________________
पुराण-सम्बन्धी प्राचीन उल्लेख
३७७
की दो एवं हर्षचरित की एक उक्ति मनोरंजक है। जाबालि मुनि की कुटी का वर्णन करते हुए बाण ने एक श्लेष का प्रयोग किया है, 'पुराण में वायुप्रलपित' (वायु देवता द्वारा उद्घोषित, प्रलपित या जल्पना) था, किन्तु कुटी में (वातव्याधि का प्रलाप) नहीं था। इसी प्रकार तारापीड के प्रासाद के वर्णन में बाण ने श्लेष प्रयुक्त किया है, जहाँ उसे पुराण के तुल्य माना है (दो अर्थ ये हैं, 'जहाँ विश्व का संचित धन उचित रूप में व्यवस्थित है', 'जिसमें लोकों के सम्पूर्ण गोलकों का वर्णन है; जिसका प्रत्येक भाग उचित रूप में व्यवस्थित है')। कादम्बरी के उत्तरभाग (बाण के पुत्र द्वारा प्रणीत) में आया है कि सभी आगमों (परम्परा से चले आये हुए धार्मिक ग्रन्थ), यथा--पुराणों, रामायण एवं भारत में शापों के विषय में बहुत-सी कहानियाँ हैं। यहाँ पुराणों को पहले रखा गया है, इससे प्रकट होता है कि वे रामायण एवं भारत (महाभारत) से सम्भवतः अधिक सम्मानित एवं प्रचलित थे। हर्षचरित' में ऐसा आया है कि पुस्तकवाचक सुदृष्टि ने बाण एवं उसके सम्बन्धियों तथा मित्रों का सम्मान करने के लिए वायु द्वारा प्रवर्तित पुराण का संगीतमय पाठ कराया, जो मुनि (व्यास) द्वारा रचा गया था, जो अति विशद है, जो विश्वव्यापी (सभी स्थानों पर ज्ञात) है, जो पावन है, जो हर्ष के चरित से भिन्न नहीं है (जिसके लिए पुराण में प्रयुक्त सभी विशेषण उपयुक्त हैं)। यह प्रकट होता है कि यहाँ वायु पुराण स्पष्ट रूप से उल्लिखित है (जिसके लिए पवमानप्रोक्त एवं पावन शब्द आये हैं)। यहाँ यह भी कहा गया है कि पुराणों में विश्व के कतिपय भागों का वर्णन पाया जाता है। यह वर्णन वायु, मत्स्य (अध्याय ११४-१२८), ब्रह्माण्ड (२।१५) की ओर संकेत करता है। ऐसा तर्क किया जा सकता है कि बाण द्वारा उल्लिखित पुराण ब्रह्माण्ड हो सकता है, क्योंकि उस पुराण में आया है--'आरम्भ एवं अन्त में ब्रह्मा ने उसे वायु को दिया, जिससे वह कतिपय दैवी एवं अर्घ दैवी व्यक्तियों को प्राप्त हुआ और अन्त में उसे सूत ने व्यास से प्राप्त किया।' यह तर्क स्वीकार्य नहीं हो सकता, क्योंकि बाण को यह स्पष्ट रूप से कहने में कोई रोक नहीं सकता था कि सुदृष्टि द्वारा ब्रह्माण्ड पुराण का पाठ कराया गया था।
कुमारिल भट्ट ने अपने तन्त्रवार्तिक में कई स्थानों पर पुराणों एवं उनमें पायी जाने वाली बातों की ओर संकेत किया है। दो-एक मनोरंजक उक्तियाँ यहाँ दी जा रही हैं। जैमिनि (१।३।१) पर कुमारिल का कथन है-“अतः सभी स्मृतियों की प्रामाणिकता उस प्रयोजन से सिद्ध है जो उनके द्वारा किया जाता है; उनमें (स्मृतियों में) सब कुछ धर्म एवं मोक्ष से सम्बन्धित है (प्रामाणिक है), क्योंकि वह वेद से उत्पन्न होता है; जो कुछ अर्थ एवं सुख से सम्बन्धित है वह लोगों के व्यवहार पर आधारित है। इस प्रकार एक अन्तर किया जाना चाहिए। यही तर्क इतिहास एवं पुराणों के उपदेश वाक्यों में भी प्रयुक्त होता है। उपाख्यानों की व्याख्या अर्थ
१०. पुराणे वायुप्रलपितम्। का६०, पूर्वभाग, वाक्य-समूह ३७; पुराणमिव यथाविभागावस्थितसकलभुवनकोशम्। काद०, पूर्वभाग, वाक्य-समूह ८५ (राजकुल)। स्वयं वायुपुराण में आया है कि सूत ने नैमिष वन में मुनियों से वायु द्वारा प्रवतित पुराण सर्वप्रथम कहा (१।४७-४८ पुराणं संप्रवक्ष्यामि यदुक्तं मातरिश्वना। पृष्ठेन मुनिभिः पूर्व नैमिषीयैर्महात्मभिः॥); वायु० के अध्याय ३४-४९ में भुवनविन्यास है; आगमेषु सर्वेष्वेव पुराणरामायणभारताविषु सम्यगनेकप्रकाराः शापवार्ताः। काद०, उत्तरभाग (चन्द्रापीड के हृदय टूटने के समाचार पर राजा तारापीड को सान्त्वना देने के लिए शुकनास को वक्तृता)।
११. पुस्तकवाचकः सुदृष्टिः...गीत्या पवमानप्रोक्तं पुराणं पपाठ। हर्षचरित ३, चौथा नाम-समूह दोनों के लिए प्रयुक्त आर्या छन्द है तदपिमुनिगीतमतिपृथु तदपि जगद्व्यापि पावनं तदपि। हर्षचरितादभिन्नं प्रतिभाति मे पुराणमिवम् ॥' हर्ष० ३, ५वा वाक्य-समूह। पवन का अर्थ है वायु और इसी से पावन 'वायवीय' के स्थान पर आया है।
४८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org