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- धर्मशास्त्र का इतिहास थे) के शासनकाल की आरम्भिक तिथि ठहराते हैं। इस के उपरान्त वे वर्तमान राजाओं एवं युधिष्ठिर के बीच के राजाओं का पाँच का माध्यम (औसत) मानकर पाँच राजाओं के लिए लगभग १०० वर्ष मान लेते हैं और इस प्रकार ई० पू० ९५० तक पहुंच जाते हैं, जो उनके अनुसार भारत-युद्ध की तिथि है। वे पुराणों (एवं महाभारत) के ज्योति:शास्त्रीय प्रमाण को एक वाक्य में यह कहकर कि 'ज्योतिःशास्त्रीय वक्तव्यों में वैज्ञानिक यथार्थता नहीं पायी जाती और वे बाद में ही कहे गये होंगे', निरादृत कर देते हैं। इस ग्रन्थ के लेखक ने महाभारत, पुराणों, वराहमिहिर, आर्यभट एवं शिलालेखों के प्रमाणों के आधार पर महाभारत की सम्भावित तिथि पर विचार किया है (खण्ड ३), अतः यहाँ पर इसके विषय में विस्तार करना अनावश्यक है। किन्तु प्रस्तुत लेखक को पार्जिटर की विधियाँ बहुत ही भ्रामक एवं त्रुटिपूर्ण जंचती हैं। किर्फल जैसे पश्चात्कालीन लेखकों ने पाजिटर द्वारा प्रतिपादित दो परम्पराओं वाला सिद्धान्त स्वीकृत नहीं किया है और न यही माना है कि पूराण खरोष्ठी लिपि में लिखित प्राकृत भाषा के मौलिक ग्रन्थों के संस्कृत रूप हैं (देखिए 'पुराण टेक्ट्स आदि' की भूमिका, पृ० १६)। एक अन्य महत्त्वपूर्ण एवं स्वतन्त्र साधन का उपयोग न तो पाजिटर ने किया है और न किर्फेल ने। ऐसा प्रतीत होता है कि लगभग ई० पू० ३०० में मेगस्थनीज़ को ऐसी सूची दी गयी थी जिसमें बच्चुस से लेकर अलेक्जेण्डर तक के राजाओं (१५३ या १५४) के नाम थे, जो कुल मिलाकर ६४५१ वर्षों एवं ३ मासों तक राज्य करते रहे (मैक्रिण्डिल, ऐंश्येण्ट इण्डिया ऐज डेस्क्राइब्ड बाई मेगस्थनीज़ एण्ड ऐरियन, १८७७, पृ० ११५ एवं कैम्ब्रिज हिस्ट्री आव इण्डिया, जिल्द १, १९२२, पृ० ४०९) । यदि थोड़ी देर के लिए कल्पना की जाय कि राजाओं का विवरण अप्रामाणिक है तब भी यह तथ्य रह जाता है कि लगभग ई० पू० ३०० में भारतीयों के पास ऐसे राजाओं की एक सूची थी जो उस तिथि से पूर्व सहस्रों वर्षों तक राज्य करते रहे, न कि कुछ सौ वर्षों तक (जैसा कि पाजिटर महोदय हमें विश्वास दिलाते रहे हैं ! )। - हमने बहुत पहले ऊपर देख लिया है कि आपस्तम्ब ने भविष्यत्पुराण का उल्लेख किया है और एक पुराण से चार श्लोक उद्धृत किये हैं। उस पुराण को भविष्यत्पुराण नाम से सम्भवतः इसलिए पुकारा गया क्योंकि उसमें भविष्यवाणी के रूप में ऐसे राजाओं के नाम एवं वृत्तान्त दिये हुए हैं जो महाभारत के वीरों के उपरान्त उनके वंशजों की कुछ पीढ़ियों एवं उनके समकालीन राजाओं के पश्चात् हुए थे; इतना ही नहीं, यह भी सम्भव है कि वह पुराण किसी मुनि द्वारा या व्यास द्वारा प्रणीत हुआ था। क्योंकि कलियुग का आरम्भ महाभारत के उपरान्त माना जाता है; पराशर, पराशर के पुत्र व्यास, व्यास के पुत्र शुक अधिक या कम रूप में पाण्डवों के समकालीन थे और वे सभी द्वापर युग में होने वाले कहे जाते हैं तथा सभी अठारहों पुराण व्यास द्वारा द्वापर युग में रचित माने गये हैं। अत: अधिसीमकृष्ण एवं उसके समकालीनों के वंशजों के कलियुगी राजाओं का इतिहास पुराणों द्वारा भविष्यवाणी के रूप में उपस्थित किया गया है। पाजिटर एवं किर्फेल में दोनों ने यह नहीं देखा कि तथाकथित भावी राजा दो दलों में विभाजित हैं, यथा-ऐल, ऐक्ष्वाक एवं मागध नामक वंशों के क्रम से अधिसीमकृष्ण', दिवाकर एवं सेनजित् से लेकर उनके उत्तराधिकारियों तक" (यथा-ऐक्ष्वाक वंश में सुमित्र एवं ऐल वंश में क्षेमक) का एक
२८. अत्रानुवंशश्लोकोयं भविष्य रुदाहृतः। इक्ष्वाकूणामयं वंशः सुमित्रान्तो भविष्यति। सुमित्रं प्राप्य राजानं संस्था प्राप्स्यति वै कलौ॥ वाय ९९।२९२, मत्स्य २७१।१५-१६, ब्रह्माण्ड ३।७४।१०६; अत्रानुवंशश्लोकोऽयं गीतो विप्रः पुराविदः। ब्रह्मक्षत्रस्य यो योनिवंशो देवर्षिसत्कृतः । क्षेमकं प्राप्य राजानं संस्था प्राप्स्यति वै कलौ॥ वायु ९९।२७८, ब्रह्माण्ड ३७४।२६५, मत्स्य ५११८८। तीसरे वंश की अन्तिम पीढ़ी के लोगों के विषय में कोई अनुवंशश्लोक नहीं है।
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