निक पर ८४ एवं श्राद्ध पर १९ श्लोक उद्धृत किये हैं। एक स्थान (१११।२१-२२) पर इसमें आया है कि पुराण की चार संहिताएँ थीं, यथा-ब्राह्मी, भागवती, सौरी एवं वैष्णवी और प्रस्तुत संहिता ६००० श्लोकों में ब्राह्मी संहिता है। नारदीय (१।१०६।१-२२) ने अन्य तीन संहिताओं का संक्षेप उपस्थित किया है। पद्म (पातालखण्ड १०२१४१-४२) ने स्पष्ट रूप से कर्म का उल्लेख किया है और इससे एक श्लोक उद्धृत किया है। अपरार्क ने उपवास पर इसके तीन श्लोक (पृ० २०१, ३०४ एवं २०७) उद्धृत किये हैं। गणेशपुराण-देखिए ह०, जर्नल आव दि गंगानाथ झा रिसर्च इंस्टीच्यूट, इलाहाबाद । १. कालिका (९२१२) में आया है : 'विष्णुधर्मोत्तरे तन्त्रे बाहुल्यं सर्वतः पुनः । द्रष्टव्यस्तु सदाचारो द्रष्टव्यास्ते प्रसावतः॥' इसके उपरान्त पुत्र की इच्छा रखने वाले वेताल एवं भैरव की कथा कही गयी है। २. कौम समस्तपापानां नाशनं शिवभक्तिवम् । इदं पद्यं च शुश्राव पुराणनेन भाषितम् ॥ ब्रह्महा मद्यपः स्तेनस्तयैव गुरुतल्पगः। कौम पुराणं श्रुत्वैव मुच्यते पातकात्ततः॥पन (पातालखण्ड १०२, ४१-४२)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy