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पाजिटर द्वारा असत् कालनिर्धारण
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व्यास को भारत-युद्ध के समय में, जो द्वापर युग के अन्त का द्योतक है, जीवित कहा गया है और यह भी कहा गया है कि उन्होंने १८ पुराणों का भी प्रणयन किया था। महाभारत के पूर्व के राजा-गण, पाण्डव वीर और उनके कुछ उत्तराधिकारी वंशज एवं उनके कुछ समकालीन राजा-गण मत्स्य०, वायु०, ब्रह्माण्ड ० आदि द्वारा अतीत कहे गये हैं। अधिसोमकृष्ण या अधिसीमकृष्ण", जो अर्जुन से आगे का छठा उत्तराधिकारी था, उस समय जीवित था जब सत्र में मुनियों द्वारा पुराणों का वाचन हुआ था। वायु० (९९।२८२) एवं मत्स्य० (२७१।५) दोनों में ऐसा आया है कि इक्ष्वाकु वंश में बृहद्बल से छठा (या पांचवा, जैसा कि मत्स्य में आया है) उत्तराधिकारी वंशज दिवाकर उस समय जीवित था जब पुराणों का वाचन हुआ था। इसके उपरान्त ये पुराण (वायु९९।३०, मत्स्य २७११२३ एवं ब्रह्माण्ड ३१७४।११३) ऐसा वर्णन करते हैं कि जरासंध (मगध का राजा) के वंश में, जो पाण्डवों का समकालीन था और जिसका पुत्र सहदेव महाभारत में मारा गया, एक सेनजित् था, जो अधिसीमकृष्ण एवं दिवाकर का समकालीन था, और जो सहदेव से सातवें क्रम में था। ये सभी तीन राजा पुराणों में वर्तमान राजा कहे गये हैं और वे राजा, जो इन तीनों के उपरान्त राजा हुए, भविष्य में कहे गये हैं। पाजिटर महोदय सर्वप्रथम ऐक्ष्वाक, पौरव एवं मागध वंशों के उन राजाओं का योग लगाते हैं, जो वास्तव में संज्ञापित हुए हैं (जिनके नाम गिनाये गये हैं) और उन लोगों को छोड़ देते हैं जिनके नाम नहीं आये हैं (क्योंकि स्वयं पुराणों ने कहा है कि वे केवल प्रमुख राजाओं को ही परिगणित कर रहे हैं)। इस प्रकार योग १४०८ (वर्ष) होता है। उन्होंने इन तीन वंशों के राजाओं (जिनके नाम आये हैं और जो क्रम से ४७, ५० एवं ३१ की संख्या में आते हैं) का औसत शासन-काल निकाला है। वे वास्तविक ऐतिहासिक औसतों की जाँच में राजाओं की लम्बी सूचियों (यथा ४७, ५० एवं ३१) को असम्भव ठहराते हैं । बड़े आश्चर्य की बात यह है कि पाजिटर महोदय ऊपर कही गयी यह महत्त्वपूर्ण बात भूल जाते हैं कि ऐक्ष्वाक, मागध एवं पौरव वंशों में सामान्यतः केवल महत्त्वपूर्ण राजाओं के ही नाम पुराणों द्वारा उल्लिखित हैं; वे दूसरी बात यह भूल जाते हैं कि आज के पुराण प्राचीन पुराणों के टुकड़े एवं अंश मात्र हैं, क्योंकि ब्रह्माण्ड (३।७४) में सभी पौरव एवं ऐक्ष्वाक राजा सर्वथा अवर्णित हैं। पाजिटर महोदय महापद्म तक के दस राज्यों के राजाओं के शासन कालों का औसत निकालते हैं और प्रत्येक के राज्य के लिए इस प्रकार २६ वर्ष का माध्यम उपस्थित करते हैं। इसके उपरान्त वे पूर्वी एवं पश्चिमी देशों के चौदह राजाओं की परीक्षा कर प्रत्येक के शासन-काल के लिए १८ वर्षों का माध्यम उपस्थित करते हैं। पाजिटर महोदय का कथन है कि पूर्वी देशों के राजाओं का शासन-काल पश्चिमी राजाओं की अपेक्षा कम होता है, अतः १८ वर्ष का माध्यम वे भारतवर्ष के लिए पर्याप्त समझ लेते हैं। उनका कथन है कि ऐसा मानना हमारी उदारता एवं सचाई का द्योतक है। इसके उपरान्त वे शासनों की मध्यमावस्था १८ को २६ (दश शतियों के राजाओं की मध्यम संख्या) से गुणा करते हैं और ४६८ वर्षों की संख्या निर्धारित करते हैं। इस संख्या को वे महापद्म नन्द की तिथि ई० पू० ३८२ (जिसका निर्धारण भी उन्होंने स्वयं किया है) से जोड़ देते हैं और इस प्रकार ई० पू० ८५० (-४६८+३८२) को वे अधिसीमकृष्ण, दिवाकर एवं सेनजित् (जो वर्तमान राजा
२७. अधिसोम कृष्ण की वंश-परंपरा यों है : अर्जुन-पुत्र अभिमन्यु-पुत्र परीक्षित्--पुत्र जनमेजय--पुत्र शतानीक, उसके उपरान्त अश्वमेवदत, और उसके उपरान्त अघिसीम कृष्ण। देखिए वायु (९९।२४९-२५८, जिसका अन्तिम श्लोक यह है--अधिसीमकृष्णो धर्मात्मा साम्प्रतोयं महायशाः। यस्मिन् प्रशासति महीं युष्माभिरिवमाहृतम् ॥) मत्स्य (५०५५-६७) में वे ही शब्द हैं जो वायु में हैं, किन्तु वहाँ अधिसीमकृष्ण को शतानीक का पुत्र कहा गया है।
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