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________________ ३८२ धर्मशास्त्र का इतिहास में (१०३० ई० में लिखित) एक पुराण-सूची दी है, उसमें केवल शिवपुराण को वायुपुराण के स्थान पर रख दिया गया है तथा अन्य अन्तर नहीं प्रकट किया गया है। अलबरूनी को विष्णुपुराण पढ़कर सुनाया गया था। इससे स्पष्ट है कि प्रमुख पुराणों की सूची ईसा की दसवीं शती के बहुत पहले पूर्ण हो चुकी और विष्णुपुराण में वह सूची सन् १०३० ई० के बहुत पहले आ गयी रही होगी। अलबरूनी ने एक अन्य सुनी-सुनायो सूची भी दी है, जो यों है--आदि, मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, वायु, नन्द, स्कन्द, आदित्य, सोम, साम्ब, ब्रह्माण्ड, मार्कण्डेय, तार्क्ष्य (गरुड़), विष्णु, ब्रह्म एवं भविष्य । इस सूची में वायु का नाम है, किन्तु शैव (शिव पुराण या शैव पुराण) का नहीं। इस सूची में कुछ पुराणों में वर्णित कुछ उपपुराण भी सम्मिलित कर लिये गये हैं (यथा-आदि, नरसिंह, नन्द, आदित्य, सोम एवं साम्ब) और कुछ ऐसे पुराण जो एकमत से महापुराण कहे जाते हैं (यथा-पद्य, भागवत, नारद, अग्नि, लिंग एवं ब्रह्मवैवर्त) छोड़ दिये गये हैं। इससे स्पष्ट है कि कुछ उपपुराण, यथा-आदि, नरसिंह, आदित्य, साम्ब, नन्द (नन्दी?) कम-से-कम सन् १००० ई० के कुछ वर्ष पहले ही प्रणीत हो चुके रहे होंगे। बालम्भट्ट (१८ वीं शती के उत्तरार्ध में) ने मिताक्षरा (याज्ञ० ११३) की टीका में लिखा है कि वायवीयपुराण को शैवपुराण भी कहा जाता था। अब हम नीचे १८ पुराणों की सूची दे रहे हैं। इसमें प्रत्येक पुराण के श्लोकों की संख्या के विषय में मी जानकारी दी जा रही है। क्रम-संख्या पुराण का नाम मत्स्य, वायु १०४ एवं अन्य ग्रन्थों के अनुसार अन्य पुराणों के अनुसार श्लोकों की संख्या तथा टिप्पणी श्लोकों की संख्या ब्रह्म अग्निपुराण (२७२।१) के अनुसार २५,००० । १०,००० नारद (९२।३१) एवं भागवत (१२।१३।४) के अनुसार ५५,००० २३,००० २४,००० पद्म विष्णु वायु कतिपय ग्रन्थों में संख्या ६ से २४ सहस्र तक लिखी हुई है। अग्नि (२७२।४-५) के अनुसार १४,००० एवं देवीभागवत (११३।७) के अनुसार २४,६०० । भागवत नारदीय मार्कण्डेय १८,००० २५,००० अग्नि स्वयं मार्कण्डेय (१३४।३९) के अनुसार ६९०० तथा नारद (११९८।२ एवं वायु १०४।४) के अनुसार ९००० । भागवत (१२।१३।५) के अनुसार १५,४०० तथा अग्नि (२७२।१०-११) के अनुसार १२,००० । अग्नि (२७२।१२) के अनुसार १४,००० । भविष्य ब्रह्मवैवर्त १४,५०० १८,००० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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