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धर्मशास्त्र का इतिहास
गरुडपुराण—गत अध्याय में कहा गया था कि बल्लालसेन ने इसका बहिष्कार किया है। देखिए ह० (ए० बी० ओ० आर० आई०, जिल्द १९, पृ० ६९-७९; स्टडीज़, पृ० १४१ - १४५ ) ; ए० पी० करमर्कर, 'बृहस्पतिनीतिसार' ( सिद्ध-भारती, जिल्द १, पृ० २३९ - २४० ) ; डा० एल० एस० स्टर्नबाच (ए० बी० ओ० आर० आई०, जिल्द ३७, पृ० ६३-११०) जिन्होंने चाणक्यराजनीतिशास्त्र एवं बृहस्पतिसंहिता (गरुड़पुराण की) पर लेख लिखा है। स्मृति ० (२, पृ० २५७, एकादशी पर ) ने गरुड़ का उद्धरण दिया है। आज के गरुड़पुराण की प्रति ने पराशरस्मृति का संक्षेप ३९ श्लोकों में दिया है। इसकी तिथि ई० छठीं शती के पूर्व एवं सन् ८५० के उपरान्त नहीं रखी जा सकती ।
देवीपुराण -- ( उपपुराण) । देखिए ह० ( न्यू इण्डियन एण्टीक्वेरी, जिल्द ५, पृ० २-२० ) जिन्होंने इसे सातवीं शती के उत्तरार्ध का माना है। देखिए दानसागर जिसने इसके उपयोग का बहिष्कार किया है । संक्रान्ति के विषय में चर्चा करते हुए भुजबल - निबन्ध ( लगभग १०४० ई० ) ने इसे उद्धृत किया है । कल्पतरु ने कई खण्डों में देवीपुराण को उद्धृत किया है, यथा राजधर्म में २१० श्लोक ( ८८ श्लोक राजधानी की किलेबन्दी पर ), बकरियों एवं मैं की बलि के साथ आश्विन शुक्ल नवमी पर देवी की पूजा में ३७ श्लोक, देवी के सम्मान में पताका खड़ी करते समय के ५२ श्लोक, कार्तिक अमावस्या पर गवोत्सर्ग के १० श्लोक; व्रतकाण्ड में लगभग ८० श्लोक ( दुर्गाष्टमी पर २५ श्लोक, निन्दाव्रत पर ४४ श्लोक, एक गद्य खण्ड के साथ), दान पर; ४५ श्लोक ( यथा -- तिलधेनु एवं घृतधेनु पर २८, विद्यादान पर ५६, कूप, वापी, दीर्घिका आदि के निर्माण पर ९८, वाटिका एवं वृक्षारोपण पर २७, साधुसंन्यासियों के विश्रामस्थल निर्माण पर १० श्लोक ) ; तीर्थकाण्ड में १०१ श्लोक; नियतकालकाण्ड में ३० श्लोक ; ब्रह्मचारि-काण्ड में थोड़े श्लोक : गृहस्थकाण्ड में ६ श्लोक ; श्राद्धकाण्ड में एक श्लोक । अपरार्क ने लगभग ३४ श्लोक उद्धृत किये हैं जिनमें ३ स्थापक के गुणों के विषय में हैं, क्योंकि स्थापक को पाञ्चरात्र के मातृ-सम्प्रदाय एवं
शास्त्रों के अनुसार वाम एवं दक्षिण मार्गों का ज्ञान होना आवश्यक था ।
देवीभागवत -- (१२ स्कन्धों में वेंक० प्रेस द्वारा प्रकाशित) । देखिए ह० ( जे० ओ० आर०, मद्रास, जिल्द २१, पृ० ४९-७९, जहाँ यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया गया है कि यह भागवत के उपरान्त लिखा गया है ) । देखिए ताडपत्रीकर (ए० बी० ओ० आर० आई०, जिल्द २३, पृ० ५५८-५६२ ) द्वारा लिखित 'देवी भागवत एवं भागवत' ; इण्डि० हिस्टा० क्वा० (जिल्द २७, पृ० १९१-१९६ ) में रामचन्द्रन का कथन है कि देवगढ़ में नर-नारायण का उभरा हुआ चित्रांकन देवीभागवत पर आधारित है ( देखिए देवीभागवत ४।५ - १० ) ; किन्तु प्रो० हजा श्री रामचन्द्रन की बात नहीं मानते ।
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नन्दिपुराण - ( उपपुराण) । देखिए ह० 'बृहन्नन्दिकेश्वर एण्ड नन्दिकेश्वर' (डा० बी० सी० ला-भेट ग्रन्थ, माग २,पृ० ४१५-४१९, एवं जर्नल आव दि गंगानाथ झा रिसर्च इंस्टीच्यूट, इलाहाबाद, जिल्द २, पृ० ३०५ - ३२० ) ; प्रो० रंगस्वामी आयंगर (न्यू इण्डियन ऐण्टीक्वेरी, जिल्द ४, पृ० १५७-१६१) ने नन्दिपुराण पर चर्चा करते हुए लिखा है कि मौलिक पुराण लुप्त है, तथा लक्ष्मीधर द्वारा उद्धृत श्लोक दान के विभिन्न प्रकारों के विषय में ही हैं । कल्पतरु ने दान पर २०० श्लोक उद्धृत किये हैं, जिनमें १४० विद्यादान पर १२ आरोग्यदान ( इनमें ऐसी व्यवस्था है कि एक ऐसा अस्पताल बनवाया जाय जिसमें आयुर्वेद के आठ अंगों का ज्ञाता वैद्य हो और औषधियों आदि की समुचित व्यवस्था हो ) पर हैं। अपार्क ने विद्यादान पर १०० श्लोक उद्धृत किये हैं एवं आरोग्यदान पर कल्पतरु की भाँति उद्धरण दिये हैं । कल्पतरु ने नियतकालं पर भी इस पुराण से उद्धरण लिये हैं । यह ग्रन्थ उन चार उपपुराणों में है जिन्हें मत्स्य ने स्पष्ट रूप से उल्लिखित किया है । अल्बरूनी ने इसे नन्दपुराण कहा है जो सम्भवतः नन्दिपुराण का द्योतक है । लक्ष्मीधर, अपराकं एवं दानसागर ने इससे पर्याप्त संख्या में उद्धरण लिये हैं । अतः यह कहा जा सकता है कि यह उपपुराण आठवीं या नवीं शताब्दी में अवश्य प्रणीत हो गया होगा ।
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