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________________ ३८० धर्मशास्त्र का इतिहास १९५१), जहाँ जायसवाल के युग-पुराण सम्बन्धी मतों की आलोचना आदि है और ऐतिहासिक तथ्यों की ओर पर्याप्त निर्देश हैं। युगपुराण को प्रो० मनकड़ द्वारा प्राप्त पाण्डुलिपि में स्कन्दपुराण कहा गया है। यह बृहत्संहिता का ११३ वाँ अध्याय है। 'स्कन्दपुराण' नाम सम्भवतः इसलिए पड़ा है कि इस पुराण के आदि में स्कन्द ने विभिन्न युगों की विशेषताओं के विषय में शिव से प्रश्न पूछा है। कृत, त्रेता एवं द्वापर की विशेषताओं का उल्लेख क्रम से ११. २८, २९-४५ एवं ४६-७४ पंक्तियों में हुआ है (देखिए प्रो० मनकड़ का संस्करण)। प्रो० मनकड़ के संस्करण में ७५-२३५ पंक्तियाँ एवं डा० जायसवाल के संस्करण में १-११५ पंक्तियाँ (जे० बी० ओ० आर० एस०, जिल्द १४, प.० ४००-४०८) कलियुग की विशेषताओं एवं ग्रन्थ के पूर्व की कुछ शतियों के राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास पर प्रकाश डालती हैं। युगपुराण में वर्णित कलियुग की विशेषताएँ वनपर्व (१८८।३०-६४) में उल्लिखित विशेषताओं से सर्वथा मिल जाती हैं। दोनों में श्लोक का अर्धांश एक ही है। . महत्त्वपूर्ण बातें संक्षेप में यों हैं-'द्रौपदी की मृत्यु के उपरान्त कलियुग का आरम्भ हुआ। कलियुग के आरम्भ में परीक्षित् का पुत्र जनमेजय एक प्रसिद्ध राजा होगा, किन्तु वह ब्राह्मणों से विरोध करेगा। कलियुग में शिशुनाग का पुत्र उदायि गंगा के दक्षिण किनारे पर पाटिलपुत्र नगर बसायेगा, जो पुष्पपुर के नाम से पुकारा जायेगा, पाँच जो सहस्र, सो, पाँच वर्षों, पाँच मासों, पाँच दिनों एवं पाँच मुहूर्तों तक अवस्थित रहेगा। . उस पुष्पपुर में शालिशूक नामक उद्भ्रान्त एवं दुष्ट राजा होगा, जो अपने गुणी बड़े भाई विजय को साकेत में स्थापित करेगा। तब वीर यवन, पाञ्चाल एवं माथुर लोग साकेत पर आक्रमण करेंगे और कुसुमपुर को, जिसकी किलेबन्दी मिट्टी की होगी जीत लेंगे। यवनों के इस आक्रमण से सभी देश आकुल हो जायेंगे। इसके उपरान्त अनार्य लोग आर्यों के व्यवहारों का अनुसरण करेंगे। कलियुग के अन्त में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य समान रूप से वस्त्र धारण करेंगे और एक-सा व्यवहार करेंगे। लोग नास्तिक सम्प्रदायों में सम्मिलित होंगे और पत्नियों के लिए (उन पर बलात्कार करने के लिए) एक-दूसरे से मित्रता करेंगे। शूद्र लोग 'ओम्' के साथ आहुतियाँ डालेंगे तथा दूसरों को 'भोः' शब्द से सम्बोधित करेंगे और ब्राह्मण लोग दूसरों को 'हे आर्य' कहेंगे। यवन नगर (पुष्पपुर) में पाँच राजा स्थापित करेंगे। यवन लोग मध्यदेश में बहुत समय तक नहीं रहेंगे। यवनों के नाश के उपरान्त साकेत में सात शक्तिशाली राजा होंगे। मध्यदेश में रक्तरंजित युद्ध होंगे। सभी आग्निवेश्य राजा युद्ध में समाप्त होंगे और यही दशा प्रजा की होगी।' 'इसके उपरान्त कलिंग के राजा सात के विरोध से लोभी शक नाश को प्राप्त होंगे, पृथिवी का सत्यानाश होगा एवं पुष्पपुर में शन्यता प्राप्त होगी। रक्त-चक्ष अमलात पुष्पपुर को प्राप्त करेगा। म्लेच्छराज अमलात असहाय जनता एवं चारों वर्गों का नाश करेगा। अमलात अपने सम्बन्धियों के साथ नाश को प्राप्त होगा और एक राजा होगा जिसका नाम गोपाल होगा, वह एक वर्ष राज्य कर के मर जायगा। इसके उपरान्त पूष्यक नामक न्यायी राजा होगा जो केवल एक वर्ष तक राज्य करेगा। दो अन्य राजाओं के उपरान्त अग्निमित्र राजा होगा जो एक कन्या के लिए ब्राह्मणों से भयंकर युद्ध करेगा। उसके उपरान्त उसका पुत्र २० वर्षों तक राज्य करेगा। शबरों से युद्ध होने के कारण प्रजा की दशा बुरी होगी। तब सात राजा राज्य करेगा। इसके उपरान्त शकों का विप्लव होगा जो प्रजा की एक-चौथाई का नाश कर देंगे और लोगों को अनैतिक बना देंगे।' इस प्रकार युगपुराण एक निराशाजनक टिप्पणी के साथ समाप्त होता है। ___ युगपुराण शकों के आगे के वंशों की चर्चा नहीं करता, अर्थात् वह आन्ध्रों, आभीरों एवं गुप्तों के विषय में मौन है, अतः वह उन पुराणों से पुराना है जिनमें इन वंशों की भी चर्चा है। डा० जायसवाल ने इसे ई० पू० प्रथम शती के उत्तरार्ध में रखा है, जो ठीक ही जंचता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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