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________________ ४०४ धर्मशास्त्र का इतिहास कहा गया था कि सूत ब्राह्मण नारी एवं क्षत्रिय पुरुष से उत्पन्न पुत्र है। एक दूसरी कथा भी इसी पर जुड़ी हुई है (वायु ६२११४७, ब्रह्माण्ड २०३६।१७०-१७३ तथा अन्य पुराणों में) कि मौलिक सूत एवं मागध ने वेन के पुत्र पृथु की प्रशंसा में गीत गाये थे, जिससे प्रसन्न होकर राजा पृथु ने अनूप देश सूत को तथा मगध देश मागध को दान में दिया और उसी काल से सूत एवं मागध राजा की प्रशंसा में गान गाने लगे और उसे आशीर्वादों के साथ प्रात: जगाने लगे।" स्वयं वायु (१।३१-३४) ने कहा है कि सूत का जन्म तब हुआ था जब कि पृथु वैन्य के यज्ञ में सोम का रस निकाला गया था। ___ वर्तमान वाय एवं अन्य पुराणों के लेखकों को यह ज्ञात है कि उनके समयों में सूत एवं मागध को वेद पढ़ने का अधिकार नहीं था, सूतों की वृत्ति थी देवों, मुनियों एवं राजाओं के कुलों (जो इतिहास एवं पुराणों में पाये जाते हैं) पर ध्यान देना और उनके प्रति सचेत रहना, जिससे वे प्रचारित होते रहें। ये पुराण इस बात से अपने को निन्दित मानते थे कि शौनक जैसे मुनियों ने सूत से पुराणों की शिक्षा ग्रहण की थी, क्योंकि सूत उन दिनों (पुराणों के काल में) प्रतिलोम जाति के थे, जिसके विषय में गौतम, विष्णुधर्मसूत्र एवं स्वयं कौटिल्य ने व्यवस्था दी है कि प्रतिलोम लोग शूद्र हैं, आर्यों द्वारा निन्दित हैं और उपनयन, वेदाध्ययन, अध्यापन आदि जैसे ब्राह्मणों एवं क्षत्रियों के कर्मों से वर्जित हैं।" ब्राह्मण द्वारा क्षत्रिय से शिक्षा ग्रहण उपनिषद्-काल में भी अस्वाभाविक माना जाता था। देखिए गार्ग्य बालाकि से कहे गये राजा अजातशत्रु के शब्द। अतः शौनक जैसे महामुनियों के इतिहास एवं पुराण के प्रशिक्षक के रूप में सूत की स्थिति को बताने के लिए सूत के जन्म की गाथा का निर्माण किया गया और वे एक विशिष्ट स्थिति में रखे गये। यह कौटिल्य के कई शतियों पहले ही हुआ होगा क्योंकि वे सूत एवं मागध की निम्न स्थिति से परिचित थे और पौराणिक सूत एवं प्रतिलोम सूत तथा मागध में अन्तर प्रकट करते हैं। सूत की देवी उत्पत्ति को भले ही कोई न माने, किन्तु अति प्राचीन काल में ब्राह्मण लोग बिना किसी मनस्ताप एवं मानहानि के सूत से गाथाओं एवं आख्यानों को सुन सकते थे, किन्तु जब प्रचलित पुराण संगृहीत हुए तो स्थिति में पूर्ण परिवर्तन हो चुका था। ३८. ततः स्तवान्ते सुप्रीतः पृथुः प्रादात्प्रजेश्वरः। अनूपदेशं सूताय मगध मागधाय च ॥ तवा वै पृथिवीपालाः स्तूयन्ते सूतमागवैः। आशीर्वादः प्रबोध्यन्ते सूतमागधवन्दिभिः॥ वायु (६२।१४७-१४८), ब्रह्माण्ड (२॥३६३१७११७३)। आदिपर्व (५७।११२-११३) में भी अनूप एवं मगध का दान क्रम से सूत एवं मागध के लिए वणित है। और देखिए ब्रह्माण्ड (४।६७) । पद्म (५।११३१) में आया है कि पृथु ने सूत को सूत का देश दिया था। मागध को मगध से निकला हुआ समझना सामान्य व्युत्पत्ति का लक्षण है। अनूप का अर्थ है ऐसा देश जहाँ पानी हो या दलदल हो। पद्म (२०२७।८६-८७) ने सूत आदि को दिये गये अन्य देशों का भी उल्लेख किया है। ___३९. सूत उवाच ।...स्ववर्म एष सूतस्य सद्भिदृष्टः पुरातनः। देवताना मृषीणां च राज्ञां चामिततेजसाम्॥ वंशानां धारणं कायं श्रुतानां च महात्मनाम् । इतिहासपुराणेषु विष्टा ये ब्रह्मवादिभिः॥ न हि वेदेष्वधीकारः कश्चित् सूतस्य दृश्यते । वैन्यस्य हि पृथोर्यज्ञे वर्तमाने महात्मनः। सुत्यायामभवत्सूतः प्रथम वर्गवैकृतः। वायु १॥३१-३४, पद्म ५।१।२७; देखिए ब्रह्माण्ड २।३६ । पृथुवैन्यप्रतिलोमास्तु धर्महीनाः। गौतमधर्मसूत्र (४।२०); त एते प्रतिलोमाः स्ववर्मातिकमाद्राज्ञः सम्भवन्ति।...शूबसवर्माणो वा अन्यत्र चण्डालेभ्यः। अर्थशास्त्र ३७, पृ० १६५; प्रतिलोमात्स्वार्थविहिताः। विष्णुधर्मसूत्र १६।३। ४०. सहोवाचाजातशत्रुः प्रतिलोम चैतबद् ब्राह्मणः क्षत्रियनुपेयाद् ब्रह्म मे वक्ष्यतीति। बृह० उ० २।१।१५। देखिए कौषीतकिबा० उ० ४।१८, जहां सर्वथा ये ही शब्द आये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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