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________________ पुराण-संबन्धी प्राचीन उल्लेख ३७५ आपस्तम्ब ने भविष्यत् पुराण एवं पुराण का उल्लेख किया है, इससे यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि ई० पू० ५०० के पूर्व कतिपय पुराण थे, जिनमें एक था भविष्यत्पुराण और उस समय के प्रसिद्ध पुराणों में सर्ग, प्रतिसर्ग एवं स्मृति के विषयों का समावेश था। उपर्युक्त निष्कर्ष अन्य ग्रन्थों से भी प्रमाणित होता है। गौतमधर्मसूत्र ने व्यवस्था दी है कि बहुश्रुत वह ब्राह्मण है जो लोगों के आचार-व्यवहार, वेद, वेदांग, वाकोवाक्य (कथनोपकथन ), इतिहास एवं पुराण जानता है । उसमें यह भी आया है कि राज्य शासन एवं न्याय कार्य में राजा को वेद, धर्मशास्त्र, वेद के छह अंगों, (चार) उपवेदों एवं पुराण पर अवलम्बित होना चाहिए।' उपर्युक्त विवेचन से प्रतीत होता है कि यद्यपि हम अथर्ववेद, शतपथब्राह्मण एवं उपनिषदों में उल्लिखित पुराण अथवा पुराणों के विषयों के संबन्ध में कोई निश्चित मत प्रकाशित नहीं कर सकते, किन्तु आपस्तम्ब एवं गौतम काल तक विद्यमान पुराणों के विषयों से मिलते-जुलते विषयों का समावेश करने वाले पुराण उपस्थित थे, ऐसा कहा जा सकता है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र में आया है कि त्रयी का अर्थ है तीनों वेद, यथा-- ऋग्वेद, सामवेद एवं यजुर्वेद और अथर्ववेद एवं इतिहासवेद ( भी ) वेद हैं । ' इससे प्रकट होता है कि कौटिल्य के काल में इतिहास तीनों वेदों के समान एक निश्चित प्रकार की कृति था । एक अन्य स्थान पर कौटिल्य ने व्यवस्था दी है, 'अर्थशास्त्र में प्रवीण एवं राजा का भला चाहने वाले मन्त्री को चाहिए कि वह अन्य मार्गदर्शकों द्वारा पथभ्रष्ट किये गये राजा को इतिवृत्त ( इतिहास अथवा ऐतिहासिक घटनाओं ) एवं पुराणों के द्वारा उचित मार्ग पर ले आये ।' राजा के प्रतिदिन की चर्या के लिए नियम बनाते समय कौटिल्य ने व्यवस्था दी है कि दिन के बाद वाले भाग में राजा को इतिहास सुनना चाहिए; इतिहास को उन्होंने पुराण, इतिवृत्त, आख्यायिका, उदाहरण ( साहसपूर्ण अथवा साहसिकों या वीरों के उदाहरण), धर्मशास्त्र एवं अर्थशास्त्र ( शासन एवं राज्य - शिल्प के विज्ञान) से समन्वित माना है। लगता है, कौटिल्य ने यहाँ पर इतिहास को महाभारत माना है । महाभारत ने अपने को इतिहासों में सर्वश्रेष्ठ माना है, अपने को धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र, कामशास्त्र एवं कृष्णवेद कहा है ।" राजा के कर्मचारियों में ऐसे नाम आये हैं—कार्तान्तिक ( फलित ज्योतिष विशेषज्ञ), नैमित्तिक ( शकुन एवं पूर्व सूचनाओं की जानकारी रखने वाले), मौहूर्तिक ( शुभ काल जानने वाले), पौराणिक, सूत एवं मागध, जिन्हें वेतन के रूप में १००० पण मिलते थे । अपेक्षाकृत अति प्राचीन एवं आरम्भिक दक्षस्मृति ( २।६९ ) ने दिन के छठे एवं सातवें भाग में सभी द्विज गृहस्थों के लिए इतिहास एवं पुराण के अध्ययन की व्यवस्था दी है। ओशनसंस्मृति ने कहा है कि वेदांगों एवं पुराणों का अध्ययन उत्सर्जन के उपरान्त मा ५. तस्य च व्यवहारो वेदो धर्मशास्त्राण्यङ्गान्युपवेदाः पुराणम् । गौ० घ० सू० ( ११।१९ ) । ६. सामर्थ्यजुर्वेदास्त्रयस्त्रयी अर्थववेदेतिहासवेदौ च वेदाः । अर्थशास्त्र ( १ | ३ ) ; मुख्यैरवगृहीतं वा राजानं तत्प्रियाचितः । इतिवृत्तपुराणाभ्यां बोधयेदर्थशास्त्रवित् ॥ अर्थशास्त्र ( ५।६, पृ० २५७ ) । ७. पूर्वमहर्भागं हस्त्यश्वरमप्रहरणविद्यासु विनयं गच्छेत्, पश्चिममितिहासश्रवणे । पुराणमितिवृत्तमाख्यायिकोदाहरणं धर्मशास्त्रमर्थशास्त्रं चेतीतिहासः । अर्थशास्त्र ( ११५, पृ० १० ) । । ...इतिहासो ८. अर्थशास्त्रमिदं प्रोक्तं धर्मशास्त्रमिदं महत् । कामशास्त्रमिदं प्रोक्तं व्यासेनामितबुद्धिना ॥ ... तमादस्माज्जायन्ते कविबुद्धयः । अस्याख्यानस्य विषये पुराणं वर्तते द्विजाः । आदिपर्व ( २०८३, ८५-८६ )। आदिपर्व (६२।२३ ) में महाभारत को धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र एवं मोक्षशास्त्र कहा गया है। मार्कण्डेयपुराण (११६-७) ने महाभारत को चारों पुरुषार्थों का शास्त्र और चारों वर्णों के उचित कर्मों की जानकारी का साधन माना है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002792
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1971
Total Pages526
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size18 MB
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