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पुराणों का श्लोकात्मक आकार
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मत्स्य, वायु १०४ एवं अन्य ग्रन्थों के अनुसार अन्य पुराणों के अनुसार श्लोकों की संख्या तथा टिप्पणी स्लोकों की संख्या
लिंग वराह स्कन्द
११,००० २४,००० ८१,०००
अग्नि (२७२।१७) के अनुसार ८४,०००। देखिए आगे का अध्याय २३, स्कन्दपुराण का विवरण ।
वामन
कूर्म
१०,००० १८,०००
मत्स्य
१४,००० १८,०००
गरुड़
नारद (१११०६।३) एवं भागवत (१२।१३१८) के अनुसार १७,०००, अग्नि (२७२।१२) के अनुसार ८,०००। अग्नि (२७२।२०-२१) के अनुसार १३,०००। भागवत (१२।१३।८) एवं देवीभागवत (११३) के अनुसार १९,०००, तथा अग्नि (२७२।२१) के अनुसार ८,०००। भागवत (१२।१३-८) एवं अग्नि (२७२।२३) के अनुसार १२,०००।।
ब्रह्माण्ड
१२,२०० मत्स्य (५३।५४) के अनुसार
उपर्युक्त तालिका से स्पष्ट है कि अठारह पुराणों में कुल ४,००,६०० श्लोक हैं, जैसा कि अधिक पुराणों की सूचियों से प्रकट होता है। यह संख्या कुछ पुराणों में वर्णित ४ लाख की संख्या से मिल जाती है। किन्तु विद्यमान पुराणों की श्लोक-संख्या उतनी नहीं है जितनी कि कही गयी है। उदाहरणार्थ, विष्णुचित्ती एवं वैष्णवाकूतचन्द्रिका नामक विष्णुपुराण (३।६।२३) की टीकाओं से प्रकट होता है कि विष्णुपुराण में ६,८,९,१०, २२, २३ से लेकर २४ सहस्र श्लोक तक पाये जाते हैं। दोनों टीकाएँ ६००० श्लोकों वाले विष्णुपुराण की टीका करती हैं। यही बात कूर्मपुराण के साथ भी पायी जाती है, जहाँ यह बहुत-से पुराणों के कथनानुसार १७,००० या १८,००० श्लोकों वाला है, वहाँ आज इसमें केवल ६००० श्लोक पाये जाते हैं। नारदीय के अनुसार १०,००० एवं अग्नि के अनुसार २५,००० श्लोकों वाले ब्रह्म में आज लगभग १४,००० श्लोक हैं। दूसरी ओर स्कन्द में ८१,००० श्लोक कहे गये हैं, किन्तु मुद्रित संस्करण में इससे कई सहस्र अधिक श्लोक पाये जाते हैं। भविष्य (ब्राह्मपर्व) में आया है कि प्रत्येक पुराण में पहले मौलिक रूप में १२,००० श्लोक पाये जाते थे, किन्तु विस्तार होता गया, क्योंकि गाथाएँ बढ़ती गयीं, यहाँ तक कि स्कन्द में एक लाख श्लोक हो गये और भविष्य में ५०,००० श्लोक। जिस क्रम में पुराण रखे गये हैं, वह भी सदैव एक-सा नहीं रहा है। अधिकांश पुराण ब्रह्म को प्रथम स्थान में रखते हैं एवं उपर्युक्त तालिका को ही मानते हैं, किन्तु वायु (१०४।३) एवं देवीभागवत (१।३।३) ने सूची का आरम्भ मत्स्य से किया है। स्कन्द (प्रभासखण्ड २।८-९) ने ब्रह्माण्ड को प्रथम स्थान में रखा है। भागवत (१२।७।२३-२०) ने अन्य क्रम में पुराणों की सूची दी है। वामनपुराण (१२।४८) ने मत्स्य को सर्वोपरि स्थान दिया है। सभी पुराणों के विषयों की चर्चा मत्स्य (अध्याय ५३), अग्नि (अध्याय २७२), स्कन्द (प्रभासखण्ड,
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